Thursday, 31 March 2016

कल दोपहर शिवाड़ एरिया में :😊 जय हो देबू जी महाराज .

कल दोपहर  शिवाड़    एरिया  में .......#बनस्थलीडायरी के अंतर्गत समाविष्ट चर्चा साझा Manju Pandya और Banasthali Pariwar  . #देबूजी

आजकल राम स्वरूप जी  एक वैन में  सब्जी बेचने इधर आते  हैं  ,  उणियारा के मूल निवासी  राम स्वरूप जी घर बैठे जरूरत  की सब्जी और फल दे जाते हैं  मेरे घर के बाहर  भी आकर रुकते हैं , सब्जी भी ले लेता हूं इतनी देर में  दो बात  भी होती है   ।  परसों कुछ ऐसा हुआ  कि मैं किसी काम से बाहर चला गया  , जीवन संगिनी नहाने चली गयी  और राम स्वरूप जी   ’ सब्जीईईईई ."  की आवाज लगाकर चले गए । कल भी जीवन संगिनी लगभग उसी समय बाजार चली गयी जब उनका आना हुआ  । सारा दारोमदार मुझपर ही था । कहीं आज भी  मेरी गैर हाजिरी  न लग जाए  इसलिए मैं थोड़ा सतर्क रहा ।

 राम स्वरूप जी बाबत और भी बताता चलूं ,  वे बातें यही कह देना ठीक रहेगा । वे पहले  घोड़ा गाड़ी लेकर आते थे । घोड़ों से मेरा लगाव मेरे बनस्थली  के सेवाकाल से रहा है ,  जो कई एक प्रसंगों  में मेरी याद में आ ही जाता है । @  भगवान देव नारायण उनके देवता हैं । देबूजी महाराज  का मंदिर मेरे सेवा क्षेत्र के निकट ही है । बहरहाल  उणियारा  और बनस्थली एक ही जिले  के भाग हैं  ।
    जब राम स्वरूप जी    घोड़ा  गाड़ी   लेकर आते तो यहां होने पर श्रद्धा की बेटी उर्वी घोड़े   पर जरूर बैठती  । उस पर बैठकर फ़ोटो भी खिंचवाती । ये बदलाव तब आया जब  उनका घोड़ा मर गया  । अब तो मैं भी देबू जी के स्थान  और घुड़सवारी मैदान वाले परिसर से थोड़ा दूर आ बसा  हूँ  ।

  कल की बात पर लौटूं  । राम स्वरूप जी की आवाज दो मकानों की दूरी  पर खड़े  विद्या अपार्टमेंट्स के बाहर से कुछ बुलंद स्वर  में  
ऐसी सुनाई दी  मानों वो  गुलमोहर *  के बाहर ही आ गए हैं  । आवाज सुनकर मैं बाहर   चला आया  ।  लेकिन राम स्वरूप जी तो वो ही दो मकान की दूरी पर थे ,  याने विद्या अपार्टमेंट्स  के  बाहर  । मैं यहां खड़ा न रहकर वहां तक चला गया  । गलती  शायद वहीँ कर बैठा ,  दो प्रकार से  1  झोला मेरे पास नहीं था जो एक  ऐसा उपकरण है जो मेरे कंधे  पर लटक जाता है  और  मेरा काम काज का बांया  हाथ   खाली रहता है  ।  2  मैं वहां तक गया ही क्यों   , जबकि राम स्वरूप जी तो यहीं  आने वाले थे ।  पर होनी को कौन टाल सकता  है , बलवान होनहार मुझे वहां ले गयी  ।
~    बाबूजी  यहां तक क्यों आये  , मैं तो वहीँ आ रहा था । वे बोले  ।
~   कल मैं घर नहीं था , ऐसा न हो कि  आप सीधे निकल जाओ    मैं बोला ।

~खैर , अब यहीं सही  ।

         गोभी, मटर जैसी निरापद सब्जियां थोड़ी तादाद में ले ली गईं । संतरा , सेव  और अमरूद भी ले लिए गए । आदतन धनिया भी   उन्होंने  डाल दिया । मेरी आवश्यकता न होते हुए  मिर्ची भी डाल दी । छोटी बड़ी दो  थैलियां उन्होंने मुझे पकड़ा दीं  । बहुत भारी सामान होता तो वे कमलेश को भेज देते  या मेरे घर के बाहर से निकलते हुए  उतार जाते पर  उन्होंने मुझे वहां से सुरक्षित रवाना कर दिया और  मैं  इधर आने को चल दिया ।  अपने सब्जी खरीद अभियान की सफलता  से मन ही मन प्रसन्न मैं  विद्या अपरमेंट्स की ओर से गुलमोहर की दिशा में चला आ रहा था कि एक  अप्रत्याशित  परिघटना हुई जिसकी मुझे दूर दूर तक आशंका नहीं थी ।

  रामेश्वरम   (  किक्की भाई साब का आवास )  के बाहर  तक आते आते न जाने  कैसे एक काली मोटी गाय का निशाना  मैं बन गया  ।  गाय की हमारे घर में अम्मा के जमाने से पूजा होती आई है , जीवन संगिनी आज भी  गाय की पूजा  करती है  पर गौ माता एक बार  बनस्थली में आक्रामक होकर उनकी ओर ऐसी बढ़ी थी कि उन्हें धराशायी करके ही वापस लौटी थी  । मैं पहुंचा पर बचा नहीं  पाया , मुझे बहुत आत्मग्लानि भी हुई थी कि इनकी तो रक्षा का मैंने  शुक्ल जी के सामने वचन दिया था , उस वचन का क्या हुआ  ?   गाय थी कि मुझपर झपट रही थी ।  इधर शिवाड़  एरिया में  दो  जमाने साथ साथ चल रहे हैं  । कुछ पचास साठ साल पहले  से रह रहे लोग अभी भी कई कई गायें पालते हैं  और दुग्ध व्यवसाय करते हैं । ये लोग गायों को दिन में खुला छोड़ देते हैं , उन्हीं में से किसी की ये गाय रही होगी ।   आसन्न संकट को भांपकर   मैंने  दोनों थैलियों सहित  दोनों हाथ विश्राम की मुद्रा में पीछे की ओर किये तो गौ माता मेरी परिक्रमा करने लगी  ।  अब मैं चक्कर लगाने लगा ,  लगा कि या  तो मैं चककर आने से गिर पडूंगा  या ये गौ माता मुझे वैसे ही धराशाई कर के मानेगी  जैसे उस दिन इसकी  बहन जीवन संगिनी को बनस्थली में  धराशाई कर गई थी । उस दिन  इनकी रक्षा मैं न कर पाया था , शायद इसी का दंड मुझे मिलने  जा  रहा है ।

परिवेश का विवरण  और परिदृश्य  :  
    जब गौ माता की गिरफ्त में ही आ गया  तो  मैं इस दृष्टि  से चारों ओर झांका  कि आपात सहायता कहां से  मिल सकती है  ? राम स्वरूप जी और उनके  सहायक  कमलेश को तो मैं इतना पीछे छोड़ आया था कि वो दोनों या उनमें कोई एक भी मौक़ा ए वारदात  तक पहुंच ही नहीं सकता था । सामने यादव जी के घर के  बाहर कई एक लड़कियां खड़ी खड़ी बातें कर रही थीं  ,  जिनमें से कुछ की निगाह इधर भी थी  । वे मेरी दुर्दशा की गवाह तो थीं  पर मेरी कोई सहायता कर सकेंगी ऐसा मुझे नहीं लगा । यादव जी के घर में  केवल लड़कियों के लिए छात्रावास जैसा है  । इसी कारण यह लड़कियों का एक छोटा समूह वहां था  । इतने  में मैं क्या देखता हूँ  कि  एक मोटर साइकिल  पर सवार  लड़का भी वहां किसी प्रतीक्षा में खड़ा   है  ।  मरता क्या न करता ,  मैंने उसी से सहायता चाही :

          अरे मोटर साइकिल वाले लडके  आ और मुझे गाय से बचा ।

 लड़का परिस्थिति को भांपकर मेरी आवाज सुनकर  ही  इधर मुड़ा था वरना तो  वो दूसरी तरफ देख रहा था और परिस्थिति से पूरी तरह अनभिज्ञ था । लडके ने बैठे बैठे ही अपनी सवारी मोटर साइकिल की दिशा बदली और  पलटकर  आगे   बढ़कर  मोटर साइकिल को गाय की ओर बढ़ाने  का उपक्रम करते मेरे  और गाय के बीच जगह बना ली  । मय अपनी सवारी के यह लड़का मेरी सुरक्षा के लिए ऐसे खड़ा हो गया जैसे मैं किसी दुर्ग में खड़ा हूं । मैं अपनी सुरक्षा  के लिए  आश्वस्त होकर गुलमोहर * की  रैम्प तक  सुरक्षित  आ गया । फाटक खोल कर अंदर आ गया  । हाथ खाली कर मैं उस लडके का आभार व्यक्त करने को दरवाजे के बाहर फिर गया  , पर तब तक वो जा चुका था ।

   मैं तो यही कहूं कि  साक्षात् भगवान देव नारायण  आये आज के ज़माने के इस मशीनी घोड़े पर सवार होकर और उस घड़ी मेरे सुरक्षा  प्रहरी  बन गए ।

* मेरा जयपुर आवास ।

इति प्रातःकालीन सभा के लिए ।

शुभ प्रभात

Good  morning !

नोट  : ये मरखनी गाय की कहानी और भी पहले से मेरे जीवन में  आई हुई है जिस पर अलग से पोस्ट लिखूंगा ।  आज इतना ही समय मिल पाया  कि कल का  तात्कालिक अनुभव ही लिखा । समयाभाव के चलते रही कमी के लिए  क्षमा प्रार्थी हूं ।#Debuji_maharaj.

28 नवम्बर 2015
---------------------       विगत वर्ष की इस पोस्ट को साझा करने की गरज से फिर से जारी करने का प्रयास कर रहा हूं .