Wednesday 7 October 2020

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     भगवान मामाजी : किस्सा अल्टीमेट : मंतर बेद का !

       #sumantpandya

          भगवान मामाजी : किस्सा अल्टीमेट : मंतर बेद का !

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     मेरी बचपन की यादों में बसे हैं अलवर रियासत के टहला  गांव के भगवान मामाजी  जो अपनी किस्सागोई के कारण अति लोकप्रिय थे . कोई पारिवारिक  या कौटुम्बिक - सामुदायिक आयोजन हो  लोग उनके किस्से सुनने को आस पास इकठ्ठा हो जाया करते थे . उनके किस्से  तथ्यों पर आधारित और प्रामाणिक होते थे और और उनकी प्रस्तुति  बेजोड़  होती थी . 


 आज सोचा था कि उनका सुनाया कोई  किस्सा लगाऊंगा फेसबुक पर , पर कोई न कोई व्यवधान आता रहा  पर अब शायद संभव हो जाए .

चेतावनी  पाठक श्रोता के लिए :

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पहले ही चेताना मुनासिब होगा के जिसमें  काशीनाथ सिंह के उपन्यास “ काशी का अस्सी  “ पढने का जिगरा हो वही भगवान मामाजी का  बयान किया किस्सा आगे सुने न तो रहने ही देवे आगे न पढ़े न बढे .


किस्से की पृष्ठभूमि :

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 राज्य में देवस्थान विभाग नाम से एक अलग  विभाग बन गया जिसके जिम्मे  मंदिरों की व्यवस्था और  प्रबंधन आया . इसी  क्रम में  विविध मंदिरों  की देखभाल शुरु हुई . विभाग की ओर से पुजारियों को  योग्यता और पात्रता देखकर प्रमाण पत्र दिए गए .

 

फिर क्या हुआ ?

होना क्या था इस सिलसिले में विभाग के अधिकारी विभिन्न मंदिर परिसरों का शासकीय दौरा करने लगे .

इसी क्रम में विभाग के एक आला अधिकारी ओझा  जी एक गांव के मंदिर में पहुंचे और वहां के मंदिर के पुजारी पंडित जी के संपर्क में आए  प्रमाण पात्र जारी करने के पहले ओझा जी और पंडित जी के बीच एक छोटा सा संवाद हुआ  वही इस किस्से की जान है .

“ पंडित जी आप मंदिर में पूजा करते हो  क्या कुछ मन्त्र आदि जानते हो अर्थात  पूजा के मन्त्र …? ‘


पंडित जी पूरे आत्मविश्वास से जवाब में बोले :

“ महाराज मंतर तो मैं बेद का  जाणूं छूं  पण चौड़ा मैं  न खै सकूं . “

अर्थात मन्त्र तो  महाराज मैं वेद के जानता हूं पर उन   मन्त्रों को पब्लिकली नहीं  कह सकता .

ये मर्यादा भी उस समय के सोच के हिसाब से समझी जा सकती  थी  और इसी का नतीजा था कि ओझा जी ने अपने कान में मन्त्र सुनाने को कहा पंडित जी को .

फिर क्या था अवसर पाकर पंडित जी ने एक वेद मन्त्र कहा ओझा जी को जिसे सुनकर ओझा जी  ने उनकी पात्रता प्रमाणित की .

पंडित जी बोले :

“  बामण की बामण  खोटी करै बो बेटी चो….. “   😊

मन्त्र का यही  अग्रभाग काफी था ओझा जी के लिए पूरे मन्त्र का अभिप्राय समझने के लिए  और तत्काल वो बोले अपने मातहदों से :

“ इन्हें आते हैं वेद - मन्त्र , इनका प्रमाण पत्र बना दीजिए . “

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समीक्षार्थ प्रस्तुत :

सुमन्त पंड्या .

@ गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .

      


      


Tuesday 6 October 2020

क्या सीखा मेरे पढ़ाए से : " खेंच दिया भाई साब ."

क्या सीखा मेरे पढ़ाए से  : "  खेंच दिया भाई साब "


 एक  सहपाठी दोस्त  पढ़ाई के बाद शोध के काम में लग गए थे  और मैं लग गया था पढ़ाने के काम में . दोस्त के भाई डिग्री कक्षाओं में पढ़ते थे . मेरा विषय भी पढ़ते थे . दोस्त आकर मिलवा गए  और परीक्ष के पहले मेरे सुपुर्द कर गए कि मैं उनको तैयारी करवा दूं . छोटे भाई नियमित रूप से आते , मैं अपना विषय उन्हें पढ़ा देता , आखिर काम भी यही था मेरा . रोज की चर्चा के बाद छोटे भाई कहते , " भाई साब इसका एक जिस्ट भी बनवा दीजिए . "

 मैं हर दिन के पढ़ाए का जिस्ट भी बनवा देता और अगले दिन के लिए ये पढ़ाई स्थगित हो जाती . डिग्री कक्षा के दोनों साल वो  पढ़ने आए परीक्षा के बाद कभी बताने नहीं आए कि पेपर कैसे हुए  , पर दोस्त से ही पूछा तो पता चला कि मेरा पढ़ाना सफल रहा , छोटे भाई के आशा के अनुरूप अच्छे नंबर भी आए . मुझे भी गर्व हुआ कि मेरा पढ़ाना सफल रहा .साल दर साल यह क्रम चलता रहा .फिर तो बी ए का तीसरा और आखिरी साल पूरा होना ही था .


बी ए फाइनल की परीक्षा के बाद एक दिन ये छोटे भाई रास्ते में मिल गए और मैंने जानना  चाहा  कि पेपर कैसे हुए तो बताने लगे कि  एक पेपर बहुत बढ़िया नहीं हुआ  और पेपर बिगड़ने की  बड़ी ' वाजिब '  वजह भी बता दी उन्होंने :

सैकिण्ड पेपर  के दिन करीब डेढ़ घण्टा खराब हो गया भाई साब , फ़्लाइंग मेरे कमरे में ही रही , फिर तो मैंने खेंच दिया भाई साब . "

 

अब मुझे ये तो समझ में आ गया था कि छोटे भाई जिस्ट बनवा देने को क्यों कहा करते थे , पर ये समझ में नहीं आ रहा था कि उनकी इस साफगोई पर कुर्बान जाऊं या अपना करम  पीट लूं  !

सहयोग : मंजु पंड्या .


सुप्रभात


सुमन्त


गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .

19 फरवरी 2015 .



Wednesday 23 September 2020

ब्लॉग लेखन  : बार बार का प्रयास 

कुछ मुश्किलें आ रही है  जैसे फ़ोटोएं उड़ जा रही हैं। नई फ़ोटो अपलोड हो नहीं रहीं । 


यांत्रिकी सीखनी पड़ेगी ।

Tuesday 28 May 2019

ठकुर सुहाती 

कपिल ( Kapil Bhatt ) ने कल पूछा


"फूफाजी एक शब्द याद आ रहा है। ठकुरसुहाती । आप से आज के परिप्रेक्ष्य में मार्गदर्शन की जरूरत है। प्रणाम।"


मैं बोला 

" कपिल सब तरफ इसी राह पर तो चल रहे हैं मीडिया के लोग अब मैं और क्या कहूं ।"

और कपिल का कहना था ;

मीडिया तो अब.....क्या कहूं। अस्थि विसर्जन हो गया है । बस।

कपिल 

भतीजे ने सोचने पर मजबूर कर दिया। कुछ न कुछ तो और क़हूं इस बारे में ।

ठकुरसुहाती कहने में हिंदी पट्टी के अख़बार और टी वी मीडिया सभी तो लहालोट हैं ऐसे में सवाल में ही जवाब छिपा है कपिल मैं और कुछ अतिरिक्त जोड़ने की ज़रूरत नहीं समझता । मीडिया का लम्बा अनुभव है कपिल को और वो सिर्फ मेरा मान रखने को सवाल पूछता है इसी में मुझे एक उम्मीद की किरण दिखाई देती है ।


अभी अग्रज मोहन श्रोत्रिय की एक पोस्ट देखी उसमें राजनीतिक दलों के लिए सलाह है , बात भी ठीक है :

देखना है आगे क्या होता है ।


"किसी भी राजनीतिक दल को, जो अपना काम बिना ध्यान बंटाए करना चाहता है, मीडिया का बहिष्कार कर देना चाहिए। 

अपने प्रवक्ता भेजना बंद कर देना चाहिए!


सरकार को समर्पित मीडिया आपके किसी काम का नहीं है!

आपका काम जनता को दिखना चाहिए, उसे ही महसूस भी करना चाहिए। "


अभी तो बात छेड़ी है , बात आगे चलेगी ….


खुश रहो कपिल ।


Saturday 27 April 2019

बाबा की याद 

एक ग्रुप फ़ोटो से ली गई  बाबा मदन जी महाराज की फ़ोटो ।
और ये अपण 
ट्रायल एरर किए जा रहे हैं ।

शुभ रात्रि ।