Monday, 22 January 2018

अपना सा लगे कोई : बनस्थली डायरी .



बनस्थलीडायरी  : अपना सा लगे कोई .

ये  उन दिनों की बात है जब   मैं बनस्थली में काम किया करता था  और  लेखा अनुभाग में वेतन का  चैक लेने जाना  पड़ता  था .

एक बार ऐसा हुआ कि वेतन मिलने में कुछ देर हुई  , वैसे ये कोई नई बात भी नहीं थी , वजह ये बताई गई कि वेतन पत्रक बनाने वाला बाबू छुट्टी पर चला गया था . उन दिनों ये बाबू कम्प्यूटर पर हिसाब बनाया करता था और शायद ये अकेला ही  उस अनुभाग में इस तंत्र का जानकार था इसलिए कुछ दिनों काम अटक गया था .  खैर बाबू लौट आया और  हिसाब तैयार हो गया . वेतन मिलने की बात सुन लोग हिसाब विभाग पहुंचने लगे और इसी सिलसिले में मैं भी हिसाब विभाग  गया था . वहां की एक छोटी सी बात आज बताता हूं .

बाबू के सामने :

जब वेतन का हिसाब समझने को मैं कंप्यूटर के सामने बैठा था तो मेरा ध्यान पड़ा कि इस बाबू का सिर मुंडा हुआ है . हमारे देश में अचानक अगर किसी का सिर मुंडा दिखे तो  लोग जो सवाल करते हैं वही सवाल मैंने किया  , मैंने पूछा :

“ क्या हो गया ? “

और ये बाबू बोला :

“ पिता जी नहीं रहे  ...। “

सहज दूसरा सवाल मैंने पूछा  :

“ उमर कित्ती थी पिता जी की ? “

उसका जवाब था :

“  बावन साल….”

ये जवाब सुनकर  मुझे धक्का सा लगा और उसकी वजह थी तदनुभूति  , मेरी उमर भी उस समय  बावन बरस की ही थी .

अब हालांकि ये कोई अनोखी बात नहीं थी , मृत्यु किसी भी उमर में हो सकती है  पर उस समय तो पूरे बावन बरस की उमर ने मुझे कुछ सोच में डाल दिया था और मैं इस लडके की सूरत निहार रहा था .

ध्यान से देखने पर  लगा कि ये बाबू एक दम मेरे बड़े बेटे जित्ता ही तो है  और इस उमर में इस पर विपदा आन पड़ी है  .

और सब बात हुई पर एक ख़ास बात जो मुझसे  सम्बंधित थी वो ये कि  पूरे हिसाब विभाग में ये लड़का मुझे अपना सा लगने लगा .

कभी कभी ऐसा होता है कि कोई क्यों अपना सा लगने लगता है हमें पहले से पता नहीं होता  .

विपत्ति अनायास किसी को अपना बना देती है ….

बनस्थली के अच्छे दिनों को याद करते हुए .

प्रातःकालीन सभा स्थगित …

अथ श्री नैटाय नमः

No comments:

Post a Comment