गए दिनों बनीपार्क बार बार जाना हुआ ।एक मार्ग पर पत्थर पर लिखा देखकर मैं थोड़ी देर के लिए ठहर गया , लिखा था ' धापी बाई मार्ग ' । मुझे एक पुराना प्रसंग याद आ गया । मुझे हरि भाई ने बताया था कि शर्मा जी बनस्थली फ्लाइंग क्लब से रिटायर होकर जयपुर में बसने जा रहे थे । बनी पार्क में अपने प्लाट पर उन्होंने मकान बनाया । बस्ती धीरे धीरे बढ़ रही थी । गली की संख्या और प्लाट नंबर से घर की पहचान थी ।इस बीच उनकी मा गुज़र गयी । अपनी मा की याद को जीवित रखने के लिए वे एक तख्ती बनवा कर लाये जिस पर लिखा था - धापी बाई मार्ग * । शर्मा जी ने तख्ती को अपनी गली के मोड़ पर गाड़ दिया और इसे * धापी बाई मार्ग* के रूप में प्रशस्त कर दिया ।
अब वे अपने डाक के पते में भी धापी बाई मार्ग लिखने लगे । वहां आकर बसने वाले अन्य लोग भी अपने पते के रूप में ' धापी बाई मार्ग , बनी पार्क , जयपुर ' लिखने लगे । पोस्टमैन भी इस मार्ग को धापी बाई मार्ग के रूप में जानने लगा और बढ़िया ये रहा कि नगरपालिका में भी यह धापी बाई मार्ग के रूप में दर्ज हो गया ।
यही है ' धापी बाई मार्ग ' के नामकरण की कथा । इस मार्ग के आरम्भ में पत्थर पर शर्मा जी की माँ का नाम उकेरा गया है ।
इस कहानी को ब्लॉग पर होना चाहिए ये सोचकर प्रकाशित किए देता हूं ।
अगले एडिट में इस मार्ग का फ़ोटो और इस बाबत आई टिप्पणियों को भी जोडूंग़ा ।
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