Tuesday, 25 December 2018

डिपार्टमेंट की याद : जयपुर डायरी 

जयपुर में होवूं या कहीं बाहर ऐसा अक्सर हो जाता है कि कभी किसी से मिलना इस रूप में सार्थक हो जाता है कि मेरे डिपार्टमेंट की पुरानी स्मृतियाँ जाग जाती हैं . ऐसा ही तो पिछले दिनों हुआ जब हम लोग वर्धमान पार्क घूमने गए और वहाँ पड़ोस में रहने वाले कपिल भरिल्ल हम लोगों से आकर मिले . कपिल बताने लगे अपना घर जो सावित्री पथ पर वर्धमान पार्क के पास ही तो है . उन्होंने और भी तो बातें बताई कि पिछले दिनों बेटे के पास अमरीका में रहकर आए हैं और अब घर लौट आए हैं . यहां अपने पिता , पत्नी घर परिवार के बारे में बहुत कुछ बताया . मैं एक बार को बहुत सी बातें सोचने लगा और उनकी बात सुनता रहा .उनका भरिल्ल सरनेम सुनकर मुझे दो नाम याद आए जो अच्छे से याद हैं मैंने उन्हें बताया भी कि यहां जब मैं यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट में पढ़ा करता था तो वहां मेरी सीनियर थीं चंद्रा भरिल्ल जो उन दिनों भांभरी साब के सुपरविजन में पी एच डी कर रही थीं और उधर जब मैं बनस्थली में पढ़ाता था तो चंद्रा जी की भतीजी मेरे पास पढ़ती थी जिसका नाम था किरण भरिल्ल . ओ हो ये दो नाम सुनकर तो कपिल भावुक हो गए , वहीं मुझसे बात करने को बैठ गए वर्धमान पार्क में . ये कपिल और कोई नहीं चंद्रा जी के ही बेटे हैं . चंद्रा जी अब नहीं रहीं पर उस ज़माने की उनकी स्मृतियों से जुड़ी हुई कितनी ही बातें की हमने और उनसे जुड़े रूवा नाम के एन जी ओ का भी ज़िक्र आया . कपिल मुझे बताने लगे कि कुछ समय रूवा में रहकर कपिल ने भी मां को सहयोग दिया था . इस तरह हमारे बीच पीढ़ियों का रिश्ता निकल आया .

ऐसा होता है जब अनायास अपरिचित परिचित होते हैं तो कितनी पुरानी स्मृतियाँ ताज़ा हो जाती हैं .


कपिल भरिल्ल