"फूफाजी एक शब्द याद आ रहा है। ठकुरसुहाती । आप से आज के परिप्रेक्ष्य में मार्गदर्शन की जरूरत है। प्रणाम।"
मैं बोला
" कपिल सब तरफ इसी राह पर तो चल रहे हैं मीडिया के लोग अब मैं और क्या कहूं ।"
और कपिल का कहना था ;
मीडिया तो अब.....क्या कहूं। अस्थि विसर्जन हो गया है । बस।
कपिल
भतीजे ने सोचने पर मजबूर कर दिया। कुछ न कुछ तो और क़हूं इस बारे में ।
ठकुरसुहाती कहने में हिंदी पट्टी के अख़बार और टी वी मीडिया सभी तो लहालोट हैं ऐसे में सवाल में ही जवाब छिपा है कपिल मैं और कुछ अतिरिक्त जोड़ने की ज़रूरत नहीं समझता । मीडिया का लम्बा अनुभव है कपिल को और वो सिर्फ मेरा मान रखने को सवाल पूछता है इसी में मुझे एक उम्मीद की किरण दिखाई देती है ।
अभी अग्रज मोहन श्रोत्रिय की एक पोस्ट देखी उसमें राजनीतिक दलों के लिए सलाह है , बात भी ठीक है :
देखना है आगे क्या होता है ।
"किसी भी राजनीतिक दल को, जो अपना काम बिना ध्यान बंटाए करना चाहता है, मीडिया का बहिष्कार कर देना चाहिए।
अपने प्रवक्ता भेजना बंद कर देना चाहिए!
सरकार को समर्पित मीडिया आपके किसी काम का नहीं है!
आपका काम जनता को दिखना चाहिए, उसे ही महसूस भी करना चाहिए। "
अभी तो बात छेड़ी है , बात आगे चलेगी ….
खुश रहो कपिल ।