बनस्थली की रेल यात्रा : स्मृतियों के चलचित्र .
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मैंने एक बार की बात बताई थी जब मैं इस रूट पर अकेले यात्रा कर रहा था और
नव सभ्य लोगों से पाला पड़ा था , मैंने चाकसू पर ग्रामीणों के लिए दरवाजा खोल दिया था . उस दिन समय कम था इस लिए और प्रसंग वहां जुड़ नहीं पाए थे . आज जितना सा समय है उसमें एक और प्रसंग ......
करते हैं बात ......
गाड़ी की बाबत :
--------------- लोहारू से सवाई माधोपुर के लिए छोटी लाइन की गाड़ी जाया करती थी . हम लोग भी सामान से लदे फदे इस में यात्रा करते और विद्यापीठ की लाल बस निवाई पर बनस्थली के लिए सवारियों को लेने आती . हम लोग यात्रा पूरी कर बनस्थली पहुंच जाते .
एक बार की बात :
------------------ जयपुर स्टेशन पर ब्रदर एस बी माथुर साब भी सपरिवार मिल गए , मेरे साथ भी परिवार था . हम दोनों को और बच्चों को भी अपना अपना साथ मिल गया . सुविधा पूर्वक गाड़ी में बैठ गए और अभियान दल गंतव्य की ओर चल पड़ा .
उस दिन कोई बरसों में ऐसा हुआ कि हाथ में एक क्लिप बोर्ड सा पकडे टी टी ई किसी छोटे स्टेशन पर हमारे डब्बे में चढ़ आए . सुन्दर व्यक्तित्व के स्वामी ये रेलवे अधिकारी सफ़ेद कपड़े याने कमीज पैंट काला ठंडा कोट और लाल टाई पहने थे और टिकिट चैक करने आए थे . मुझपर नज़र पड़ते ही उनके चहरे पर चमक आ गई और क्षण भर में मैं भी उन्हें पहचान गया . आखिर कौन थे वो...?
राजस्थान कालेज की याद आ गई .
------------------------------------ ये टी टी ई निकले राजस्थान कालेज में पढ़े हुए अवतार नारायण माथुर 'दीपक ' जो कालेज की हिंदी साहित्य परिषद के छात्र संयोजक हुआ करते थे . दीपक उपनाम से वो उन दिनों कविता कहानियां भी लिखा करते थे , पत्रिका भी निकाला करते थे .
पुराने दोस्त को इस भूमिका में पाकर मुझे तो बड़ा अच्छा लगा . दीपक बी ए करने के बाद ही भारतीय रेल की सेवा में चले गए थे . मुझे इससे याद आया के पी सक्सेना जीवन भर भारतीय रेल की सेवा में रहे और साहित्य जगत में भी अपनी अद्भुत रचना धर्मिता के लिए जाने गए .
मुझे आश्चर्य इस बात का भी हुआ कि दीपक को मेरा बनस्थली में होना पहले से पता था और सूचना का माध्यम थे बनस्थली से आते जाते यात्री जो उन्हें रेल की ड्यूटी के दौरान टकराए होंगे . ये वो ज़माना था जब बनस्थली में सब को सब जानते थे .
खैर टिकट तो चैक हो गए पर अंत में शानदार रहा ब्रदर का उठकर अवतार नारायण माथुर 'दीपक' का अभिनन्दन करना .
ब्रदर अंग्रेजी में बोले :
" वी हैव बीन ट्रेवलिंग ऑन दिस रूट फ़ॉर लास्ट सो मैनी ईयर्स . दिस इज फॉर द फर्स्ट टाइम दैट समवन हैज कम टु एग्जामिन अवर टिकेट्स ..
सो वी फेलिसिटेट यू ......"
दीपक को अगले डब्बे में जाना था पर मुलाक़ात बड़ी बढ़िया रही उस दिन .
और प्रसंग फिर कभी .
बिछुड़े साथियों और सुनहरे पलों को याद करते हुए .
प्रातःकालीन सभा स्थगित .
सुप्रभात .
समीक्षा: Manju Pandya
सुमन्त पंड्या
Sumant Pandya.
आशियाना आँगन , भिवाड़ी .
13 जुलाई 2015 .
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समझ नहीं पा रहा हूं ये संस्मरण ठीक से प्रकाशित हो पाया अथवा नहीं . मैंने तो सर्वानुमति पाकर इसे दर्ज किया है .
ReplyDeleteहो तो गया दर्ज ब्लॉग पर , मुझे जाने क्यों वहम हो गया था .
Deleteतीन बरस पहले ये संस्मरण लिखा था और दो बरस पहले प्रकाशित किया था ब्लॉग पर । मेरी स्मृतियों में ये बातें आज भी ताज़ा हैं ।
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