संध्या वंदन 💐
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आज जो बात बताने जा रहा हूं वो तो दुब्बी नामक एक छोटे से गांव के एक किसान की बरसों पहले कही बात है जो उसके सूक्ष्म निरीक्षण पर आधारित खरी बात थी और किसी भी सुनने वाले को मुस्कुरा देने को बाध्य कर देने जैसी बात कहलाएगी आज भी . इस बात को बताने से पहले मुझे इस बात की पृष्ठभूमि बतानी पड़ेगी सौ साल पीछे लौटकर . वही प्रयास करता हूं , बहुत सी बातें बताऊंग तब आप समझ पाएंगे उस भोले ग्रामीण की बात . इसमें मेरी , इसकी , उसकी , सब की बात जुड़ेगी तब होगी बात साफ़ .
गए दिनों अपने अभिन्न मित्र श्री गोविन्द राम केजरीवाल को एक शाम मैंने टिप्पणी में कहा था कि अगली पोस्ट “ संध्या वंदन “ शीर्षक से ही होगी , उस वायदे का निर्वाह भी इस पोस्ट से हो जाएगा .
गए दिनों हम दिल्ली में थे मैं घर की बालकॉनी में खड़े खड़े सूर्यास्त का फोटो खींचकर आपको भेजता और संध्या वंदन लिख देता वो नई सभ्यता में गुड ईवनिंग कहने का देशी चलन बनाया , यहां गुलमोहर में आकर भी मैं सोशल मीडिया पर ,” अभी तो हम हैं “ ऐसा जताने को ऐसा कर देता हूं . पर सौ साल पहले जब हमारे घर में ये नई सभ्यता घुसी नहीं थी तब संध्या वंदन का एक विशिष्ट अभिप्राय था वो था पूजा पाठ वैदिक ऋचाओं का उच्चारण साथ में .
सम्प्रति पितृ पक्ष में इस प्रसंग को याद करके मैं अपने पूर्वजों को भी याद करता हूं और उनकी जीवन शैली का भी अल्प उल्लेख आज करता हूं . देशी राज्यों का ज़माना था ये लोग अपने पांडित्य , ज्योतिष ज्ञान , आयुर्वेदिक चिकित्सा और ऐसे ही ब्राह्मणोचित लक्षणों के कारण जाने जाते थे . अतिराम जी के वंशज , मेरे पूर्वज किस प्रकार गुजरात से चलकर राजस्थान आए वो कहानी जैसी मैंने सुनी वो अपने मिलने वालों को मैं यदा कदा सुनाया करता हूं ,उस कथा के विस्तार में अभी मैं नहीं जाऊंगा .
ये लोग अपना भोजन खुद तैयार करते थे और जैसा आज भी गुजरातियों की पतली पतली रोटी होती हैं वैसी ही रोटी बनाते खाते थे . ऐसे ही एक पूर्वज के बारे में किस्सा है जो दुब्बी गांव गया था जो राज्य के द्वारा अनुदान के रूप में उसे मिला था .
रोटी रोटी का फरक
****************** कृषक ग्रामीण की रोटी तो मोटी रोटी होती है और वो भी तब तो मोटे या मिश्रित अनाज की हुआ करती थी जिसे आप टिक्कड़ कह सकते हैं . इसके विपरीत इस गुजराती मूल के व्यक्ति की रोटियां छोटी और पतली पतली रही होंगी जिनका उल्लेख आएगा ही अभी जब बात पूरी होने को आएगी . उस ग्रामीण ने इन महाराज की रोटियां भी देखीं और सायंकालीन गतिविधि भी देखी उसपर ही बात है .
और अब संध्या वंदन 💐
------------------------ जब ये सज्जन , मेरे पूर्वज संध्या वंदन माने पूजा पाठ कर रहे थे तो उस प्रक्रिया के दौरान विधान के अनुसार आचमन की भी क्रिया हुई . आचमन के अंतर्गत उन्होंने एक आध चम्मच पानी भी मुंह में फेंका और इस दृष्य को अपनी आंखों से देखकर वो भोला ग्रामीण ठगा रह गया . और फिर वो जो बोला वो ही आज इस किस्से का मार्मिक वाक्य है . ये एक मौलिक अभिवक्ति है जो इतिहास में दर्ज होने लायक है . कोई अनुवाद इस खूबसूरती से अभिव्यक्त शायद न कर पावे .
वो भोला कृषक बोला :
“ जब तो पतरी पतरी पापरी न नै खाबे करो , खाबे करो
अब चुच्ची न तै पानी पी रो है . “ 😊
याने तब तो पतली पतली रोटियों को खाए गया , खाए गया और अब चम्मचों से पानी पी रहा है . याने इसने पानी के लिए भी जगह खाली न छोड़ी .
अब उस भोले किसान को संध्या वंदन और उसमें आचमन से क्या लेना देना . वो जैसा समझा वैसा उसने कहा .
वे दिन और वे लोग ….
इति . 💐
संध्या वंदन 💐
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सुमन्त पंड्या .
@ गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .
गुरूवार 22 सितम्बर 2016 .
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