Saturday, 15 July 2017

सफ़र के साथी श्याम जी की बाबत संस्मरण  : स्मृतियों के चलचित्र 

सफ़र के साथी : श्याम जी की बाबत :

______________परसों शाम जब शिमला से रवाना होकर सड़क मार्ग से चंडीगढ़ पहुंचे तो हमारे लिए इस यात्रा के मजबूत साथी थे श्याम जी जो हमारे लिए कितनी सावधानी से आड़े तिरछे रास्तों में ट्रवेरा नामका वाहन चलाकर सुरक्षित नीचे ले आए थे . जब वो हमें और हमारे सामान को उतार चुके तो अनुज ने कहा :

" पापा , इनकी फोटो खींचना चाहोगे आप ?"

मैंने तुरंत हां कहा . मुझे भी लग रहा था मानों किसी अपने से बिछड़ रहा हूं . मैंने तस्वीर ले लेने की अनुमति चाही तो श्याम जी ने अनुमति के साथ ही लगभग मेरी ही शैली में जवाब दिया :

" फोटो तो ले लो साहेब , और कुछ भी करना पर पुलिस में मत दे देना , अभी बेटियों की शादी बाकी है ."

मुझे लगातार ही उनका बात करने का अंदाज तो लुभा ही रहा था . यहां तो मेरा ," सपोर्ट फॉर द गर्ल चाइल्ड " का सतत विचार भी आ गया था .

मैं फोटो खींचने का प्रयास कर रहा था पर अस्त हो रहे सूरज की रौशनी दूसरी ओर से आ रही थी इस लिए मैं फोटो ठीक से खींच नहीं पा रहा था , आखिर दूसरी ओर जाकर अनुज ने ही खेंची ये फोटो .

जीवन संगिनी ने इस हड़बड़ी में भी फोटो लेने की अनुमति दे दी थी और वहां खड़े दूसरी मोटरों के ड्राइवर यह कहकर मजे ले रहे थे :

" हमने पहली बार देखा है कि सवारी उतर कर किसी ड्राइवर की फोटो लेवे ."

मैत्री का संक्षिप्त इतिहास :

__________________ कई एक बार तुरता फुरती में मोटर रुकवाई जो दो बच्चों को यात्रा में उबकाई , उल्टी की शिकायत से निबटने के लिए जरूरी हो गया था. बड़ी मादद की श्याम जी ने , हिम्मत बंधाते हुए उतार पर ले आए . एक मौके पर मैंने पूछा :

" आपका नाम क्या है ?"

मुझे ड्राइवर साब कहने के बजाय नाम बोलना ही अच्छा लगता है , इस लिए पूछा था , मैंने तो . पर उन्होंने कहा :

" नाम बताऊंगा भी और दिखाऊंगा भी , "

तुरंत ही उन्होंने अपने नाम का बैज निकाला जिस पर ' श्याम मोहन ' नाम और लाइसेंस नंबर लिखा था . ऐसे सप्रमाण बात रखने का अंदाज मुझे पसंद आया हालांकि मुझे तो केवल संबोधित करने को ही उनका नाम जानना था. पर वो बोले कि उनके लिए तो यह जरूरी है . ये प्रमाण साथ न हो तो पुलिस हजार रूपए का चालान वसूल लेवे .

थोड़ा आगे चलकर श्याम जी ने पूछा कि क्या चाय के लिए किसी स्थान पर रुका जाए . मैं उस समय उनके पास ही बैठा था पर निर्णय लेने में असमर्थ था क्योंकि आम राय ये थी कि अभी बच्चे सो रहे हैं न रुका जाय और थोड़ा और रास्ता तय हो जाय .

ऐसे में मैंने कहा :

" मैं चाय पीने के पक्ष में तो हूं पर अल्प मत में हूं इस लिए ये फैसला नहीं हो सकता ."

तब बोले श्याम जी :

" पर मैं भी तो चाय पीना चाहता हूं , मैं हूं न आपके साथ ."

और बन गई बात मैंने कह दिया :

" अरे फिर कहां दिक्कत है , जब स्टीयरिंग व्हील आपके हाथ में है . हम दोनों तो रुकेंगे ही चाय पीने को और जो कोई सहमत हो आए हमारे साथ ."

और इस प्रकार अल्प मत की बात सर्वानुमति में बदल गई . और इस प्रकार हुआ हमारा चाय के लिए ठहराव .

फिर तो वहां रुके भी , चिप्स की भी खरीद हो गई और बैठने की जगह का बदलाव भी हो गया सवारियों का . फिर हुआ पहाड़ी बंदरों का साक्षात्कार पर इस जगह वो पेड़ों पर चढ़े हुए ही देखे गए ....

लंबी बातचीत के चलते श्याम मोहन इतने अपने हो गए कि बिछुड़ते हुए मैं उनकी तस्वीर ले लेने का लोभ संवरण न कर पाया .

सुप्रभात .

प्रातःकालीन सभा स्थगित .

समीक्षा :


सुमन्त

Sumant Pandya.

आशियाना आंगन , भिवाड़ी .

15 जून 2015 .


No comments:

Post a Comment