________________ ये पिछली शताब्दी के उन दिनों की बात है जब जयपुर सवाई माधोपुर रेलवे रूट पर छोटी लाइन थी और तदनुरूप ही गाड़ियां चला करती थीं . जयपुर स्टेशन पर कुछ स्थानाभाव के चलते बीकानेर एक्सप्रेस का सवाई माधोपुर तक विस्तार कर दिया गया था और वापसी में यह गाड़ी जब जयपुर लौटती तो सप्ताहान्त में जयपुर आने को हम लोग भी बनस्थली निवाई रेलवे स्टेशन पर ये गाड़ी पकड़ा करते थे . थोड़ा बहुत समय निवाई स्टेशन के बाहर बीतता , भंवर नाम का एक युवक मेरी निजी आवश्यकता को जानता था और मुझे अच्छे से पहचानता था . वो एक पान का बीड़ा लगाकर देता और मैं भी यार दोस्तों के साथ उस गाडी में सवार हो जाता . उसी गाड़ी में कई एक लोग सवाई माधोपुर जयपुर की दूरी रोजाना नापने वाले भी मिल जाते जिन का आधा सफ़र तय हो चुका होता , किस्सागोई के चलते उन लोगों से भी अपना याराना था उन दिनों तो . मैं तब तक ही चुप रहता जब तक भंवर का खिलाया बीड़ा मेरे मुंह में पिघल न जाता और फिर सवारियों से संवाद शुरु हो जाता . इस संवाद में धीरे धीरे सभी प्रकार के लोग भागीदार बनते .
एक बार की बात :
____________ सांगानेर जंक्शन पर बीकानेर एक्सप्रेस आकर खड़ी हो गई और चलने का नाम न लेवे . पता लगा इंजन फेल हो गया और अब गाडी आगे चलने में समय लगेगा . कुछ उत्साही लोग प्लेटफार्म पर उतर कर जानकारी भी ले आए पर समाचार कोई उत्साह जनक नहीं थे . रख रखाव की कमी के चलते छोटी लाइन के इंजनों की हालत ऐसी ही थी कि इस इंजन को तो लोको तक घसीटने की ही नौबत आ गई थी उस दिन .
सारा माजरा भांपकर कोई कोई लोग ट्रेन छोड़ कर सड़क मार्ग से कोई सवारी पकड़ने को उतर भी लिए थे . मैं उन में से नहीं था , एक तो मुझे वहां के भूगोल और सड़क मार्ग से दूरी का अंदाज था और दूसरे अन्य सह यात्रिओं का साथ था जिसे छोड़ने का मन नहीं था .
अब बीच बीच में सूचनाओं के रूप में होने वाले हस्तक्षेप को छोड़कर बाकी समय चर्चा के लिए उपलब्ध था . मैंने आदतन किस्सागोई शुरु की , कुछ लोग ख़ुशी से और कुछ मजबूरी में मुझे सुन रहे थे , कोई अन्य विकल्प न होने से अधिकांश लोग चर्चा में भागीदार बने और ये पता भी न चला कि कब रात के बारह बज गए और तारीख बदल गई .
उस दिन परिसंवाद का सांगानेर चैप्टर कुछ ऐसा रहा कि कई एक सहयात्री मुझे ऐसे जानने लगे कि वे आगे भी संपर्क में आए .
जयपुर पहुंचने में देर हुई , घर पर चिंता हुई ये सब तो ठीक पर जब जयपुर से गए दूसरे इंजन की मदद से गाड़ी जयपुर आई , यात्रा पूरी हुई तो मैंने तो इसे भारतीय रेल की और से अपने को मिला पुरस्कार ही माना वरना जीवन के विविध क्षेत्रों से आए इतने लोग एक साथ ऑडिएंस के रूप में मुझे कैसे मिलते .
उस दिन की किस्सागोई से मेरा जी बहुत हल्का हुआ था .
उन अच्छे दिनों को याद करते हुए .
प्रातःकालीन सभा स्थगित .
इति .
सुप्रभात .
समीक्षा और समर्थन :
सुमन्त पंड्या
Sumant Pandya .
आशियाना आँगन , भिवाड़ी .
16 जून 2015 .
ब्लॉग पर पुनः प्रकाशित
१५ जुलाई २०१७ ।
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