(१)
किसी ज़माने की मधुबन , उदयपर की बात है वही बताता हूं और ये बात क्यों याद आई ये भी ।
दलाल सदन में किसी रात बड़ी भारी दावत हुई , बहुत सारे लोग आए और देर रात तक चली दावत ।
अगले दिन सुबह का परिदृष्य ये था कि रात हुई दावत के प्रमाण घर के अहाते में बिखरे पड़े थे और बराबर के घर के अहाते में खड़े बुज़ुर्गवार ये बड़बड़ाते हुए सुने गए थे :
“ अतरा मनख जीम्या , अतरा मनख जीम्या …. अठी तो खेरो ही नी आयो !”
वे शायद बीती रात की दावत में आमन्त्रित नहीं थे , शायद ये ही खिन्नता का कारण रहा हो । ख़ैर , जो भी रही हो बात , मुझे तो कहन याद आ गई वो ही दोहराई है ।
(२)
एक और कहन है गोस्वामी तुलसी दास की , वो इस प्रकार :
“ सकल पदारथ हैं जग मांही। करमहीन नर पावत नाहीं ।।”
बातें याद क्यों आयीं ? वही बताता हूं ।
जयपुर के जवाहर कलाकेंद्र स्थित इंडियन काफ़ी हाउस में गए हुए थे घर के सब लोग और सब के लिए विभिन्न भोज़्य पदार्थ उपलब्ध थे जो सब के सब मौज शौक़ से खा रहे थे पर मैं उन में से एक के लिए भी अधिकृत नहीं था । मेरे लिए तो घर से रोटियाँ ले जाईं गईं थी मैंने वो ही खाईं । ये सब स्वास्थ्य कारणों से परहेज़ बरतने के कारण , ख़ैर मेरा पेट भर गया , कोई ख़ास बात भी नहीं वैसे ।
ऊपर से सब ने मँगाकर शरबत भी पीया मेरे लिए तो वो भी निषिद्ध था ।
ले देकर हारे के हरिनाम एक काफी ही बच रही थी जो मैं पी सकता था पर वो भी तो आती सी आवे । जब सब लोग शरबत का पूरा पूरा मज़ा ले चुके तब उसके बाद आई काफ़ी जिसमें तो ख़ैर और लोग भी मेरे साथ शामिल हुए ।
काफ़ी का ऐतिहासिक और सम सामयिक महत्व
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बनस्थली में सेवाकाल के अंतिम दशक से लगाकर गए दिनों यहां और अन्यत्र रहने के दौरान भी मेरी भोर में काफ़ी बनाकर पीने की आदत ही रही । “ प्राइवेट काफ़ी डन “ ये भोर की जगार की एक स्टेटस रहती आई है । कुछ तकनीकी कारणों से ये गतिविधि भी गए कुछ दिनों से स्थगित रही , ये भी एक बात है ।
जब भी इंडियन काफ़ी हाउस गया , चाहे विद्यार्थी जीवन नें चाहे बाद में , काफ़ी पीने का तो शौक़ रहा ही था ।
ऐसे में जब उस दिन काफ़ी का प्याला एक अंतराल के बाद सामने आया तो उसकी फ़ोटो ये कहते हुए अपलोड की थी कि इस बाबत इबारत बाद में लिखूंग़ा ।
ये हुई आज वो बक़ाया इबारत पूरी ।
सुप्रभात
नमस्कार
सुमन्त पंड़्या
गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर ।
गुरुवार २९ जून २०१७ ।
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