Sunday, 25 June 2017

बोका की मां आवै ही छी ए  ..   : राजस्थानी बोध कथा :

राजस्थानी बोध कथा :


राजनीति में शिखर पुरुष की डेमोक्रेसी देखकर ही ये बोध कथा याद आई ।

क्या है बोधकथा ?

लीजिए ----


सासू मां का राज पाट तो पहले ही छिन गया था अब उनकी उपेक्षा भी होने लगी थी । खिन्न मनस्थिति में वो घर के बाहर चबूतरे पर जा बैठी और दिन भर बाट जोहती रही कि कोई न कोई तो उनकी सुध लेगा , उन्हें मनाने आएगा ।

दिन बीत गया , कोई न आया अब अंदर वापिस भी कैसे जाएं ?

जब कोई उपाय न सूझा तो घर की बकरी , जो जंगल से चर कर लौट आ रही थी , उसके सींग में अपना पल्लू फंसाकर कुछ इस तरह बुद बुदाती हुई घर में घुसी :


" बोका की मां मैं तो आवै ही छी ए , पण म्हारो मान कौनै ! "


ऐसा लग रहा था मानो बकरी उन्हें मनाकर घर के अंदर ला रही है ।

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नमस्कार ।

संध्या वंदन ।

इसे मेरी नान पॉलिटिकल पोस्ट के रूप में स्वीकार कीजिए ।


गुलमोहर , जयपुर ।

शनिवार २४ जून २०१७ ।


ब्लॉग पर प्रकाशित 

जयपुर 

२६ जून २०१७ ।

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