Friday, 9 June 2017

अजमेर यात्रा : पिछली शताब्दी की याद - स्मृतियों के चलचित्र 

अजमेर यात्रा : पिछली शताब्दी की एक याद .

_______________________________ #अजमेरयात्रा उस शाम मैं जयपुर के सिंधी कैम्प बस स्टैंड से बस बदलकर अजमेर जाने वाली बस में बैठा था और एक ख़ास निमित्त से अजमेर जा रहा था . अगले दिन मुझे महार्षि दयानंद विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त्र विभाग के अधीन प्राध्यापकों के एक रिफ्रेशर कोर्स में भाषण देना था . 

पहला सवाल तो रात पड़े ठिकाने पर उतरने और पहुंचने का था .बचपन में कुछ महीने अजमेर शहर में रहा और स्कूल की ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ा भी था पर शहर के भूगोल का तब का ज्ञान बेमाने था . मैंने बस में नजर दौड़ाई कि तभी एक जाना पहचाना व्यक्ति दीख गया और तुरंत मेरी सहायता को मेरी सीट के पास मुझे समझाने को चला आया . ये रुजबेह नामक युवक था जो उन दिनों बनस्थली में मैनेजमेंट फैकल्टी में प्राध्यापक था और उस रात अपने घर अजमेर जा रहा था . उसने मुझे उस स्थान पर उतरने की सलाह दी जहां से मैं पैदल पैदल विश्वविद्यालय परिसर पहुंच सकता था और मैंने वैसा ही किया भी था .

सुविधा पूर्वक मैं गेस्ट हाउस तो पहुंच गया वहां मेरे ठहरने खाने की व्यवस्था थी , मेरा नाम दर्ज था , पर सवाल तो अगले दिन का था , बोलना क्या है ये तो तय नहीं था . मैं उसी परिसर में विभाग के मुखिया राजेन्द्र जोशी के घर पहुंचा , मुझे कोई ऐसा प्रसंग चुनना था जो अब तक इस जमावड़े में अछूता रहा हो . खैर उनसे मिलकर यह भी तय हो गया कि मैं हंटिंगटन के विचार " क्लैश ऑफ सिविलाइजेशन " पर बात करूंगा और वही काम मैंने अगले दिन किया भी .


अब कुछ इतर बातें : 

_____________उस रात मुझे लगा कि जीवन संगिनी भी मेरे लिए वैसे ही चिंतित थीं जैसे मां बाप अपने अल्प वयस्क बालक के लिए चिंता करते हैं कि ठिकाने पर पहुंचा कि नहीं . मिसेज जोशी से मिलने पर पता लगा कि उनका फोन इस बाबत वहां पहले ही आ चुका था . खैर पास के पी सी ओ पर जाकर मैंने घर पर फोन किया और अपने कुशल समाचार दिए , बहरहाल जोशी जी के घर पर उस समय एस टी डी की सुविधा नहीं थी .

रात काली कर दी कुछ कागज़ मांडने में जिन्हें मैं उन दिनों ' तीतरी' कहा करता था ताकि बोलते बोलते नींचे झांकूं तो कुछ सहारा मिल जाए .

सुबह हुई , पुरोहित जी मिल गए जो उदयपुर से आए थे , जोशी जी के तो वे गुरु थे ही उनका स्नेह भाव मेरे प्रति भी वैसा ही था , अपने सेवा काल की समाप्त्ति के बाद वे कई बार बनस्थली भी आ और पर्याप्त समय ठहर चुके थे इस नाते मुझे अच्छे से जानते थे . पुरोहित जी से मिलने पर मैंने रात की बात बताई कि ,"ठंड लगी" तो वो कहने लगे:" आप बैड कवर ही ओढ़ लेते , लगता है आप अनुभवी सेमिनारिस्ट नहीं हैं , ऐसी जगहों में कम ठहरे हैं " और मैं ऐसा अनाड़ी था तब कि जो बिछा है वही ओढ़ना है मुझे तो ये भी नहीं पता था . खैर रात हुआ जो हुआ , सुबह आदतन जल्दी उठा था , शक्ल सूरत ठीक की ( हजामत बनाई ) उपलब्ध गरम पानी से नहाया और तैयार होकर पुरोहित जी के साथ हो लिया . ठण्ड का बखत था इस लिए खूब सारे कपडे पहन लिए इससे शरीर की मेरी कमजोरी भी प्रायः छिप जाया करती है .


मौकाए वारदात पर :

______________ उस दिन मेरी ख़ुशी का पारावार इसलिए नहीं था कि कोर्स में भागीदार मेरे पास पढ़ी हुई दो छात्राएं - राजरानी माथुर और अलका चौहान भी वहां उपस्थित थीं जो अब पर्याप्त अनुभवी प्राध्यापिकाएं थीं और अपने अलग अलग समय में बनस्थली से पढकर गईं थीं . एक ने उस दिन मेरे स्वागत के निमित्त बोला और दूसरी ने आभार व्यक्त किया था . खैर और बात करें ....

अपने सम्बोधन में मैंने कोर्स के भागीदारों को पर्याप्त आदर देते हुए अपने साथी ही माना था और किसी भी रूप में ये नहीं जताया था कि मैं कोई ऐसा विद्वान हूं कि उनके सब प्रश्नों का उत्तर दे दूंगा . पर एक छोटी सी बात जो उस दिन की याद रही वही बताता हूं ...

 एक युवा प्राध्यापक जो राजस्थान विश्वविद्यालय के ही पढ़े हुए थे एक ऐसी बात ले आए जिसका उत्तर देने में द्वंद्व था . ये गेना साब की लिखी पाठ्य पुस्तक में लिखे का हवाला देकर सवाल पूछने लगे ..


गेना साब के बारे में..

_____________ वे मेरे गुरु भाई भी हैं और गुरु भी हैं , उन्हें मैं तब से जानता हूं जब उनकी गिनती युवा प्राध्यापकों में होती थी मैं विभाग में विद्यार्थी था और एक और बुजुर्ग पीढ़ी के लोग थे पढ़ाने के लिए . आगे चलकर उन्होंने बड़ी बढ़िया किताबें लिखी हैं उस पेपर के लिए जो वो पढ़ाया करते थे . मुझे तो एक बार वे स्वयं और एक बार उनका प्रकाशक किताबों की प्रतियां भी दे गए थे , मैं भी कम्पेरेटिव पॉलिटिक्स का पेपर पढ़ाया करता था . 

पर जिस विचार को लेकर जिस धरातल पर उस दिन चर्चा हुई थी उसमें पाठ्य पुस्तक का जिक्र तो पूरी तरह सन्दर्भ से बाहर था क्योंकि उन किताबों में वैसा उल्लेख ही नहीं आया . नॉटी बॉय स्टाइल में युवक ने तो सवाल दाग दिया था और मुझे देना था उसका उत्तर . मैनें उन्हें कोई उत्तर नहीं दिया और शेष उपस्थित लोगों को जो कहा वो यह था :


" इन्हें मुझसे कोई सवाल थोड़े ही पूछना है .... इन्हें तो ये सिद्ध करना है कि ये भी मेरे गुरु भाई हैं ..... और मैं इनकी ये हैसियत स्वीकार करता हूं ."


इस से अधिक और भला मैं क्या कहता .


अपने जीवन के सुनहरे पलों को याद करते हुए .

आज की प्रातःकालीन सभा स्थगित 

सुप्रभात .


सुमन्त पंड़्या 

गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .

8 जून 2015 .

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चर्चित पोस्ट आज ब्लॉग पर प्रकाशित  

जयपुर 

९ जून २०१७ ।

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