Friday, 9 June 2017

बैंक में अपनी खातेदारी : स्मृतियों के चलचित्र 

बैंक में अपनी खातेदारी  : स्मृतियों के चलचित्र 

बनस्थली डायरी

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सन दो हजार चार में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया बनस्थली में पांव पसार रहा था . इस बैंक के वहां आने और बैंक को वहां लाने का फैसला तो प्रबंध का था उस बाबत न मुझे कुछ मालूम और न मुझे कुछ कहना . नतीजे में हो ये रहा था कि विद्यामंदिर में बैठकर बैंक वाले अधिकाधिक कर्मचारियों के खाते खोल डालने पर उतारू थे . तस्वीर भी वो ही उतार लेंगे , किसी आई डी की भी मांग नहीं करेंगे और तो और जीरो बैलेंस पर भी खाता खोल देंगे , डेबिट कार्ड भी बनवा देंगे . और जाने क्या क्या ?..

मैं भी आगया इस लपेटे में पर मेरी उस क्षण स्थिति ये थी कि जेब में फूटी कौड़ी नहीं थी और मेरे लिए ये अपने उसूल के खिलाफ था कि बिना कोई नकदी दिए खाता खुलवाऊं , आखिर जिस दिन मैं अठारह साल का हुआ उस दिन काकाजी मुझे बैंक ले गए थे , पांच रूपए नकद की पे इन स्लिप भर कर मेरा खाता खुलवाया था और उसी दिन हाथ के हाथ तीन सौ रुपये और जमा करवाए थे . बैंक ने तत्काल पासबुक और चैक बुक जारी कर दी थी , ये बात थी जयपुर की जिसे तो मैं अपने बचपन की यादों से जोड़ता हूं . उसी दिन मेरे दोनों भाइयों के भी खाते खुलवाए गए थे उसकी बात तो वो दोनों ही बताएंगे मैं तो अपनी बताऊं वो बैंक वाले मुझे कहते हैं कि के वाई सी कंप्लाइंट नहीं है और या तो के वाई सी लाओ या बंद करो ये खाता . ये शहर का सबसे पुराना वो बैंक है जिसकी सबसे ज्यादा शिकायतें बैंकिंग लोकपाल के पास आती हैं . खैर वो तो मैं अलग से निबटूंगा किसी रोज अभी तो चलें वापस बनस्थली .


विद्यामंदिर - लेखानुभाग ( अप्रेल 2004 .)

____________________________ इस मामले में मैं अपने को भाग्यशाली ही मानता हूं कि जब भी मुझे लगा कि मदद चाहिए तो कहीं न कहीं से , किसी न किसी से तुरंत मदद मिली .

उस दिन भी यही हुआ अपनी प्रतिष्ठा को , उसूल को बनाए रखने के लिए तब के डिप्टी रजिस्ट्रार द्विवेदी जी से उचंत में लिए रूपए /₹500 और खाता खुलवा डाला जो खातेदारी आज भी जारी है . खैर अनुभव अच्छा ही रहा . बचपन के पांच रूपए की उस दिन के पांच सौ से बराबरी उसी दिन देखी मैंने .


स्टेट बैंक की निवाई शाखा में .

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कुछ दिनों बाद बैंक की शाखा में बेटे के साथ पहुंचा और कैशियर के कैबिन के सामने कोई इन्कम टैक्स चालान की रकम जमा करवाने को मैं खड़ा ही हुआ था कि कुछ ऐसा हुआ जिसका अर्थ मैं न समझ पाया . कैशियर के रूप में बैठा अनजान व्यक्ति सीट से उठ खडा हुआ और मुझसे बोला :


" आपने क्यों तकलीफ की , भैया को ही भेज दिया होता . इतनी गर्मी में

..."

खैर मामला मेरा था इसलिए गया था मैं तो , फटफटिया चलाने के चक्कर में ले गया था बेटे को तो , तो हो गई वो बात .


जयपुर की बस में बनस्थली मोड़ पर :

_________________________एक दिन बनस्थली मोड़ पर निवाई से आ रही जयपुर जाने वाली बस में मैं चढ़ा तो बस भरी हुई थी पर मुझे बस में चढ़ आया देखकर एक व्यक्ति अपनी अच्छी भली सीट छोड़कर उठ खड़ा हुआ और मुझे बैठाकर ही माना . आश्चर्य कि ये वही व्यक्ति था जो कैशियर कैबिन में उस दिन अपनी सीट से उठ खड़ा हुआ था !


तीसरी बार आमना सामना :

__________________एक दिन शाम के बखत विद्यामंदिर में बैंक वालों ने फिर से कैम्प लगाया ग्राहक सेवा के निमित्त और मेरा वहां जाना हुआ डेबिट कार्ड में अशुद्ध छपे मेरे नाम को सुधरवाने बाबत बात करने को . उस दिन महिमा को घर से बुलाया मैंने फोन करके और मेरे लिए गर्व की बात थी कि उसने ₹5000/ की रकम देकर खाता खुलवाया जो उसके लिए नक्कछू रकम थी उसे नकद वेतन मिलने लगा था .

उस कैम्प में ख़ास बात ये थी कि कैशियर के रूप में वही व्यक्ति बैठ हुआ था जिससे दो बार आमना सामना हो चुका था और मैं उसे जानता न था .

पूछा मैंने : "कौन है ये व्यक्ति ?"

उत्तर मिला :" ये हनुमान है साब ."~


इस व्यक्ति द्वारा किए गए दो बार के व्यवहार से मेरी उत्सुकता चूंकि इतनी बढ़ गई थी इस लिए मैं उठकर उसके पास गया और नाम से संबोधित कर पूछा:

" हनुमान जी , पहली बार बैंक में आप अपनी सीट छोड़ कर उठ खड़े हुए थे , दूसरी बार बस में मुझे सीट पर बैठाने को उठ खड़े हुए और आज आप ने पांच हजार की रकम बिना गिने रसीद दे दी जबकि अपना तो कोई पूर्व परिचय भी नहीं रहा , ऐसा कैसे .? "

हनुमान जी ने एक अति संक्षिप्त वक्तव्य देकर मेरे सवाल को ही लगभग खारिज कर दिया .

" आप मेरे लिए पिता समान हैं इसलिए ."

 आज की दुनियां में आदर पाकर भी लोग शंकालु हो जाते हैं , मेरे लिए तो वहां शंका करने की कोई वजह नहीं थी .


साक्षात हनुमान जी की मधुर स्मृति के साथ ,

विलंबित प्रातःकालीन सभा स्थगित 


सुमन्त  पंड़्या 

गुलमोहर कैम्प, जयपुर .

4 जून 2015 .

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बैंक खातेदारी विषयक एक और चर्चित संस्मरण आज अपने ब्लॉग पर प्रकाशित कर रहा हूं । इसका लिंक भी फ़ेसबुक पर देऊंगा ।

जयपुर 

शुक्रवार ९ जून २०१७ ।

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