Monday, 31 July 2017

बागळ कै बागळ पांवणी

"बागळ कै  बागळ पांवणी ,
एक डाळ कै तू भी लूम्ब जा ."   #फेसबुक      #बागळ  #sumantpandya

ये राजस्थानी की एक कहावत है जिसका अर्थ है कि चमगादड़ के यहां मेहमान आवे तो ये ही खातिर तवज्जो है कि पेड़ की एक डाली लटकने को उसे भी मिल जावे .

आएगा इसका स्पष्टीकरण कि ये कहावत क्योंकर याद आ गई .

एक और कहावत कि

हाजिर में हुज्जत नहीं,
गैर की तलाश नहीं .

अर्थात जो है वो सामने है और छिपाने को बाद में दिखाने को कुछ नहीं है अपने पास .
अब आवूं आज की बात पर .

कई एक मैत्री प्रस्ताव आते हैं . अब अगर प्रस्तावक जाना पहचाना है तो कोई बात ही नहीं है , तुरंत स्वीकार किए लेता हूं , आखिर फेसबुक पर रोज बरोज कुछ लिखता हूं इसी लिए तो कि बात अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचे . अभी मैत्री क्षेत्र इतना नहीं फैला है कि जगह ही खाली न हो .

कभी कभी अनजाने लोगों से प्रस्ताव  आते हैं तो पूछ बैठता हूं :

" कैसे पधारना हुआ ?"

" कोई ख़ास नहीं यों ही चैट करने के लिए ." ऐसा कुछ उत्तर मिलता है .

और तब मुझे कहना पड़ता है कि अन्यथा न लेवें , मेरे पास चैट करने के लिए समय नहीं है .
मुझे लगता है ये चैट का इच्छुक कुछ ऐसा है जो मुझे बातों में उलझाकर मेरी क्लास का उपलब्ध समय नष्ट कर डालना चाहता है . मेरे यहां कोई कालीन नहीं बिछे हुए हैं . जो कुछ है वो उस कहावत में है जहां से बात शुरु हुई .

अभी तो पढ़ना बाकी है :
------------------------- मेरे साथ ये होता आया है कि लगता है अभी तो कुछ पढ़ा ही नहीं फिर लिखूं कैसे ? पढने में समय निकल जावे लिखने को समय न बचे .
अब अधूरी तैयारी से लिखने लगा हूं तो यही सोचकर कि अब नहीं तो कब लिखूंगा और इसी लिए कमी रह जाती है , आप सुधारें मेरी बात जहां गुंजाइश हो .

अंत में एक रोचक संवाद :
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मैं डी बी साब के घर गया था , तब मुझे बनस्थली में पढ़ाते कई एक वर्ष हो गए थे , उधर , एक युवा साथी आए हुए थे जो शेखावाटी के किसी लड़कों के कालेज में नियुक्त हुए थे और वहां के अनुभव सुना रहे थे .

पढ़ने वाले लड़कों ने क्लास में कुछ शैतानी की होगी तो इनका प्रत्युत्तर   था :

" फड्या भी हूं और फैलवानी भी की है .( पढ़ा भी हूं और पहलवानी भी की है ) . ऐसे चाहो तो ऐसे आ जाओ , वैसे चाहो तो वैसे आ जाओ ."

कुछ एक दिनों से फेस बुक पर लोगों को बिला वजह ही बांहें चढ़ाते देख ये एक पुरानी बात याद हो आई जिसका मैंने उल्लेख किया .

बहर हाल मैं न तो इतना पढ़ा हूं न ही पहलवानी की है कभी , मैं तो जैसी बात होती है कहे देता हूं .
सुबह हो गई और प्रातःकालीन सभा अब स्थगित . 

इति.

सह अभिवादन : Manju Pandya.

सुमन्त पंड्या.
(Sumant Pandya.)
आशियाना आंगन, भिवाड़ी .
  1 अगस्त 2015 .
आज बलॉग पर
1 अगस्त को 2017 ।

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