जिसकी तलाश थी वो मिल गया …..! : तकिया कलाम की कहानी
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अक्सर ये बात मैं बड़ा गहक के कह दिया करता हूं :
“ जिसकी तलाश थी वो मिल गया .”
ऐसे ही मेरे और भी तकिया कलाम हैं , जैसे :
१.
ये तो बार की बात छै माट साब .. फेर तो थे जाणो !
और
२.
प्यारे मोहन जी नै ने जाणो ..?
मेरे हर तकिया कलाम का कोई न कोई विशिष्ट ऐतिहासिक संदर्भ होता है और मुझे वो सीन याद आने लगता है जब किसी न किसी ने ये बात कही थी और आगे के लिए वो बात मेरे हाथ लग गई .
ख़ैर किस्सगोई के दौरान तकिया कलाम के ये मणके मैं पिरोता भी रहता हूं और बताता हूं कि बात आईं क़हां से . ख़ैर अभी तो उस शीर्षक पर ही बात करें जो आज की पोस्ट के लिए दिया गया है :
“ जिसकी तलाश थी वो मिल गया .”
अपने आप से बात :
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“ किसकी तलाश थी ?”
इसी बात को स्पष्ट करने का प्रयास करूंग़ा .
“ ये किसी व्यक्ति , वस्तु या विचार किसी की भी तलाश हो सकती है जिसके पूरा होने पर मैं ऐसा कह बैठता हूं और अब तो ये वाक्य बोलना मेरी आदत में शामिल हो चुका है .”
“ पर पहली बार ऐसा कहा किसने था ? “
“ हां वही बताने का प्रयास है आज , ये विशिष्ट व्यक्ति की कही बात है जो आज तक मेरी ज़ुबान पर है . “
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अब आगे : फिर वो ही बात .
विशिष्ट अतिथि आए हुए थे , रवीन्द्र निवास में ठहरे थे और इस बाबत दो एपिसोड मैंने अपने ब्लॉग और फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल पर लिखे भी थे . तीसरा एपिसोड जो अभी लिखा जाना बाक़ी है उसमें ही आता है ये प्रसंग .
प्रसंग ये है कि स्नान के बाद जब वे धुले और प्रेस किए हुए कपड़े पहनने लगे तो पाया कि पतलून में कमर का क्लिप पिचका हुआ है और उसे दुरुस्त किए बिना पतलून पहनना सम्भव नहीं था .
वो बौद्ध दर्शन में एक विचार आता है न “ अर्थ क्रिया कारित्व “ वही सूझ रहा है मुझे तो यहां इस स्थिति के लिए . ख़ैर बात आगे …
समस्या समाधान की वो बात सोच ही रहे होंगे कि उनका ध्यान अलमारी के ऊपर के खण की ओर गया और वो अचानक बोल पड़े :
“ जिसकी तलाश थी वो मिल गया .”
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वहां रखा एक पेचकस उठाकर वो ये बात बोले थे . पिचके क्लिप को दुरुस्त करने के लिए ये उपयुक्त उपकरण था जो उन्हें यहां मिल गया था .
वैसे इस पूरे प्रसंग का तीसरा एपिसोड जब आएगा तो ये बात और स्पष्ट होएगी कि आख़िर वो क्लिप पिचका हुआ था क्यों .
आज मैंने पूरी बात बताई कि ये तकियाकलाम मैंने सीखा क़हां से था .
नमस्कार 🙏
सुमन्त पंड़्या
@ आशियाना आँगन , भिवाड़ी
शनिवार ३१ दिसम्बर २०१६ .
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