बनस्थली डायरी : संगीत से मेरा वास्ता.
एक दिन एक मराठी भाषी युवक , जो कुछ समय पहले संगीत विभाग में प्राध्यापक बनकर आया था, रवीन्द्र निवास में मेरे घर आया . उसे आकाशवाणी में प्रोग्राम एक्जीक्यूटिव के पद के लिए साक्षात्कार के लिए बुलावा आया हुआ था . आकर मुझे कहने लगा :
" आप मुझे इंटरव्यू की तैयारी करवा दोगे ? "
मैं थोड़ा असमंजस में उससे मुखातिब हुआ . मेरा संगीत का ज्ञान और ख़ास तौर से शास्त्रीय संगीत का ज्ञान रहा मुग़ल बादशाह औरंगजेब के जैसा , मैं भला उसे क्या तैयारी करवाता . ये आकाशवाणी और शिक्षा जगत में तब आवाजाही रहा करती थी वो बात भी चर्चा में आई थी पर वो बात आगे फिर कभी ...
मेरा संकोच और असमर्थता अपनी जगह थी पर वो युवक जो बोला उससे स्थिति कुछ स्पष्ट हुई और लगा कि इस बाबत कुछ किया जा सकता है .
वो कहने लगा:
" आप मुझे जनरल नॉलेज की तैयारी करवा देवो , मुझे आप के लिए ही बताया गया है , आप ये तैयारी करवा सकते हो ."
न जाने क्यों यह मान्यता है कि जनरल नॉलेज का हल्का पॉलिटिकल साइंस से ताल्लुक रखता है , हालांकि जनरल नॉलेज इतनी जनरल होती नहीं, वो तो बहुत स्पेसिफिक होती है . खैर ...
अब आई तैयारी की बारी . मैं बताने लगा कि उसे संगीत के ही बाबत इस मामले में भी तैयारी करनी चाहिए . हम लोग बाहर वाले बरामदे में बैठे चाय पी रहे थे कि मै अंदर से पिछले दिनों के अखबार उठा लाया .
उन दिनों मैं देखा देखी में टाइम्स ऑफ़ इंडिया मंगवाया करता था .
कुछ ही दिनों पहले कुछ प्रख्यात संगीतकारों को पद्म सम्मान या तो घोषित हुए थे या वो लोग सम्मानित किए गए थे , मैंने उन्हीं के बाबत तैयारी की सलाह दे डाली . उनमें एक बड़ा नाम कुमार गन्धर्व का भी था जो अपनी विशिष्ट गायन शैली के लिए जाने गए थे . वे बनस्थली भी आ चुके थे , जब वो आए थे तो पटवर्धन साब बड़े वाले को संगीत सुनवाने लिवा ले गए थे और इस अबोध को गोद में बैठाए रखा था ताकि मेरी अगली पीढ़ी मेरी जैसी न बने . ये सब भी मुझे याद आया . खैर...
बात तैयारी की थी इन्ही सूत्रों को पकड़ कर इस युवा संगीत प्राध्यापक को मैंने जैसे तैसे तैयारी करवाई और वह कारगर रही इसका इससे बड़ा प्रमाण क्या होगा की युवक ने लौटकर बताया कि सोची गई दिशा में ही इंटरव्यू चला और उसका चयन भी हो गया .
जैसे उस युवक की मनोकामना पूरी हुई वैसे ही आज की युवा पीढ़ी की भी मनोकामना पूरी हो इसी सद्भाव के साथ .
इति प्रातःकालीन सभा .
अपडेट :
गए बरस बनस्थली काल के संस्मरण पर आधारित ये पोस्ट भिवाड़ी में बैठकर लिखी थी .
आज फेसबुक ने याद दिलाई है ये बात .
आज दिन की मेरी अतिरिक्त व्यस्तता मुझे कोई नई पोस्ट लिखने की अनुमति देती नहीं लगती इसलिए इसे ही चर्चा के लिए प्रचारित करता हूं .
विचार कई उमड़ घुमड़कर आ रहे हैं पर शान्ति से बैठने का समय नहीं मिलेगा फिर चर्चा के लिए जारी :
जयपुर
शनिवार १५ अप्रेल २०१५ .
सूचना :
अपरिहार्य कारणों से नेहरू गार्डन जाना आज रद्द हुआ है ।
सब खैरियत है ।
जय भोले नाथ ।🔔🔔
सुप्रभात 🌅🌅
पी एस .
अगर संभव हुआ तो कोई लोक रंजक प्रसंग अभी अपलोड करूंगा । आप जुड़े रहो ।
सुमंन्त पंड्या ।
शनिवार १५ अप्रेल २०१७.
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आज दिन संस्मरण ब्लॉग पर प्रकाशित :
भिवाड़ी रविवार १५ अप्रेल २०१८ .
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