Saturday, 9 April 2016
😊😊😊 मेरा यार राम निवास : भाग एक .😊😊😊
*************************************************************
बनस्थली डायरी : मेरा यार राम निवास . #sumantpandya
*************** ******************* #बनस्थलीडायरी
आदि बनस्थली में दो प्रकार के कार्यकर्त्ता हुआ करते थे - प्रथम श्रेणी कार्यकर्त्ता और स्थानीय कार्यकर्त्ता . पहली श्रेणी वाले खादी पहना करते थे , दूसरी श्रेणी वाले कोई भी कपड़ा पहन सकते थे पर अधिकांश ये लोग कमीज और धोती पहने देखे जा सकते थे . इसी दूसरी श्रेणी में से एक था स्थानीय पूसवाड़ी ढाणी का राम निवास जिससे मेरी दोस्ती इस श्रेणी भेद से परे थी . आज उसी के बारे में .....
मैत्री का उद्भव और विकास :
जब मैंने काम करना शुरु किया तो कालेज के सामने एक पेड़ के नीचे स्टाफ के लिए कुछ मुढ्ढ़े रखे होते थे , जिन पर रिक्त कालांश में हम लोग बैठते , प्रिंसिपल डाक्टर रामेश्वर गुप्ता भी एक डैस्क लगाकर वहां से अपना दफ्तर चलाते . वहीँ पास चौकीदार की झोंपड़ी थी जो गुप्ता साब के घंटी बजाने पर दौड़ा आता . वहीँ पानी का एक मटका रखा रहता , एक लकड़ी के फंटे से ढका हुआ जिससे हम लोग भी पानी पी लेते .
कालान्तर में इस व्यवस्था में कुछ बदलाव आया और मटका हट गया क्योंकि उसकी वहां हिफाजत नहीं थी . बदली व्यवस्था में कोई न कोई जल घर से लाकर हम लोगों को पानी पिला देता .
इस बदली व्यवस्था में एक दिन मैंने छोगा को अपने लिए पानी लाने को कहा . कहा था छोगा को और पानी लेकर आया राम निवास . मुझे इसमे छोगा की टालू वृत्ति लगी, उसे भी बुलवाया और कारण जानना चाहा तो वो बोला :
"म्हारा हाथ को तो कोई पाणी ही कोनै पीवै ."
अर्थात मेरे हाथ का तो कोई पानी ही नहीं पीता .
खैर उस दिन तो मैंने राम निवास को लौटा दिया था और छोगा से ही मंगवा कर पानी पीया था . पर पानी पिलाने का जिम्मा राम निवास का ही हुआ करता था और उसने मेरे चार दशक के सेवा काल में कितनी बार कितने किलो लीटर पानी मुझे पिलाया होगा इसका कोई हिसाब नहीं .
राम निवास मेरी क्लास में भी स्थाई आमंत्रित हुआ करता था , जब चाहे रामझारा लेकर चला आए , मैं एक मुहुर्त्त भर को रुक कर पानी पीवूं और आगे बोलने लगूं .
इस चर्चा को अगली पोस्ट में आगे बढ़ाऊंगा .
आदि बनस्थली के स्वर्णिम काल को याद करते हुए ,
अभी हाल के लिए इति .
वैचारिक सहमति : मंजु पंड़्या .
सुप्रभात .
Good morning
सुमन्त.
आशियाना आँगन . भिवाड़ी .
9 अप्रेल 2015 .
----------
अपडेट : ये संस्मरण गए बरस भिवाड़ी में बैठे लिखा था मैंने . आज फेसबुक के याद दिलाए से फिर याद आया मेरा यार राम निवास . पोस्ट कहीं खो न जाए ऐसा सोचकर इसे अपने ब्लॉग पर भी प्रकाशित किए दे रहा हूं .
चाहे तो यहां देख लीजिए चाहे तो वहां
ओवर टू ब्लॉग .
प्रकाशित करता हूं इसे ब्लॉग पर
२० फ़रवरी २०१७ .
No comments:
About Me
लगभग चार दशक बनस्थली विद्यापीठ में राजनीति शास्त्र विषय के अध्यापन के बाद अपने आवास गुलमोहर में जयपुर में रहता हूं . सभी नए पुराने दोस्तों और अपनी असंख्य छात्राओं से भी संपर्क बनाए हुए हूं . फेसबुक और ब्लॉग की दुनियां इसमें मददगार होगी यह आशा है .View my complete profile
Powered by Blogger.
No comments:
Post a Comment