Saturday, 5 December 2015

" प्यारे मोहन जी नै नी जाणो ? "

मेरी कहावत : "प्यारे मोहन जी नै नी जाणो ?"

उस दिन जब संस्कृतज्ञों के सम्मलेन में प्यारे मोहन जी बनस्थली आए और घर ( 44 रवीन्द्र निवास) मिलने आए तो इस कहावत की चर्चा चल पड़ी जो अनायास एक आगंतुक की बात से बन गई थी और मेरी जबान पर आ गई थी . एक अरसे से मैं इस कहावत को बरतता आया लेकिन प्यारे मोहन जी को उस दिन इस कहावत के बाबत बताया था .

हुआ क्या था? कैसे बनी कहावत ?
#नाहरगढ़रोड

आज वही बताने जा रहा हूं . हुआ यूं था कि नाहरगढ़ की सड़क पर जंगजीत महादेव के सामने  हमारे घर के चौक में आकर एक आगंतुक ने ऊपर की मंजिल की ओर झांकते हुए आवाज लगाईं :

"प्यारे मोहन जी.......प्यारे मोहन जी "

ये आवाज सुनकर हमारे बापू (ताऊ जी)  सक्रिय हो गए . उन्होंने पूरा नाम ठीक से  सुना नहीं और हरि मोहन का नाम पुकारा यह समझकर  हरि मोहन को बुलाने लग गए . " हरि मोहन जी.... हरि मोहन जी ."
बापू भी पहली मंजिल के बांए  हिस्से में  खड़े थे और पहली मंजिल के सामने वाले हिस्से में हरि मोहन नाम का युवक रहता था जिस तक यह आवाज पहुंचने की संभावना थी . आगंतुक इस पुकार का परिणाम जानने को चौक में तटस्थ  खड़ा था .

स्पष्टीकरण : हरि मोहन किसी भी रूप में प्यारे मोहन जी से सम्बंधित नहीं था, न ही उन्हें जानता था . प्यारे मोहन जी हम सब के सुपरिचित  थे और सात चौक की व्यासों की हवेली के निवासी थे , इस हवेली का रास्ता हमारे घर के बराबर से जाता था . सब तो प्यारे मोहन जी को जानते थे , अगर नहीं जानता था तो सिर्फ  हरि मोहन .
आगंतुक किसी गफलत में बराबर  के रास्ते से न जाकर हमारे घर के चौक में  चला आया था और अपने आतिथेय को खोज रहा था . आवाज हरि मोहन को दी जा रही थी तो भी वो समझ रहा था कि प्यारे मोहन जी के घर में कोई हरि मोहन भी होगा .

कई आवाजें पड़ने के बाद सामने की ओर से झरोखे में हरि मोहन निकल कर आया और उसका आगंतुक से संवाद हुआ वहीँ बात पूरी हुई और मेरे लिए एक कहावत भी बन गई :
हरि मोहन प्रश्न सूचक दृष्टि से आगंतुक को देखने लगा . आगंतुक ने पूछा:

प्यारे मोहन जी ?

हरि मोहन ने कहा:  कौन प्यारे मोहन ?

आगंतुक ललाट तक अपनी चार अंगुलियां लेजाकर बोला ;

" प्यारे मोहन जी न नी जाणो  ...!?"  *

अब माजरा साफ़ हो गया था . बापू  जिन्होंने आगंतुक को मिलवाने में मध्यस्तता की थी वो भी बात को समझ गए  थे और अब वो बोले आगंतुक से :
" आप यहां से बाहर जाओ और बराबर के रास्ते से पीछे के चौक में चले जाओ , वहां मिलेंगे आपको प्यारे मोहन जी."

* मेरे लिए तब से ये कहावत बन गई :" प्यारे मोहन जी न नी जाणो ?"
अर्थात " आप प्यारे मोहन जी को नहीं जानते ?!"

समर्थन और सुझाव :

सुप्रभात .

सुमन्त.
आशियाना आंगन , भिवाड़ी .
 3  अप्रेल 2015 .

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