Thursday, 19 April 2018

पहली उधारी  - त्रिपोलिया बाज़ार :  जयपुर डायरी .

पहली उधारी : त्रिपोलिया बाजार .

अस्सी के दशक की बात जब वासुदेव भाई बेटी की शादी के निमित्त सामान खरीदने जयपुर आए थे , इस बाबत तो मैं पिछले साल कुछ एक पोस्ट भी लिख चुका हूं पर आज केवल उधारी की उसका जिक्र करूंगा .

भाई बोले :
"सुमन्त चल , बरतन लेकर आएंगे ."

सुमन्त तुरंत साथ हो लिया . त्रिपोलिया बाजार में बाबूलाल तरसेन कुमार की दूकान पर पहुंचे हम लोग . उन दिनों उस दूकान में आतंरिक संरचना कुछ इस प्रकार की थी कि एक ओर स्टील के बर्तनों का काउंटर था , जिस पर तरसेन कुमार खुद बैठते थे और दूसरी ओर पीतल , तांबे और कांसी के बर्तनों की बिसात थी जिसपर उनके बड़े भाई बैठते थे . विवाह के निमित्त खरीदने के बरतन मुख्यतः पीतल वर्ग के ही थे और वो छांट लिए , पसंद कर लिए उनका मोल भाव कर लिया और अब आई चुकाने की बारी तो भाई बोले :

"सुमन्त , घर चल अब पैसे ले आते हैं."

वे पैसे साथ नहीं लाए थे पर घर पर रखे थे पैसे , जितनी जरूरत हो आकर ले जाने का विचार था .

पैसे ले जाने में भी भोले आदमी को डर लगता था , कहीं गिर जाएं और कुछ हो जाए . भोले आदमी को बाजार डराता भी है और लुभाता भी है ये आज भी मेरी मान्यता है . खैर .....

लगभग एक दशक के गृहस्थ जीवन में मैंने स्टील वाले काउंटर से कई बार बरतन खरीदे थे , पीतल के तो बहुतेरे माता पिता ने ही दे दिए थे जो आज भी मेरी अमूल्य विरासत है . इस नाते तरसेन कुमार से मेरा परिचय था पर कभी कुछ उधार नहीं लिया था.

 पर

तब उस दिन ऐसी नौबत आई कि या तो घर का एक चक्कर और लगाया जाय या उधार किया जाय . मैंने उस दिन दूसरा विकल्प चुना और तरसेन भाई साब से कहा :

" भुगतान हम बाद में करेंगे, आप ये रकम मेरे नाम लिखवा दो ."

 

मैंने पहली बार ऐसा प्रस्ताव रखा था , उन्हें कोई दिक्कत नहीं थी . छोटे भाई ने बड़े भाई को मेरा परिचय दिया , बनस्थली में पढ़ाते हैं ये भी बताया , हो गई रकम मेरे नाम दर्ज , हो गई खरीददारी और घर आ गए .

उस दिन दोपहर के बाद फिर बात आई कि बेटी की सास के हाथ में देने को एक हैरीकेन लालटेन भी लानी होगी . 

हमारे समुदाय में जाने कब से ये लालटेन का चलन रहा है . मेरे विवाह में आई लालटेन को आज भी मैं कबाड़ में जाने से बचाता हूं .

मुझे अब फिर भाईसाब के साथ त्रिपोलिया बाजार जाने की जरूरत लगी क्योंकि वहां फरसोईया ट्रेडिंग कंपनी पर लालटेन मिला करती थी जो बरतन की दूकान के लगभग सामने ही थी .

फिर चल दिए त्रिपोलिया बाजार और इस बार खरीद के लिए रकम के साथ साथ वो रकम भी ले ली जिससे बाबू लाल तरसेन कुमार की भी उधारी चुकाई जा सके .

सबसे पहले पहुंचे उसी बरतनों की दूकान पर जहां कुछ घंटों पहले रकम उधार लिखवाकर गए थे . चुकारा तो हो गया पर उस दिन तरसेन कुमार मुझे जो बोले वो मुझे आज भी याद है :

" आप को क्या लगा कि हम आज ही त्रिपोलिया बाजार से अपना कारोबार बंद करके जाने वाले हैं ?"

20 अप्रेल 2015 .

फेसबुक ! आपने याद दिलाया तो मुझे याद आया .

अपडेट : 

ये गए बरस की पोस्ट है , तब आपने सराहा था तो सोचता हूं इसे भी ब्लॉग पर प्रकाशित कर देऊं पर वो बात बाद में देखी जाएगी अभी तो इसे यहीं चर्चा के लिए जारी करता हूं .

गए बरस की सराहना के लिए प्रियंकर जी सहित सब का आभार ज्ञापन करता हूं .

कहने की आवश्यकता नहीं कि मेरी स्टेटस से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हैं आप सब की टिप्पणियां जो स्टेटस को रोचक बनाती हैं .

  बुधवार 20 अप्रेल 2016 .

Saturday, 14 April 2018

संगीत से मेरा वास्ता - १: बनस्थली डायरी .

बनस्थली डायरी : संगीत से मेरा  वास्ता.

एक दिन एक मराठी भाषी युवक , जो कुछ समय पहले संगीत विभाग में प्राध्यापक बनकर आया था, रवीन्द्र निवास में मेरे घर आया . उसे आकाशवाणी में प्रोग्राम एक्जीक्यूटिव के पद के लिए साक्षात्कार के लिए बुलावा आया हुआ था . आकर मुझे कहने लगा  :

"  आप मुझे इंटरव्यू की तैयारी करवा दोगे  ? "

मैं थोड़ा असमंजस में उससे मुखातिब हुआ . मेरा संगीत का ज्ञान और ख़ास तौर से शास्त्रीय संगीत का ज्ञान  रहा मुग़ल बादशाह औरंगजेब के जैसा , मैं भला उसे क्या तैयारी करवाता . ये आकाशवाणी और शिक्षा जगत में तब आवाजाही रहा करती थी वो बात भी चर्चा में आई थी पर वो बात आगे फिर कभी ...
मेरा संकोच और असमर्थता अपनी जगह थी पर वो युवक जो बोला उससे स्थिति कुछ स्पष्ट हुई और लगा कि इस बाबत कुछ किया जा सकता है .
वो कहने लगा:

" आप मुझे जनरल नॉलेज की तैयारी करवा देवो , मुझे आप के लिए ही बताया गया है , आप ये तैयारी करवा सकते हो ."

न जाने क्यों यह मान्यता है  कि जनरल नॉलेज का हल्का पॉलिटिकल साइंस से ताल्लुक रखता है , हालांकि जनरल नॉलेज इतनी जनरल होती नहीं, वो तो बहुत स्पेसिफिक होती है . खैर ...

अब आई तैयारी की बारी . मैं बताने लगा कि उसे संगीत के ही बाबत इस मामले में भी तैयारी करनी चाहिए . हम लोग बाहर वाले बरामदे में बैठे चाय पी रहे थे कि मै  अंदर से पिछले दिनों के अखबार उठा लाया .
उन दिनों मैं देखा देखी में टाइम्स ऑफ़ इंडिया मंगवाया करता था .
कुछ ही दिनों पहले कुछ प्रख्यात संगीतकारों को पद्म सम्मान या तो घोषित हुए थे या वो लोग सम्मानित किए गए थे , मैंने उन्हीं के बाबत तैयारी की सलाह दे डाली . उनमें एक बड़ा नाम कुमार गन्धर्व का भी था जो अपनी विशिष्ट गायन शैली के लिए जाने गए थे . वे बनस्थली भी आ चुके थे ,  जब वो आए थे तो पटवर्धन साब बड़े वाले को संगीत सुनवाने लिवा ले गए थे और इस अबोध को गोद में बैठाए रखा था ताकि मेरी अगली पीढ़ी मेरी जैसी न बने . ये सब भी मुझे याद आया . खैर...

बात तैयारी की थी इन्ही सूत्रों को पकड़ कर इस युवा संगीत प्राध्यापक को मैंने जैसे तैसे तैयारी करवाई और वह कारगर रही इसका इससे बड़ा प्रमाण क्या होगा की युवक ने लौटकर बताया कि सोची गई दिशा में ही इंटरव्यू चला और उसका चयन भी हो गया .
जैसे उस युवक की मनोकामना पूरी हुई वैसे ही आज की युवा पीढ़ी की भी मनोकामना पूरी हो इसी सद्भाव के साथ .
इति प्रातःकालीन सभा .

अपडेट :
गए बरस बनस्थली काल के संस्मरण पर आधारित ये पोस्ट भिवाड़ी में बैठकर लिखी थी .
आज फेसबुक ने याद दिलाई है ये बात .

आज दिन की मेरी अतिरिक्त व्यस्तता मुझे कोई नई पोस्ट लिखने की अनुमति देती नहीं लगती इसलिए इसे ही चर्चा के लिए प्रचारित करता हूं .
विचार कई उमड़ घुमड़कर  आ रहे हैं पर शान्ति से बैठने का समय नहीं मिलेगा  फिर चर्चा के लिए जारी :

जयपुर
शनिवार १५ अप्रेल २०१५ .
सूचना :
अपरिहार्य कारणों से नेहरू गार्डन जाना आज रद्द हुआ है ।
सब खैरियत है ।
जय भोले नाथ ।🔔🔔
सुप्रभात 🌅🌅
पी एस .
अगर संभव हुआ तो कोई लोक रंजक प्रसंग अभी अपलोड करूंगा । आप जुड़े रहो ।
सुमंन्त पंड्या ।
शनिवार १५ अप्रेल २०१७.
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आज दिन संस्मरण ब्लॉग पर प्रकाशित :

भिवाड़ी   रविवार १५ अप्रेल २०१८ .

Tuesday, 10 April 2018

हास्य सम्राट रंगलाल : बनस्थली डायरी

बनस्थली डायरी : हास्य सम्राट रंग लाल .

यदि आपने शांता कुञ्ज से सटे पुराने मेहमान घर में भोजन किया और रंगा जी से नहीं मिले तो आपने कुछ खो दिया यही समझ लीजिए .
भोजन हंसी ख़ुशी के वातावरण में ही हो रंगा जी इस सिद्धांत के प्रतिपादक हुआ करते थे . रंगा वो कड़ी भी है जो मुझे राष्ट्रपति डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद से  जोड़ती है . उन्हें भी भोजन परोसा था और मुझे भी , केवल समय का अंतराल बीच में है .
छीले के पत्तों से बनी पत्तलों और दोनों में  भोजन परोसा जाता . दाल, चावल , सब्जी से लबालब भरी बाल्टी  से रंगा जी पत्तल में भोजन परोसने लगते तो दाल का दोना डगमगाने लगता , दाल पत्तल में बिखरने को होती और रंगा जी तुरत कहते :

"मैंने प्याज पहले ही दे दिया है , एक प्याज टुकड़ा लगाओ दोने के बराबर दोना रुक़ जाएगा ."

ये बात तो मुझे बार बार याद आती है कि भोजन के अंत से पहले पापड़ लाया जाता और मैं कहता :

" रंगा जी, पापड़  मुझे जाते बखत देना , पापड़ खाते रास्ता कट जाएगा और मैं घर  पहुंच जाऊंगा ."
रंगा जी तुरत कहते :
"ये तो आप अभी खाओ , जाते बखत दूसरा देऊंगा ."

और जब मैं चौक में टंकी के सामने हाथ  धोकर जेब से रूमाल निकाल रहा होता तो रंगा जी मेरे लिए दूसरा पापड़ लिए खड़े होते .
मेरे लिए उन्होंने दो बार  पापड़ का विशेष प्रावधान कर दिया था , यह मैं कैसे भूल सकता हूं .
अगर उस जमाने के रंगा जी से आप  मिले होते तो यह कहना सही होता :

"अब टेंशन जाएगा पेंशन लेने !"

किसी जमाने में शांताकुंज के द्वार पर छब्बीस नंबर का सार्वजनिक टेलीफोन हुआ करता था , रंगलाल याने रंगा जी वहां भी ड्यूटी देते .
फोन आने पर कह बैठते :

" मैं प्रोफ़ेसर रंगा बोल रहा हूं ."

ये वो ज़माना था जब संसद में  प्रोफ़ेसर रंगा का नाम हुआ करता था .
ये सुनकर दूसरी ओर से बोल रहे अभिजन कहते :

"रंगा , तू कब सुधरेगा ?"
ऐसे मेरे प्रिय जन रंगा जी को याद करते हुए .
इति प्रातःकालीन सभा .


Sunday, 8 April 2018

मेरा यार राम निवास - भाग एक .



रवीन्द्र निवास से गुलमोहर

Saturday, 9 April 2016

😊😊😊 मेरा यार राम निवास : भाग एक .😊😊😊

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          बनस्थली डायरी : मेरा यार राम निवास . #sumantpandya

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आदि बनस्थली में दो प्रकार के कार्यकर्त्ता हुआ करते थे - प्रथम श्रेणी कार्यकर्त्ता और स्थानीय कार्यकर्त्ता . पहली श्रेणी वाले खादी पहना करते थे , दूसरी श्रेणी वाले कोई भी कपड़ा  पहन सकते थे पर अधिकांश ये लोग कमीज और धोती पहने देखे जा सकते थे . इसी दूसरी श्रेणी में से एक था स्थानीय पूसवाड़ी ढाणी का राम निवास जिससे मेरी दोस्ती इस श्रेणी भेद  से परे थी . आज उसी के बारे में .....

मैत्री का  उद्भव और विकास :

  जब मैंने काम करना शुरु किया तो कालेज के सामने एक पेड़ के नीचे स्टाफ के लिए कुछ मुढ्ढ़े रखे होते थे , जिन पर रिक्त कालांश में हम लोग बैठते , प्रिंसिपल डाक्टर रामेश्वर गुप्ता भी एक डैस्क लगाकर वहां से अपना दफ्तर चलाते . वहीँ पास चौकीदार की झोंपड़ी थी जो गुप्ता साब के घंटी बजाने पर दौड़ा आता . वहीँ पानी का एक मटका रखा रहता , एक लकड़ी के फंटे से ढका हुआ जिससे हम लोग भी पानी पी लेते .  

कालान्तर में इस व्यवस्था में कुछ बदलाव आया और मटका हट गया क्योंकि उसकी वहां हिफाजत नहीं थी . बदली व्यवस्था में कोई न कोई जल घर से लाकर हम लोगों को पानी पिला देता .

इस बदली व्यवस्था में एक दिन मैंने छोगा को अपने लिए पानी लाने को कहा . कहा था छोगा को और पानी लेकर आया राम निवास . मुझे इसमे छोगा की टालू वृत्ति लगी, उसे भी बुलवाया और कारण जानना चाहा तो वो बोला :

"म्हारा हाथ को तो कोई पाणी ही कोनै पीवै  ."

अर्थात मेरे हाथ का तो कोई पानी ही नहीं पीता .

खैर उस दिन तो मैंने राम निवास को लौटा दिया था और छोगा से ही मंगवा कर पानी पीया था . पर पानी पिलाने का जिम्मा राम निवास का ही हुआ करता था और उसने  मेरे चार दशक के सेवा काल में कितनी बार कितने किलो  लीटर पानी मुझे पिलाया होगा इसका कोई हिसाब नहीं .

राम निवास मेरी क्लास में भी स्थाई आमंत्रित हुआ करता था , जब चाहे रामझारा लेकर चला आए , मैं एक  मुहुर्त्त भर को रुक कर पानी पीवूं और आगे बोलने लगूं .

इस चर्चा को अगली पोस्ट में आगे बढ़ाऊंगा .

आदि बनस्थली के स्वर्णिम काल को याद करते हुए ,

अभी हाल के लिए इति .

वैचारिक सहमति : मंजु पंड़्या  .

सुप्रभात .

Good morning

सुमन्त.

आशियाना आँगन . भिवाड़ी .

9 अप्रेल   2015 .

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अपडेट : ये संस्मरण गए बरस भिवाड़ी में बैठे  लिखा था मैंने . आज फेसबुक के याद दिलाए से फिर याद आया मेरा यार राम निवास . पोस्ट कहीं खो न जाए ऐसा सोचकर इसे अपने ब्लॉग पर भी प्रकाशित किए दे रहा हूं .

चाहे तो यहां देख लीजिए चाहे तो वहां

ओवर टू ब्लॉग .

प्रकाशित  करता हूं  इसे ब्लॉग पर 

२० फ़रवरी २०१७ .

Sumant Pandya at 02:28


 

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Sumant Pandya 

लगभग चार दशक बनस्थली विद्यापीठ में राजनीति शास्त्र विषय के अध्यापन के बाद अपने आवास गुलमोहर में जयपुर में रहता हूं . सभी नए पुराने दोस्तों और अपनी असंख्य छात्राओं से भी संपर्क बनाए हुए हूं . फेसबुक और ब्लॉग की दुनियां इसमें मददगार होगी यह आशा है .View my complete profile

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Tuesday, 3 April 2018

जाने क्या बाधा आ गई ?

पता नहीं एक अप्रेल के बाद से क्या कुछ हुआ है ब्लॉग इंदराज के सेटिंग्स में कि नई पोस्ट जुड़ नहीं रही थी । ये एक ट्रायल पोस्ट की है , शायद दर्ज हो जाए ।

आशियाना आंग़न , भिवाड़ी से सुप्रभात ☀️ नमस्कार 🙏

बुधवार ४ अप्रेल २०१८ .

Blogging की मुश्किलें ।

नए साल में ब्लॉग में जाने क्या बाधा आ गई है । नई पोस्ट जोड़ना मुश्किल हो रहा है ।