ये भिवाड़ी आने से कई दिन पहले की बात है , अचानक याद आई कि बता दूं , ये वाकया भी जिसमेँ हुआ संवाद ही मेरे अस्तित्व को चुनौती देता लगा था मुझे .
गैस बुक कराता हूं , हो गई बुक , अब ये भी टंटा है मोबाइल फोन से ही होती है गैस बुक . माने फोन न हो तो आप गैस उपभोक्ता ही नहीं हो सकते .
हो गई गैस बुक ऑन लाइन और माना कि आ जाएगी सप्प्लाई मगर सन्देश तो कई आए , बिल नंबर भी आ गया , रवानगी भी बता दी सिलेंडर की और डिलीवरी भी इधर तो सप्लाई आई ही नहीं . ये सब सन्देश तो कंपनी से आते रहे गैस एजेंसी को भेजनी थी गैस सो उसने नहीं भेजी . रोटी तो आजकल गैस पर सिकती है संदेशों से नहीं भरता ये पापी पेट . मुझे लगा अब एजेंसी से ही बात करनी चाहिए सो की बात . लंबे प्रयास से नंबर मिला बताया गया कि मेरा खाता बंद कर दिया गया क्योंकि लंबे अरसे से गैस जो बुक नहीं हुई थी . मूल कागजात , अपनी पहचान बैंक पासबुक आदि लेकर स्वयं एजेंसी में हाजिरी देवूं तो ही यह खाता खुल सकता है . अब खाता तो खुलवाना ही था सो सब कुछ जुटाकर गया गैस एजेंसी और बंद खाते का ताला खुलवाया .
इस बीच किसी और का फोन नंबर मेरे गैस खाते से जुड़ा दर्ज पाया गया , किसी और का ही उपभोक्ता नंबर था जिसके गैस डिलिवरी सन्देश थे आ तो मुझे रहे थे गैस कहीं और वितरित हो रही थी , इन सब की सफाई करवाई और तार्किक समाधान भी करवाया . जब तक सब गड़बड़झाला दूर नहीं हो गया मैं रहा वहां मौजूद . सिवाय " आधार " के सब कुछ तो था मेरे पास तमाम तरह के अपने आई डी , गैस उपभोक्ता होने के कागजात , बैंक खाते की पासबुक और मैं खुद एक पुराना उपभोक्ता जिसने यह कहा था कि अब तक सेवाओं से संतुष्ट रहा और अब कुछ शिकायत लेकर आया हूं . ये तो मैं खुद था मौजूद तो हो पाया समाधान . अगरचे मैं न होता मौजूद तो कैसे होता ये समाधान ये ही सोचता रहा .
ये सब तो दुरुस्त पर जो बातचीत वहां हुई वह भी तो बताऊं . एजेंसी के अधिकारी ने पूछा :
" आप किस डिपार्टमेंट में हैं? "
मैं बोला: " मैं किसी डिपार्टमेंट में नहीं हूं , क्या आपके लिए इतना जानना काफी नहीं होगा कि मैं सीनियर सिटीजन हूं . "
अधिकारी फिर भी बोला :
" आप क्या थे ? "
मैं फिर बोला :
" अरे मैं ' था ' नहीं , मैं ' हूं ' . मैं अब भी हूं और आप क्या थे ऐसा पूछ रहे हैं ? ऐसे तो किसी और से पूछिएगा जब मैं न होवूं ."
खैर वो जो जानना चाहते थे वो मैं भी समझता था और अच्छे से समझा भी दिया मैंने पर ये सोचने को बाध्य जरूर हुआ कि सीधी साधी उपभोक्ता आवश्यकताओं से भी ये प्रश्न क्यों जुड़ जाते हैं . सीधे से उपभोक्ता को मान्यता क्यों नहीं मिल जाती .
आखिर हो गया समाधान और साक्षात प्रधानमंत्री की आवाज में मेरे पास इस बाबत टेलीफोन भी आ गया , अवश्य ही आप सब के पास तो पहले ही आ चुका होगा , मेरा ही खाता बंद पड़ा था सो कुछ देर हुई .
फिर एक बार दोहराऊंगा मैं था नहीं , मैं हूं ना . गैस उपभोक्ता हूं और रहूंगा अभी तो . मुझे राइट ऑफ करके कोई मुझसे बात न करे अभी हाल .
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