स्थानापन्न : अनुदेश शिविर में
ये भी बनस्थली में मेरे सेवाकाल का ही एक प्रसंग है जो आज सुबह याद आने लगा और मैंने सोचा आज इसी पर पोस्ट बनाऊं .
स्थान : अनुदेश शिविर , बनस्थली विद्यापीठ , सत्रांत का समय और और एन एस एस शिविर का समापन .
शिविर का समापन समारोह जब समाप्त होने लगा तो सभी आगंतुक जाने लगे . जीजी ( सुशीला व्यास ) भी चली गयीं , जिनके हाथों कतिपय पुरस्कारों का वितरण करवाया गया था . मैं भी शिविर से जाने को उद्यत हुआ कि अचानक समाज शास्त्र की अलका जी मेरे कान में ही बोलीं:
" सर, आप थोड़ी देर और ठहर जाइए , अभी शिविर में और कार्यक्रम बाकी है , आपकी जरूरत पड़ेगी ."
मैंने सहमति तो दे दी पर एक बार 44 रवीन्द्र निवास तक जाकर आने की अनुमति मांगी. कारण यह था कि परिवार जन किसी और कार्यक्रम में जाने वाले थे और मैं चाहता था कि घर की डुप्लीकेट चाबी मेरे पास भी रहे तो असुविधा न हो . खैर मैं घर तक गया और चाबी लेकर वापस अनुदेश शिविर में लौट आया , तब जाकर समापन समारोह का उत्तरार्ध कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ . मैं स्थानापन्न / स्टेपनी मुख्य अतिथि बना दिया गया . घर जाने और लौट कर आने में मेरे पास संसाधनों में एक चाबी के गुच्छे का ही इजाफा हुआ था और ये समय पर बड़ा काम आया जो मैं बताने जा रहा हूं . बहर हाल घर की चाबी से रात के भोजन का भी प्रश्न जुड़ा हुआ था लेकिन शिविर के आयोजकों ने मुझे भरोसा दिलाया था कि मेरा रात का भोजन भी शिविरार्थियो के साथ हो जाएगा सो चिंता नहीं थी .
ढेर पुरस्कार और प्रमाणपत्र , प्रतीक चिन्ह बांटने बाकी थे जो मैंने बांट दिए और इसके बाद मेरे बोलने की बारी आई . बारी आने पर जो कुछ मैंने उस दिन कहा उसमे से चुनिंदा बाते कहता हूं :
एक तो सबसे आसान काम जो मैं कर सकता था वह था अपनी पीढ़ी की ओर से नई पीढी से क्षमा मांगना और वही मैंने किया भी . यह वह समय था जब मेरी सी उमर के लोग राजनीति में सभी ओर दुर्दशा के लिए उत्तरदायी दिखाई दे रहे थे .
दूसरी बात थी ' देशाभिनंदन ' की और इस विचार को मैंने पहली बार स्थापित किया . मैंने कहा :
" परंपरा से जब किसी का नागरिक अभिनन्दन किया जाता है तो उसे प्रतीक रूप में नगर की चाबी सौंपी जाती है , मैं नई पीढी का नागरिक अभिनन्दन करने को नहीं खड़ा हुआ हूं मैं " देशाभिनंदन " के लिए खड़ा हुआ हूँ . मैं देश की चाबी तुम्हें सौंपता हूं . "
हंसी खुशी के वातावरण में शिविर का समापन हुआ , सांस्कृतिक कार्यक्रम भी हुआ और भोजन भी .
ऐसे हुआ शिविर समाप्त .
बनस्थली की मधुर स्मृतिओं के साथ सभा स्थगित .
बहुत रोचक।
ReplyDeleteआभार सी पी ।
Deleteआभार सी पी
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