Saturday, 3 March 2018

म्हां कै तो दोन्यू ही मीठा : जयपुर डायरी 

म्हां कै तो दोन्यूं ही मीठा : जयपुर डायरी .

आज सुबह या शायद कल जीवन संगिनी ने मेरी गतिविधि देखकर कहा :


“ म्हां कै तो दोन्यूं ही मीठा .”


ये एक वार्ता खेल का समापन वाक्य है . पहले वो खेल संवाद और फिर उसकी यहां प्रासंगिकता बताऊंग़ा .


खेल क्या है ?


“ बाबाजी बाबाजी आम दो .”

“ आम हैं सरकार के “

“ हम भी हैं दरबार के .”

“ एक उठा लो बच्चा ..”

उठाकर स्वाद चखता है बच्चा और कहता है :

“ ये तो खट्टा है …”

“ दूसरा उठा लो बच्चा ..”

बच्चा दूसरा आम और उठा लेता है और उसका भी स्वाद चखता है .

अब उसकी बाँछें खिल जाती हैं और वो कहता है :


“ म्हां कै तो दोन्यूं ही मीठा , दोन्यूं ही मीठा …”


क्या है यहां प्रासंगिकता और क्यों आई ये बात ? 

वही बताता हूं :

असल में थोड़े ही समय पहले जब मैं सोशल मीडिया पर आया तो मेरी स्थिति उस निरक्षर व्यक्ति जैसी थी जो किसी साक्षर व्यक्ति को बताता जाता है कि ऐसे लिख दो और वैसे लिख दो बशर्ते कि कोई फुरसत वाला व्यक्ति इस काम के लिए सेवा देने को उपलब्ध होवे और इस प्रकार वो अपनी चिठ्ठी पत्री लिखवाए . ऐसा चलता रहा एक आध बरस तक पर होनहार की बात कि बच्चों ने एक उपकरण अपनी समझ से मंगवाकर मुझे दे दिया और थोडा बहुत सिखा भी दिया कि लिखना कैसे है . इस उपकरण के सहारे कोई हजार से ज्यादा पोस्ट मैंने फेसबुक पर लिख डाली . नव साक्षर को कुछ लिखने का हरख होता भी ज्यादा ही है वही मेरे साथ भी रहा .

और एक दिन सुमन ने ब्लॉग भी बनाकर दे दिया पर अपनी समझ जितनी थी ब्लॉग तक पहुंचने में ही कठिनाई , तब मैंने वो पोस्ट लिखी थी ,” अपने ही घर का पता पूछते हैं .” खैर उसका भी हुआ समाधान , आज दिन तक धीरे धीरे एक सौ पोस्ट ब्लॉग पर दर्ज कर चुका हूं और जैसा ब्लॉग मैनेजर की सूचना है अब तक कोई साढ़े सात हजार विजिटर मेरे ब्लॉग को देखने आ चुके हैं , इस पर मुझे संतोष है .

लोग मिलते हैं तो मेरे लिखे का हवाला देते हैं , थोड़ी बहुत सराहना करते हैं और लिखते रहने की प्रेरणा भी देते हैं .


पर कठिनाई कहां आई ?

ये पहला उपकरण गूगल का नेक्सस -7 धीमा होने लगा , शायद ये उपकरण थकने लगा था , एक तो अपण खुद धीमे और अगर उपकरण और धीमा हो तो तो हो लिया कोई काम . इस स्थिति को देखकर जीवन संगिनी ने बच्चों को कहना शुरु किया कि पापा को कोई नया उपकरण दिलाओ और बरतना सिखाओ . इसी क्रम में एक दिन दीपावली के आस पास जब गुलमोहर कैम्प में शिखर सम्मेलन हुआ तो एक नए उपकरण पर सर्वानुमति बनी और इस प्रकार आ गया एपल का आई पैड मिनी , आपको तो बताया ही था , गूगल और एपल ये न्यारे न्यारे स्कूल रहे तो नए स्कूल में जाकर मैं उसके तौर तरीके सीखने लगा .

अब सवाल ये कि पहले वाले उपकरण का क्या करें ? क्या इसे कबाड़ में डाल दें ? कबाड़ी को बेच दें ? ओ एल एक्स पर बेच दें . 

मुझे इनमें से एक भी विकल्प स्वीकार न हुआ , मैंने दोनों ही उपकरणों पर अंगूठा अंगुली चलाना जारी रखा , बारी बारी से दोनों को बरतना जारी रखा … और इसी पर कहा जीवन संगिनी ने :


“ म्हां कै तो दोन्यूं ही मीठा ।”

अब एक बार में जाने लायक पोस्ट , हो गई पोस्ट तैयार ,  पोस्ट को प्रकाशित किए देता हूं .

नमस्कार 🙏



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