Monday, 19 February 2018

आशा बलवती राजन   - एक व्रत कथा .

एक व्रत कथा :” आशा बलवती राजन .”


पिछले दिनों एक बोध कथा फेसबुक स्टेटस के रूप में दर्ज की थी . उस दिन टिप्पणी में ये भी लिखा था कि अगली कथा कोई ‘ व्रत कथा ‘ दर्ज करूंगा . लगता है आज वह भागवत मुहूर्त आ गया है .

व्रत कथा का मोल :

- व्रत कथाओं में जीवन सन्देश निहित होते हैं . इन का एकेडेमिक महत्त्व भी हो सकता है . मुझे याद है कि बनस्थली जब राजस्थान विश्वविद्यालय से जुड़ा हुआ था प्रोफेसर नरोत्तमदास स्वामी ने लक्ष्मी शर्मा को इन्हीं व्रत कथाओं के अध्ययन के लिए प्रेरित किया था और इन लक्ष्मी जी ने इस अध्ययन से पी एच डी की डिग्री हासिल की थी . खैर , वो तो बात याद आ गई इसलिए जोड़ी अभी तो एक व्रत कथा का उल्लेख करना है वही करता हूं .

आज की कथा :

एक राजा का राज पाट छिन गया था और वह दर दर भटक रहा था , जंगल जंगल भटक रहा था , कंद मूल फल जो कुछ उसे उपलब्ध होता वही खाता . भोजन और आवास का कोई ठौर ठिकाना नहीं था , विषम परिस्थितियां थीं .

एक दिन ऐसे ही जंगल में भटकते हुए उसे चार डोकरियाँ माने वृद्धाएं एक जगह बैठी बात करती हुई मिलीं और राजा ने उन्हें प्रणाम किया , शीश नवाया और वृद्धाएं पूछ बैठीं कि उसने किस वृद्धा को प्रणाम किया है . राजा ने प्रति प्रश्न किया कि वो हैं कौन कौन ये बतावें तो ही हल निकलेगा . और वे वृद्धाएं एक एक कर अपना परिचय देने लगीं , वही बताता हूं .

1.

पहली ने अपने को “ भूख “ बताया .

राजा बोला कि वो राजसी वैभव के साथ भोजन करता था तो भी भूख मिट जाती थी और आज जब रूखा सूखा भोजन मिल जाता है तो भी भूख मिट ही जाती है . खैर..  

2.

दूसरी ने अपने को “ नींद “ बताया .

राजा बोला वह महल में रहता था , पलंग पर सोता था तब भी नींद आ जाती थी और आज जब कहीं भी पड़ रहता था तो भी नींद आ जाती है , आ ही जाती है , खैर .. 

3.

तीसरी ने अपने को “ प्यास “ बताया .

राजा बोला कि तब चांदी के जल पात्र में परिचारक पानी लेकर आते थे उससे भी प्यास मिट जाती थी और आज जंगल में भटकते हुए किसी झरने से अंजुरी में भर कर पानी पीता हूं तब भी प्यास मिट जाती है , वरन अच्छी तरह मिट जाती है . खैर…

4.

और अब चौथी बोली कि मैं “ आस “ ( आशा ) हूं .

फिर तो क्या कहने थे , राजा झुका और उसने तुरंत वृद्धा के पैर छुए कि प्रथम प्रणाम उसी को है .

चाहे जो भी आज के हालात हों फिर से राज पाट मिलेगा यही आशीर्वाद उसे वृद्धा से चाहिए था . 

जैसी व्रत कथा मैंने सुनी थी उन नाते मैं वृद्धा को डोकरी बोलता हू

अब बोल सुमंत -- ये व्रत कथा मैंने अम्मा को बोलते सुना था , कालान्तर में अम्मा ने महिमा को ऐसी कथाएं सुनाने को तैयार किया था .

निष्कर्ष एक ही निकलता है , “ आशा बलवती राजन “.

और संकेत रूप में यह भी कहे देवूं कि जनतंत्र के इस युग में प्रजा ही राजा है .

कल रात एक मंगल उत्सव में अपनी बैस्ट फ्रैंड आशा से मिला था , आज की ये पोस्ट उन्हें ही समर्पित करता हूं , बहुत सोच समझ कर दादी अम्मा ने ये नाम उनको दिया था , आशा और कोई नहीं वे है आशा भट्ट . ( Asha Bhatt) )


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