नई पोस्ट ? बनस्थलीडायरी
" क्या सुमन्त भाई , आजकल कोई नई पोस्ट नहीं लिखते हो और पुरानी पोस्ट शेयर कर देते हो खाली ,क्या बात है ?"
अभी उस दिन स्नेह भट्ट ट्रिनिडाड , वैस्ट इंडीज से आई थीं और मुझसे पूछने लगी थी .
और मैं अपनी सफाई देने लगा कि नई पोस्ट लिखता तो हूं पर पुरानी भी साझा करता चलता हूं .
वो कहने लगी कि वहां जब रात के ग्यारह बजने लगते हैं और मैं सोने लगती हूं तो आप की पोस्ट आने का इंतज़ार करती हूं , पढ़के सोती हूं .
यहां उस समय मेरी सुबह होती है और मैं कुछ न कुछ मांडने लगता हूं . यही है समय चक्र ( समय का चक्कर ).
मेरी स्थिति यह है कि मैं जबानी जमा खर्च तो बहुतेरा किए लेता हूं . मुझे खुद पता नहीं होता , पता नहीं रहता कि गोया ये बात फेसबुक स्टेटस के रूप में दर्ज हो गई या के नहीं ! और इस तरह कोई पहले से दर्ज बात फिर से सामने आती है कि ये तो दर्ज है तो भी लगता है कि फिर एक बार कही जाए बताई जाए . आखिर तब मेरे पांच सौ जानकार थे , अब हजार हैं वो भी तो देखें और परखें इस किस्से को .
ऐसे ही सोच के आज इस स्टेटस को फिर से साझा कर रहा हूं बनस्थलीडायरी के अंतर्गत .
कित्ता बुरा लगा था एक लड़की को उससे जब दूसरी ने पूछ लिया था :
" जीजी , आप तो हिंदी डिपार्टमेंट में हैं ना ? "
क्या तो सवाल है और क्या आया जवाब , क्या नतीजा निकला ये ही है देखने वाली बात .
" आप तो हिंदी डिपार्टमेंट में हैं न जीजी ? "
बनस्थलीडायरी
ये सवाल तो कोई गैर वाजिब नहीं है पर सुनने वाली लड़की को बहुत बुरा लगा था उस दिन जब छात्रावास में एम ए फाइनाल में पढ़ने वाली से प्रीवियस की नई आई एक लड़की ने पूछ लिया था कि जीजी आप तो हिंदी डिपार्टमेंट में हैं ना . घटना श्री शांता विश्व नीड़म की थी और दोनों ही लड़कियां राजनीति शास्त्र विभाग की ही थीं , एक फाइनल में पढ़ने वाली दूसरी प्रीवियस में पढ़ने वाली .
सत्र की शुरुआत थी , छात्रावास में कई एक विभागों की लड़कियां साथ साथ रहा करती थीं , संकायों के हिसाब से कुछ छात्रावसों का बटवारा अवश्य था . घटना छात्रावास में हुई पर बात विभाग में भी आई . हिंदी विभाग में होना कोई अपमान नहीं था ये मैंने उस लड़की को समझाया जिसे सवाल बुरा लगा था . मुझसे भी नए लोग ऐसे सवाल कर बैठते थे मेरी हिंदी सुनकर . पॉलिटिकल साइंस वाले की एक स्टीरियोटाइप इमेज तब कुछ ऐसी थी कि बात बात में अंग्रेजी बोले , ढंग की हिंदी न बोल पाए . मुझे अब भी याद है एक दिन एक बुजुर्गवार मुझे ये बोल दिए थे :" अब तुम्हारी ये शुद्ध हिंदी तो रहने ही दो ." यहां यह भी बताता चलूं कि लड़की अपने से बड़ी लड़की और पढ़ाने वाली महिला को ' जीजी ' कहकर ही संबोधित किया करती थी , ये तब की बात है सत्तर के दशक की . जीजी शब्द के साथ पहचान के लिए विशेषण भी जुड़ जाया करते थे, जैसे बड़ी जीजी . खैर बात तो अभी कुछ और है .
बात असल में ये भी तो थी कि एक ही विभाग में होकर एक दूसरे को जानते नहीं . इसका एक समाधान मैंने सुझाया और मेरे वरिष्ठ साथियों ने पुष्टि की कि सत्र के शुरू में फाइनल क्लास की ओर से स्वागत की पार्टी हो तथा सत्र के आखीर में प्रीवियस क्लास की ओर से विदाई पार्टी हो , यह विभागीय स्तर पर हो . कॉलेज के लॉन में तब की पहली पार्टी मुझे आज तक याद है . तब तो यह परंपरा चल पड़ी थी .
समय कम है . आज के लिए इति .
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