गर्ल चाइल्ड :
कल रात एक दावत में वो बच्चे फिर मिले थे " बाबा " कहकर और मुझे एक थोड़ी ही पुरानी बात याद हो आई . हम लोग तब शायद बनस्थली से जयपुर आए हुए थे और अपने शहर वाले घर गए थे जिसे मैं अपना तीर्थ स्थान कहता हूं . वहां माता पिता और बहन भाइयों के साथ मेरा बचपन बीता था .
कुछ ही महीनों पहले साकेत की बहू शिल्पा ने दो जुड़वां बच्चों को जन्म दिया था जो अब कुछ कुछ मुस्कुराने लगे थे . बच्चे को गोद में लेने और खिलाने में कित्ता अच्छा लगता है यह तो सब कोई जानते हैं . बताने की आवश्यकता नहीं है . आजकल हमारे घरों में माता पिता को मम्मी पापा और ऊपर की पीढ़ी को बाबा अम्मा कहने का चलन हो गया है . वहां बात आई कि बनस्थली वाले बाबा अम्मा आए हैं . तब मैं सोच रहा था कि जब मैं पहली बार बनस्थली गया ं था तब मेरे बाबा वहां थे, तब तो मैं बाबा * के पास गया था , बोलो आज मैं बाबा बनकर आया हूं और वो भी बनस्थली वाले बाबा . खैर अब वो बात जब हम दोनों ने बारी बारी से बच्चों को गोद में उठाने का प्रयास किया .
मैंने पहले लड़के की ओर हाथ बढ़ाकर आवाहन किया कि वो मेरे पास आ जाए , ये हुई प्रयाग की बात , वो हरगिज मेरे पास नहीं आया . खैर अब मैंने लड़की याने पाहुनी की ओर हाथ बढ़ाए और उसके कान के पास जाकर एक बात और कही मानो इत्ता छोटा बच्चा भी बात समझता हो ."बेटा , तू तो मेरे पास आ जा, तू तो लड़की है तुझे हम बनस्थली ले चलेंगे , मैंने जिंदगी भर लड़कियों को ही पढ़ाया , तू समझेगी मेरी बात ."
मेरे ऐसा कहने के फौरन बाद पाहुनी मेरी गोद में आ गई और तब तक मेरे ही पास रही जब तक हम उस घर में ठहरे . भाई साब भी कहने लगे कि सुमन्त ये तो जायगी तुम्हारे साथ .
हमारे वापस बापू नगर लौटने का समय हो गया , दरवाजे तक सब लोग हमें छोड़ने आये तब इस लड़की को मेरे कंधे से छुड़ाना पड़ा वरना वो तो मुझे छोड़ने को तैयार न थी , ऐसी हुई उस दिन बात .
उस अनुभव के बाद मेरी यह आदत सी बन गई है कि मैं कह देता हूं , लिख देता हूं : Add my support for the girl child .
सुप्रभात .
आज के लिए इति .
* पंडित श्याम सुन्दर शर्मा
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