Tuesday, 6 February 2018

गर्ल चाइल्ड : जयपुर डायरी .



गर्ल चाइल्ड :

कल रात एक दावत में वो बच्चे फिर मिले थे " बाबा " कहकर  और मुझे एक थोड़ी ही पुरानी बात  याद हो आई .  हम लोग तब शायद बनस्थली से जयपुर आए हुए थे और अपने  शहर वाले घर गए थे  जिसे मैं अपना तीर्थ स्थान कहता हूं . वहां माता पिता और बहन भाइयों के साथ मेरा बचपन बीता  था .

कुछ ही महीनों पहले साकेत की बहू शिल्पा ने दो जुड़वां  बच्चों को जन्म दिया था जो अब कुछ  कुछ मुस्कुराने लगे थे . बच्चे को गोद में लेने और खिलाने में  कित्ता अच्छा लगता है  यह तो सब कोई जानते हैं . बताने की आवश्यकता नहीं है . आजकल हमारे घरों में माता पिता को मम्मी पापा और ऊपर की पीढ़ी को बाबा अम्मा कहने का चलन हो गया है  . वहां बात आई कि बनस्थली वाले बाबा अम्मा आए हैं . तब मैं सोच रहा था कि जब मैं पहली बार  बनस्थली  गया ं था तब मेरे बाबा वहां थे, तब तो मैं बाबा * के पास गया था ,   बोलो आज  मैं  बाबा बनकर आया हूं  और वो भी बनस्थली वाले बाबा . खैर अब वो बात जब हम दोनों  ने बारी बारी से बच्चों  को गोद में उठाने का प्रयास किया .

मैंने पहले लड़के की ओर हाथ बढ़ाकर  आवाहन किया कि वो मेरे पास आ जाए , ये हुई प्रयाग की बात ,  वो हरगिज मेरे पास नहीं आया . खैर  अब मैंने  लड़की याने पाहुनी की ओर हाथ बढ़ाए और उसके कान के पास जाकर एक बात और कही  मानो इत्ता छोटा बच्चा भी बात समझता हो ."बेटा , तू तो  मेरे पास आ जा, तू तो लड़की है  तुझे हम बनस्थली ले चलेंगे , मैंने जिंदगी भर लड़कियों को ही पढ़ाया , तू समझेगी मेरी बात ."

मेरे ऐसा कहने  के फौरन बाद पाहुनी मेरी गोद में आ गई और तब तक मेरे ही पास रही जब तक हम उस घर में ठहरे . भाई साब भी कहने लगे कि सुमन्त ये तो जायगी तुम्हारे साथ .

हमारे वापस बापू नगर लौटने का समय हो गया , दरवाजे तक सब लोग हमें छोड़ने आये  तब इस लड़की को मेरे कंधे से छुड़ाना पड़ा वरना वो तो मुझे छोड़ने को तैयार न थी , ऐसी हुई उस दिन बात .

उस अनुभव के बाद मेरी यह आदत सी बन गई है कि मैं कह देता हूं , लिख देता हूं  :  Add my support for the  girl child .

सुप्रभात .

आज के लिए इति .

* पंडित श्याम सुन्दर शर्मा


No comments:

Post a Comment