Saturday, 3 February 2018

बात का बहाना : बनस्थली  डायरी .

बात का बहाना : बनस्थली डायरी 

 हम लोगों में एक कहावत है , “म्हारा गणेश जी अने दूंदी बाई नै केम जई टूट्या ? “ ये एक व्रत कथा की परिणति से बनी कहावत है , आज बात उसी कहानी से शुरु करता हूं .


व्रत कथा :

 कथा इतनी सी है कि दूंदी बाई नाम की एक घरेलू सेविका घर में आते जाते दरवाजे पर गणेश जी को जल चढ़ाती , ध्याती , मनाती और घर में काम भी कर आती . समय की गति कुछ ऐसी हुई कि इस सेविका पर गणेश जी की कृपा हो गई और उसके घर में धन धान्य हो गए . गृह स्वामिनी ने जब सेविका से पूछा तो उसने इस वैभव के आने का कारण भी बता दिया जो था ‘ गणेश जी की कृपा .’

इस परिणति के कारण गृह स्वामिनी को जो कष्ट हुआ वही कहावत है :

“ म्हारा गणेश जी दूंदी बाई नै केम जैई टूट्या ?”

माने जो हमारे अधिकार क्षेत्र में है वो किसी और पर कृपालु क्यों होवे ? बस इत्ती सी बात है .

ये कथा तो कहावत बरतने को कही है अब एक पुरानी बात .

बनस्थली में पहला साल :

पहले साल में मैं फर्स्ट ईयर की क्लास भी पढ़ाता था उसका एक छोटा सा प्रसंग बताता हूं . एक लड़की क्लास के बाद मुझे रोककर कहने लगी कि उसने सब्जेक्ट बदल लिया है और मैं रजिस्टर में उसका नाम काट देवूं . मैंने मान ली बात . पर ये बात एक बार में पूरी नहीं हुई और उसके बाद भी एकाधिक बार ये लड़की मुझसे अलग से आकर मिली कभी नाम फिर से लिखवानें के लिए और कभी नाम फिर से कटवाने के लिए . सत्र की शुरुआत थी इस दौरान विषय चयन में रद्दोबदल हो सकता है पर उसकी भी एक प्रक्रिया होती है , कार्यालय में लिखकर देना होता है और दोनों विषयों के विभागाध्यक्ष की स्वीकृति से ही विषय बदला जा सकता है , खैर .मैं उस भोली लड़की की बात हर बार सुन लेता और ये सब क़ायदे क़ानून बताता पर ये सिलसिला जारी रहा .


एक दिन की बात :

 उस दिन तो हद हो गई . दोपहर भोजनावकाश के समय मैं इतिहास के विभागाध्यक्ष विद्यार्थी जी के साथ बात करते करते पगडंडी से घर की ओर जा रहा था कि ये लड़की बीच रास्ते में फिर आकर मिली . उसने मेरी विद्यार्थी जी से चल रही बात बीच में रुकवा दी और फिर उसी प्रसंग पर बात करने लगी विद्यार्थी जी भी दो मिनिट को खड़े रह गए और सुनते रहे हमारी बात .

जब बात पूरी हो गई और वो लड़की चली गई तो विद्यार्थी जी जो बोले वो महत्वपूर्ण है क्योंकि वो इस वार्तालाप के साक्षी जो थे . विद्यार्थी जी बोले :

उसको न तो नाम कटवाना है और न लिखवाना है , उसको तो तुमसे बात करनी है ….और तुम हो कि….।!”

लो कर लो बात ! इसी बात पर चस्पाँ है ये कहावत :

“ म्हारा गणेश जी अने दूँदी बाई नै केम जई टूट्या। ….? “





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