वैसे तो ये दो अलग अलग मामले हैं , ज्योतिष से मेरा वास्ता और छोटे लाल जी पर यहां दोनों बातें साथ आ रही हैं , ज्योतिष का प्रसंग भी और और छोटे लाल जी का उल्लेख भी . ये बात उन दिनों की है जब मैं बनस्थली में था और ज्योतिष में हस्तक्षेप करने लगा था . पता नहीं क्यों ज्योतिष को लेकर सबके ही मन में कुछ न कुछ कौतुक रहता ही है . मैं इस मामले में अधिक से अधिक लोगों से अटकने को उन दिनों तत्पर रहता था . ऐसे ही एक दिन क्रिसमस के कारण अवकाश था , उद्बोधन मंदिर में कार्यक्रम में सम्मिलित होकर मैं घर आया था और अनायास ही प्रोफ़ेसर छोटे लाल जी मेरे घर 44 रवीन्द्र निवास चले आये .
वे क्यों आये ये मेरे मन में प्रश्न था पर उनके मन में भी कोई प्रश्न ही था और उन्होंने अपना मंतव्य भी कह दिया : मेरा मूक प्रश्न है और उसका उत्तर दो .
छोटे लाल जी ने मेरे सामने एक परीक्षा की स्थिति उत्पन्न कर दी थी , प्रश्न भी बताना था और उत्तर भी देना था . मेरा राजनीति शास्त्र के प्रश्नपत्रों से तो वास्ता पड़ा था पर ज्योतिष का मेरा ज्ञान तो था जैसा ही था , जीवन के प्रश्नों का भला मेरे पास क्या उत्तर था और वो भी यदि मूक प्रश्न है तो वह क्या प्रश्न है भला मुझे क्या पता . खैर अब परीक्षा तो मेरी थी , या तो पास होना था या फेल . मैंने सोचा प्रयास करने में क्या हर्ज है और मैं पंचांग तथा कागज़ कलम लेकर बैठ गया और यह दरसाया कि किसी गंभीर गणना में व्यस्त हूं . प्रश्नलग्न बनाया और अपने आप से प्रश्न किया कि मन का स्वामी कौन है ,उत्तर मिला कि चन्द्रमा है . चन्द्रमा कहां बैठा है ? चौथे भाव में जो मां का घर है . मुझे एक सूत्र मिल गया था , मैंने कहा : डाक्टर साब प्रश्न मां के बारे में है . वे सहमत दिखाई दिए , अब मुझे बात बताना कुछ आसान लगा . मैंने कहा : आपको उनके बारे में ही चिंता है आप बिना कोई समय गंवाए गांव चले जाओ , दर्शन हो जाएंगे . उस दिन छोटे लाल जी मेरा प्रश्नोत्तर सुनकर , संतुष्ट होकर चले गए और बाद में मेरे लिए सबसे बड़ा टेस्टीमोनियल उन्होंने जबानी जारी किया , कैम्पस में वे यह कहते हुए सुने गए कि ये एक लड़का है यहां जो ज्योतिष जानता है , बाकी किसी को कुछ नहीं आता . बहरहाल मैं छोटे लाल जी द्वारा ली गई परीक्षा में पास हो गया था . और बहुत सी बातें हैं . अब छोटे लाल जी भी नहीं रहे , मेरा वो जूनून भी नहीं रहा , उस परिसर से भी आ गए , ये सब तो तब की बातें हैं .
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