तब क्या करें ?
कल सुबह मोती पार्क में एक अजब बात हुई कि एक मेरे लगभग समवयस्क़ व्यक्ति ने आकर एक प्रश्न पूछ लिया मुझसे -
" स्थाई रूप से सुखी रहने का उपाय क्या है / मार्ग क्या है ?"
अजब दार्शनिक प्रश्न था । उन्होंने इस पार्क में मुझसे ही प्रश्न क्यों पूछा मैं नहीं जानता पर मुझे तो बात बनाने का मौक़ा मिल गया वही आज बताता हूं ।
अब मैं भगवतगीता के छठे अध्याय का सातवाँ श्लोक बोलने लगा ( जितात्मनह प्रशांतस्य ...) जो मैंने बड़े लोगों को बरतते सुना था और इसके सहारे इतना बोला कि सुख दुःख कुछ नहीं हैं एक ही सिक्के के दो पहलू हैं , सुख का छिन जाना ही दुःख है और दुःख का बीत जाना ही सुख है । ये बात उन्हें कुछ कुछ जच गई । कुछ उदाहरण भी यहाँ काम आए जिनसे ये पता लगा कि सुख में दुःख छिपा हुआ है , जैसे अगर लम्बी उमर पाओगे तो अपने से छोटी उमर के लोगों को मरते हुए देखोगे ये तय है । जीवन और जगत के उजले पक्ष को देखोगे तो सुख पाओगे ।
ऐसी भी बातें हुईं कि कभी तो समय काटे नहीं कटता और कभी टाइम ही नहीं मिलता ये सब आपकी मनोदशा और आपके नज़रिए पर निर्भर है ।
एक बात पर हमारी सहमति बनी कि हम दूसरों के सुख में जब भागीदार नहीं होते और उनसे ईर्ष्या कर बैठते हैं तो दुःख होता है ।
एक बड़ा कौतुक प्रश्न उन्होंने किया कि ये क्या चक्कर है कि कभी तो दिन बड़े हो जाते हैं और कभी छोटे ? और मैंने उन्हें सलाह दे डाली कि बच्चों की किताबों से थोड़ा भूगोल पढ़ डालिए इसका उत्तर आपको मिल जाएगा । मैं उन्हें बता हीरहा था कि हमारे भूभाग में तो दिन और रात की अवधि में बहुत ज़्यादा अंतर नहीं होता इस चर्चा को सुनकर बग़ल की। बेंच पर बैठी बच्ची उन्हें ध्रुव प्रदेशों की बात बताने लगी ज़हां छह छह महीने के दिन और रात होते हैं । ख़ैर ये सब चर्चा होते हवाते हम फिर वो ही स्थाई सुख की बात पर आ पहुँचे और वो ये " तो फिर क्या करें ?"
और चर्चा को इस नजरिए से समेटने का प्रयास किया मैंने
कि जो है वो अच्छा है और आगे भी अच्छा ही होगा ।
उन्होंने मेरा समय लिया इसके लिए मेरा आभार व्यक्त किया और मैंने उनका अपनी बात को सुनने और सहमत होने के लिए ।
जाने कैसे लोगों को ये लग जाता है कि यें अध्यापक है और वो अजब ग़ज़ब सवाल पूछ बैठते हैं ।
मध्याह्न सभा स्थगित ..........
@ गुलमोहर , जयपुर
मंगलवार २२ मई २०१८ .
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