Wednesday, 7 November 2018

सवारी - सवारी .

#सवारी_सवारी

  

जीवन संगिनी से क्षमा याचना के साथ संपादित वृत्तांत Excuse me Manju Pandya

  थियेटर ~

ब्रह्मपुरी चोवटी वीर हनुमान , सन उन्नीस सौ अस्सी के दशक की बात है .

वहां कोई अवसर ऐसा था कि प्रश्नोरा समुदाय के लोग वहां जुटे थे और अब शाम पड़े अपने अपने घरों को जा रहे थे , और लोग भी आए थे शायद कोई बैठक ख़तम हुई थी . 

बाहर निकलने पर अपने अपने साधनों से लोग रवाना होने लगे .

सुरेन्द्र शर्मा दफ्तर से सीधे आए थे और अब घर को लौट रहे थे . उन्होंने अपनी मोटर में अम्मा , मोटी अम्मा , भूआ जी सरीखी सत्तर पार वृद्धाओं को बैठा लिया , आगे उनकी मोटर में ड्राइवर सीट के पास फाइलें रखी थीं और कोई ख़ास जगह बची नहीं थी . रामदास बाबा घर के बाहर ही खड़े थे और इन सब के बैठ जाने के बाद मुझे भी उस मोटर में ही बैठा देना चाह रहे थे ताकि जब ये लोग उतरें तो मेरा साथ रहे और मैं इन्हें संभाल सकूं . इसी को लेकर बाबा और सुरेन्द्र शर्मा में थोड़ी देर संवाद हुआ ~~~~~


एक सवारी और आ जाएगी .


अब और सवारी नहीं आ सकती .


आगे आ जाएगी एक सवारी .


नहीं, अब आगे सवारी की जगह नहीं है , जितनी आ सकती थी मैंने बैठा ली अब और जगह बची नहीं है .~~~~

बात बनती न देखकर बाबा ने मेरे दोनों कन्धों पर पीछे से हाथ रखे और मुझे उनके सामने किया ~


" इसे बैठाना है ."


तुरंत जवाब में शर्मा जी ने मोटर का आगे का फाटक खोल दिया मेरे लिए और बोले :

" इत्ती देर से सवारी सवारी कर रहे हो , ये क्यों नहीं कहते ,’ इस को बैठाना है .’ …..ये तो बैठ जाएगा. "

 मैं बैठ गया . लेकिन करम भी पीट लिया 

उमर हो गई टिकिट खरीदते खरीदते और यहां सवारियों में गिनती भी नहीं है .

मेरे अलावा इस प्रसंग से जुड़े सभी पात्र अब स्मृति शेष हैं पर बात है कि मुझे बार बार याद आ जाती है .

नमस्कार .

प्रातःकालीन सभा स्थगित …

इति .

~~~~~~

जयपुर 

16 नवम्बर 2015 .


आशियाना से अपडेट :

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पुराना किस्सा है . कई बार सुनाया है , पर जब भी सुनाया जीवन संगिनी से बच बचा के ही सुनाया न तो वे ये ही कहती :


"मुझे ये अच्छा नहीं। लगता कि आपकी सवारियों में गिनती नहीं है . "


गए बरस राम बाबू के आग्रह पर पहली बार ये किस्सा सोशल मीडिया पर डाला था .

आज फेसबुक याद दिला रहा है तो सोचा गृह कलह का जोखिम लेकर एक बार फिर इसे एडिट कर दिया जाए . 

टोका टाकी होगी तो देखी जाएगी . अब अपण तो जैसे हैं जो हैं .

आप तो मजा लो किस्से का .

किस्सा कैसा लगा ? अगर आपने पहले न सुणा हो तो , बताना जरूर .


नमस्कार  

 भोर की सभा स्थगित ..........


सुमन्त पंड्या .

@ आशियाना आँगन , भिवाड़ी .

  16 नवंवबर 2016 .


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