बनस्थली जाकर मैं ज्ञान विज्ञान महाविद्यालय में पढ़ाने लगा था । श्यामनाथ पहले से वहां अर्थशास्त्र के युवा प्राध्यापक थे उन्होंने मुझे पड़ौस के एक स्कूल अध्यापक लाभचंद ( बदला हुआ नाम ) जी से मिलवाया । उस दौर में stc ,jtc सरीखी डिग्री लेकर लोग स्कूल अध्यापक बन जाते थे । माट साब उसी पीढ़ी के अध्यापक थे । बी ए के किसी खण्ड की प्रायवेट परीक्षा दे रहे थे , उसकी तैयारी के सिलसिले में ही मुझसे मिलवाया था । माट साब ने अपने प्रयास से , श्रम से बीए भी किया बी एड भी किया और कालांतर में हैड मास्टर भी बने । मेरे घर बनस्थली में भी खूब आये , जयपुर में भी आये । उनके बीएड के दाखिले में भी मैं इंस्ट्रूमेंटल रहा । मैं श्यामनाथ की बताई एक बात से बहुत आहत था कि हमारे एक साथी ने तो इन माट साब को पढ़ाने के बदले गृह सेवक की तरह जोता था । खैर हमारे घर में ऐसा नहीं था । अध्यापक होने के नाते मैं उन्हें बराबर का दर्जा देता , उम्र में बड़े होते हुए भी वो जीवन संगिनी को भाभी जी कहते । यह पारस्परिक स्नेह लगातार बना रहा । खैर .....
खैर इन्ही माट साब के भोलेपन से जुड़ा हुआ एक रोचक प्रसंग बताकर आज की बात समाप्त करूं :
एक दिन माट साब ने मुझसे सौ रुपए उधार देने की मांग की । यह उस समय एक बड़ी रकम थी । मैंने 70 रुपये के एक क्विंटल गेंहूं खरीदे थे , तब की बात है । मुझे काकाजी * से ये सीख मिली थी कि किसी को उधार दो तो सामान्य स्थिति में उतना ही दो जो तुम गंवाना गवारा कर सको । मान लो कि ये रुपया लौट कर नहीं आएगा । मैंने माट साब को अपनी कुछ असमर्थता बताते हुए पचास रुपये तत्काल दे दिए ।
कुछ दिनों के बाद एक दिन माट साब कालेज में उस पेड़ के नीचे आये जहां मैँ कई साथियों के साथ बैठा था उन दिनों वही स्थान हमारा स्टाफ रूम होता था । ' कैसे आना हुआ माट साब ? ' मैं उनके लिए उठकर खड़ा हुआ । वो बड़े सहज रूप से बोले : मैं वो शेष राशि के लिए आया था । "
जाने क्यों माट साब ने ये मान लिया था कि किसी मजबूरी के कारण मैं उस दिन पचास ही दे पाया और पचास और दे देने का आश्वासन उन्हें मिल गया है , इसी लिए वो आज फिर से आये थे । मैं फिर उनके साथ अलग जाकर मिला ।
लौटकर वापिस आया तो साथी मुझसे पूछ रहे थे : अरे तुमने इस मास्टर से उधार ले रक्खा है ?
मेरे बड़कों आशीर्वाद रहा कि परिसर में कभी किसी से उधार माँगने नहीं गया और लोग क्या कहते हैं इस बात की कभी परवाह नहीं की .
आज के लिए इति ।
स्मृतियों के चलचित्र से ये संस्मरण ब्लॉग पर प्रकाशित किया है और इसका लिंक फ़ेसबुक पर भी जोड़ा है .
ReplyDeleteये नियम सही है। जब कोई उधार मांगे तो दान समझ कर दो।
ReplyDeleteआभार वकील साब ।
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