Wednesday, 23 May 2018

आप लिखते भी हो क्या ?

“ आप लिखते भी हैं क्या ? “

अब इस सवाल का मैं क्या जवाब देता भला ।

सोशल मीडिया का कई लोग ये इस्तेमाल करते और समझते हैं कि कुछ फ़ोटो वोटों जोड़ देवें और हो गई जै राम जी की और मेरी टेक है कि फ़ोटो जोड़ो तो जोड़ो और साथ में कुछ न कुछ मांड़ देओ साथ में ।

हां ये ज़रूर है कि मैं बोलता ज़्यादा हूं और मांडता कम हूं ।

उपकरणों से मांडने में ये दिक़्क़त भी आती है कि ‘ ऊक चूक लिखा चला जावे .’ देखिए गए बरस की बात :


“ ऊक चूक लिखा चला जावे !


अब ये तो आज का ही वाकया है किसी ने मैसेज भेजा था गुड ईवनिंग का और जवाब चला गया गुड मॉर्निंग का । अगले ने समझा तो मुझे मूरख ही होगा पर शिष्टाचार वश सन्देश का जवाब ये भेजा के मज़ाक कर रहे हो क्या । और तब गया मेरा ध्यान कैना ये उपकरण , अगर छूने में जरा सी गड़बड़ी हो जाए तो , क्या का क्या कर डालते हैं । 

ये सब कुछ बेलगाम घोड़े पर बैठने जैसा है ।

थोड़ी सी असावधानी से आपकी कही अच्छी भली बात का गुलगपाड़ा हो सकता है ।

रात साढ़े दस के आस पास तो वैसे ही मैं फ्यूज़ होणे लगता हूं तो असावधानी में क्या का क्या चला जाए मेरे नाम से कुछ पता नहीं ।

आज कोई नए सिरे से पोस्ट नहीं लिखी थी सो अपवाद रूप में ये बेटैम पोस्ट लिखी है , बाकी मेरा तो कुछ मांडने का टैम सुबह का ही होता है ।

सुबह भेंट होगी प्राइवेट कॉफी के साथ ।”

सुमन्त पंड्या

दिल्ली

—-और तिस पर मेरे अभिन्न मित्र गोविंद राम जी की ये टिप्पणी :

“ बहुत सुन्दर.. 

रात 11 बजे भी आप कितने जागरूक हैं कि शत प्रतिशत होशों हवास में रहकर सच ही सोचते और करते हैं अन्यथा ज्यादातर तो कनफ्यूज हो जाते हैं कि "यह संसार है भी या नहीं "... "मैं कहां हूं" और बिस्तर में निढाल होकर गिर जाते हैं.. 

"आपका कोई जबाब नहीं".. बार बार हम यही कहेंगे कि आप "मांडते" बहुत सुन्दर हैं..”

ऐसे ही मित्रों की मदद से सोशल मीडिया पर आता जाता रहता हूं ।

गुलमोहर कैम्प , जयपुर से सुप्रभात ☀️

नमस्कार 🙏

गुरुवार २४ मई २०१८ .


Tuesday, 22 May 2018

तब क्या करें ? बातें मोती पार्क की .

तब क्या करें  ?

कल सुबह मोती पार्क में एक अजब बात हुई कि एक मेरे लगभग समवयस्क़  व्यक्ति ने आकर एक प्रश्न पूछ लिया मुझसे -
" स्थाई रूप से सुखी रहने का उपाय क्या है / मार्ग क्या है ?"

अजब दार्शनिक प्रश्न था । उन्होंने इस पार्क में मुझसे ही प्रश्न क्यों पूछा मैं नहीं जानता पर मुझे तो बात बनाने का मौक़ा मिल गया वही आज बताता हूं ।

अब मैं भगवतगीता के छठे अध्याय का सातवाँ श्लोक बोलने लगा ( जितात्मनह प्रशांतस्य ...) जो मैंने बड़े लोगों को बरतते सुना था और इसके सहारे इतना बोला कि सुख दुःख  कुछ नहीं हैं एक ही सिक्के के दो पहलू हैं , सुख का छिन जाना ही दुःख है और दुःख का बीत जाना ही सुख है । ये बात उन्हें कुछ कुछ जच गई । कुछ उदाहरण भी यहाँ काम आए जिनसे ये पता लगा कि सुख में दुःख छिपा हुआ है , जैसे अगर लम्बी उमर पाओगे तो अपने से छोटी उमर के लोगों को मरते हुए देखोगे ये तय है ।  जीवन और जगत के उजले पक्ष को देखोगे तो सुख पाओगे ।

ऐसी भी बातें हुईं कि कभी तो  समय काटे नहीं कटता और कभी टाइम ही नहीं मिलता ये सब आपकी मनोदशा और आपके नज़रिए  पर निर्भर है ।
एक बात पर हमारी सहमति बनी कि हम दूसरों के सुख में जब भागीदार नहीं होते और उनसे ईर्ष्या कर बैठते हैं तो दुःख होता है ।

एक बड़ा कौतुक प्रश्न उन्होंने किया कि ये क्या चक्कर है कि कभी तो दिन बड़े हो जाते हैं और कभी छोटे  ? और मैंने उन्हें सलाह दे डाली कि बच्चों की किताबों से थोड़ा भूगोल पढ़ डालिए इसका उत्तर आपको मिल जाएगा ।  मैं उन्हें बता हीरहा था कि हमारे भूभाग में तो दिन और रात की अवधि में बहुत ज़्यादा अंतर नहीं होता इस चर्चा को सुनकर बग़ल की। बेंच पर बैठी बच्ची उन्हें ध्रुव प्रदेशों की बात बताने लगी ज़हां छह छह महीने के दिन और रात होते हैं । ख़ैर ये सब चर्चा होते हवाते हम फिर वो ही स्थाई सुख की बात पर आ पहुँचे और  वो  ये   " तो फिर क्या करें ?"

और चर्चा को इस नजरिए  से समेटने का प्रयास किया मैंने 

कि जो है वो अच्छा है और आगे भी अच्छा ही होगा ।
उन्होंने मेरा समय लिया इसके लिए मेरा आभार  व्यक्त किया और मैंने उनका अपनी बात को सुनने और सहमत होने के लिए ।

जाने कैसे लोगों को ये लग जाता है कि यें अध्यापक है और वो अजब ग़ज़ब सवाल पूछ बैठते हैं ।

मध्याह्न सभा स्थगित ..........

@ गुलमोहर , जयपुर
  मंगलवार  २२ मई  २०१८ .


Monday, 21 May 2018

पैदल पैदल : बनस्थली डायरी .


जिन साथियों के साथ मैंने बनस्थली में एक लंबी पारी खेली उसमें एक नाम इतिहास विभाग के डाक्टर पेमा राम का भी है . उन्हीं को लेकर एक रोचक प्रसंग सुनाता हूं .

 ज्ञान मंदिर या कि वाणी मंदिर से क्लास पढ़ाकर रवीन्द्र निवास की ओर पैदल पैदल आ रहा था कि एक हस्तक्षेप हुआ . डाक्टर पेमा राम अपनी नई कार से सड़क पर रूककर मुझसे बतियाने लगे .

आखिर ख़ास बात क्या थी ?

उन दिनों आर्थराइटीज के दर्द के कारण मेरी चाल प्रसिद्ध अंग्रेज कवि लॉर्ड बायरन जैसी लगा करती थी , किसी भी स्वजन को देखकर तदनुभूति के कारण दर्द हो आता था . ऐसा ही कुछ डॉक्टर पेमा राम के साथ भी हुआ .

ये सही है कि इस मर्ज का सबसे अच्छा और सुलभ व्यायाम भी पैदल चलना ही है . मैं आभारी हूं वैद्य हरिनारायण का कि उनकी बताई चिकित्सा से कुछ दुरुस्त होकर जब मैं आपाजी आरोग्य मंदिर पहुंचा था तो वैद्य जी बोले थे:


" देखो, आज तो घोड़े की जात चले आ रहे हैं पंड्या जी ."


खैर वो बात तो फिर सही अभी तो उस ख़ास दिन की बात :

रुके और कहने लगे पेमा राम :


"भाई साब आप थोड़ा पैदल चला करो."


बात तो सही थी और उन्होंने एक व्यापक सन्दर्भ में कही थी , ठीक ही तो कही थी . पर मैंने तो तात्कालिक सन्दर्भ को पकड़ लिया और मैंने तुरंत कहा:


" डाक्टर साब मैंने आप को कहा क्या कि मुझे मोटर में बैठाकर ले चलो ?

मैं तो हूं ही पैदल ."

मेरी भी बात सही थी , निरुत्तर हुए डाक्टर पेमा राम .

उन दिनों को याद करता हूं तो पुरानी बातें याद आ जाती हैं .

बनस्थली की यादों के साथ  सभा स्थगित .


Saturday, 19 May 2018

गुड मॉर्निंग पोस्ट ; अपने से बात .

अपने से बात ।

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अब कुछ तो करना पड़ेगा । 

ऐसे तो ठीक नहीं ।

ये केवल कॉफी के बहाने राम रामी ।

ये क्या बात हुई भला ?

अब सोच विचार कर कोई तो पोस्ट लिखनी पड़ेगी ।

आधी अधूरी छूटी बातें पूरी करनी पड़ेंगी , तब बनेगी कोई बात ।

यहां रहो , वहां रहो कोई फरक नहीं ।

पर लिखना तो है , यही अपने आप को आश्वासन है ।

और कोई बात अभी बताने को नहीं है तो 

प्रातः कालीन सभा स्थगित ...


नमस्कार ।

जय भोलेनाथ ।🔔🔔


Friday, 18 May 2018

पीवूं नी बाप जी चाख़ूं हूं  .

बोध कथा :

" पीवूं नी बापजी चाख़ूं हूं ..."


एक भोला ग्रामीण किसी झरने या तालाब से अँजुरी में भरकर पानी पीने लगा तो अचानक कोई पक्षी बोल पड़ा :


" पीऊ ..पीऊ .."


उसे लगा कि उसके पानी पीने पर आपत्ति है तो वो अपनी सफ़ाई में बोला :


" पीऊं नी बाप जी चाख़ूं हूं ।"

ये तो है क़िस्सा । 

आज क्यों याद आया ?


बात इत्ती सी है कि मैंने विद्यार्थी के रूप में राजनीति शास्त्र पढ़ा और अध्यापक बनकर चार दशक तक राजनीति शास्त्र पढ़ाया भी है पर ‘ एंटायर पलिटिकल साइंस ‘ पढा होने की ड़ींग अलबत्ता कभी नहीं हाँकी थी । सोशल मीडिया पर लोक रंजन चर्चाएँ ही की । कल मुझे जाने क्या सूझी कि छोटी मोटी राजनीति विषयक टिप्पणी युक्त पोस्ट अपनी वाल पर जोड़ दी ।कि मेरी बात पर भक्त अटकने चले आए । टिप्पणी करने वालों की मनोदशा और और प्रतिबद्धता को समझते हुए मैंने उनसे न अटकना ही बेहतर समझा ।


अभी हाल तो इत्ता ही क़हूंगा :


" पीवूं नी बाप जी चाख़ूं हूं ।"


जो मुझे जानते हैं वो बोध कथा का इशारा समझेंगे , भक्तों को समझाने का ठेका तो मैं लेना नहीं चाहता वो लोग अपणा स्वाध्याय जारी रखें ।

बिना बात समझे मुझसे न ही अटकें तो बेहतर होगा ।


Monday, 14 May 2018

ज्योतिष और मेरी परीक्षा छोटेलाल जी द्वारा : बनस्थली डायरी 

ज्योतिष और मेरी परीक्षा : छोटे लाल जी द्वारा. 



वैसे तो ये दो अलग अलग मामले हैं , ज्योतिष से मेरा वास्ता और छोटे लाल जी पर यहां दोनों बातें साथ आ रही हैं , ज्योतिष का प्रसंग भी और और छोटे लाल जी का उल्लेख भी . ये बात उन दिनों की है जब मैं बनस्थली में था और ज्योतिष में हस्तक्षेप करने लगा था . पता नहीं क्यों ज्योतिष को लेकर सबके ही मन में कुछ न कुछ कौतुक रहता ही है . मैं इस मामले में अधिक से अधिक लोगों से अटकने को उन दिनों तत्पर रहता था . ऐसे ही एक दिन क्रिसमस के कारण अवकाश था , उद्बोधन मंदिर में कार्यक्रम में सम्मिलित होकर मैं घर आया था और अनायास ही प्रोफ़ेसर छोटे लाल जी मेरे घर 44 रवीन्द्र निवास चले आये .

वे क्यों आये ये मेरे मन में प्रश्न था पर उनके मन में भी कोई प्रश्न ही था और उन्होंने अपना मंतव्य भी कह दिया : मेरा मूक प्रश्न है और उसका उत्तर दो . 


छोटे लाल जी ने मेरे सामने एक परीक्षा की स्थिति उत्पन्न कर दी थी , प्रश्न भी बताना था और उत्तर भी देना था . मेरा राजनीति शास्त्र के प्रश्नपत्रों से तो वास्ता पड़ा था पर ज्योतिष का मेरा ज्ञान तो था जैसा ही था , जीवन के प्रश्नों का भला मेरे पास क्या उत्तर था और वो भी यदि मूक प्रश्न है तो वह क्या प्रश्न है भला मुझे क्या पता . खैर अब परीक्षा तो मेरी थी , या तो पास होना था या फेल . मैंने सोचा प्रयास करने में क्या हर्ज है और मैं पंचांग तथा कागज़ कलम लेकर बैठ गया और यह दरसाया कि किसी गंभीर गणना में व्यस्त हूं . प्रश्नलग्न बनाया और अपने आप से प्रश्न किया कि मन का स्वामी कौन है ,उत्तर मिला कि चन्द्रमा है . चन्द्रमा कहां बैठा है ? चौथे भाव में जो मां का घर है . मुझे एक सूत्र मिल गया था , मैंने कहा : डाक्टर साब प्रश्न मां के बारे में है . वे सहमत दिखाई दिए , अब मुझे बात बताना कुछ आसान लगा . मैंने कहा : आपको उनके बारे में ही चिंता है आप बिना कोई समय गंवाए गांव चले जाओ , दर्शन हो जाएंगे . उस दिन छोटे लाल जी मेरा प्रश्नोत्तर सुनकर , संतुष्ट होकर चले गए और बाद में मेरे लिए सबसे बड़ा टेस्टीमोनियल उन्होंने जबानी जारी किया , कैम्पस में वे यह कहते हुए सुने गए कि ये एक लड़का है यहां जो ज्योतिष जानता है , बाकी किसी को कुछ नहीं आता . बहरहाल मैं छोटे लाल जी द्वारा ली गई परीक्षा में पास हो गया था . और बहुत सी बातें हैं . अब छोटे लाल जी भी नहीं रहे , मेरा वो जूनून भी नहीं रहा , उस परिसर से भी आ गए , ये सब तो तब की बातें हैं .