बातें बनस्थली की :ऊर्जा संकट - भाग दूसरा .
___________________________
स्पष्टीकरण :
________ सच कहता हूं मुझे नहीं पता कि ऐसा कैसे हुआ कि मेरे टैब पर बाबा जी की छाया पड़ गई , ये कमबख्त जब तब अनुलोम विलोम करने लगता है . कल सुबह भी यही होने लगा और मैंने ये वाली पोस्ट अधूरी स्थगित कर दी . आप सब के प्यार भरे सन्देश अधूरी पोस्ट पर भी आए और अनुरोध से आरम्भ होकर धमकी की , नहीं नहीं चेतावनी की भाषा तक नौबत पहुंच गई तो कोशिश करता हूं कि आज तो हो ही जाए बात पूरी .
तो हो जाए .....
स्वगत कथन :
_________ अब बातें बनाना बंद कर सुमन्त , ले जीवन संगिनी से अनुमति और पोस्ट पूरी कर .
खबरदार कर बाबाजी को जो मेरे टैब को 'अनुलोम ' ' विलोम ' करवाया तो
....मैं भी देख लूंगा ....और तो क्या ?
आज की बात : कल की पोस्ट से आगे .
_________________________
अपन खड़े पाए गए निवाई तहसील में , साहब के इजलास में , खाली झोले झंडे और मिनी कनस्तर से लैस मय पारिवारिक शिष्टमंडल के .
ऐसे तो कोई इजलास में नहीं जाता . शायद निवाई तहसील के ज्ञात इतिहास में ऐसा तो पहली बार ही हुआ होगा .
साहब ने जब नजर उठाई तो मैं तो किसी न किसी उपालम्भ की ही अपेक्षा कर रहा था , मैं बिलकुल नहीं जानता था कि बैठा व्यक्ति कौन है और उसका नाम गांव क्या है , मैं तो केवल पद नाम जानता था . दरकार थी तो सिर्फ तेल के परमिट की .
पर उसके बाद जो कुछ हुआ वो था अप्रत्याशित और उसका संकेत मेरी कल की आखिरी पंक्ति में चलते चलाते आ ही गया था . मेरा भी तो सिद्धांत है कि किसी को भरोसे रखो तो भी भावी का कुछ संकेत तो देवो ही देवो....
" सुमन्त... यहां ..कैसे ..इतने दिनों बाद ..प्लेजेंट सरप्राइज !"
और ये कहते हुए तहसीलदार अपनी कुर्सी छोड़ , डायस से उतर कर नीचे आ गए और और गर्म जोशी से मिले मुझसे और हम सबसे . मुझे हालात का मारा देख एक बार को पीछे मुड़े , टेबिल पर रखी घंटी बजाई . एक नहीं दो गुमाश्ते दौड़े आए और वो बोले :
" साहब का सामान ऊपर ले चलो ."
और ये कहते हुए हम सब को पिछले दरवाजे से निकल कर ऊपर लिवा ले गए . उस समय तो तहसील की ऊपर की मंजिल में ही उनका सरकारी आवास था .
इस बीच मैंने अपने तहसील पहुंचने का निमित्त भी तो बता दिया था और उन्होंने वहीँ से दो लोगों को तेल लेने भेज दिया था .
और ये सब कहने करने वाले थे लक्ष्मी नारायण जो अपने समय के दर्शन शास्त्र विभाग के एम ए के स्वर्णपदक विजेता और राजस्थान विश्वविद्यालय में मेरे सीनियर थे जो कोई अपनी विशेष चाहत से तहसीलदार नहीं बने थे उन्हें हालात ने तहसीलदारी की ओर धकेल दिया था . और दर्शन शास्त्र विषय और डाक्टर दयाकृष्ण से लेकर अन्य सभी शिक्षक वो कड़ी थे जो हमें एक प्रकार से आपस में जोड़ते थे .
मुझे याद आया कि प्रोफ़ेसर दयाकृष्ण प्रायः राजस्थान कालेज में दर्शन शास्त्र के विद्यार्थियों को इकठ्ठा करते , बात करते और यों विश्वविद्यालय के विभाग में मुझ जैसे विद्यार्थियों की बात पहुँचती .
दर्शन शास्त्र बी ए में मेरा भी विषय था और सभी लोगों से जुड़ाव था .
अन्य लोगों का उल्लेख आगे नए सन्दर्भों के साथ आएगा .
अभी तो वो चलें निवाई :
________________ उस दिन लक्ष्मी नारायण अपने घर क्या लिवा ले गए तात्कालिक समस्या का समाधान तो किया ही कितनी बातें हुईं , वे लगातार साथ रहे , बात करते करते बाजार में भी साथ जाने को हो लिए , वापसी की बनस्थली की बस में हमारे बैठने तक हमारे साथ रहे .
मुझे उनकी हैसियत से कोई रश्क तो नहीं हुआ लेकिन उस समय उनका वहां होना क्या मायने रखता था वो बताता हूं . एक दिन मेरे लाइब्रेरियन दोस्त टी एन रैना साब तहसील का कोई काम लेकर आए और बोले :
"यार..सुना है तहसीलदार तेरा दोस्त है सो ...."
और अपना वही सिद्धांत कि सिफारिश तो अपन भारत के राष्ट्रपति के नाम भी निस्संकोच मांड देवें , मानना न मानना उनका काम ...
____________
छापे की गलतियों के लिए माफ़ करना साथियों .
पूरी तो अभी कहां हुई बात पर इसे ही पूरी मान लेवो .
बनस्थली निवाई हलके के उन दिनों को याद करते हुए .
प्रातःकालीन सभा स्थागित .
सुमन्त पंड़्या
गुलमोहर कैम्प , जयपुर .
2 जून 2015 .
***************************************************
अपडेट : साल भर बाद . गुरुवार 2 जून 2016 .
--------------------------
कल बनस्थली में ऊर्जा संकट विषयक जो किस्सा छेड़ा था उसमें आपका सवाल बच रहा था ," फिर क्या हुआ ? " ," आगे क्या हुआ ? " , " तेल मिला के नहीं ? " वगैरा , वगैरा .... और मैंने कहा न था कि पासा पलट गया . अब आज इस साल भर पुरानी पोस्ट को ज्यों के त्यों चर्चा में ला देता हूं कुछ हद तक उपसंहार हो जाएगा .
सुप्रभात
आपका आभार उत्सुकता व्यक्त करने के लिए .
-- सुमन्त पंड्या .
***********************************************************************
ये संस्मरण आज फिर ब्लॉग पर जुड़ रहा है । जस तस मैंने बात पूरी की थी उस दिन । इसे पढ़कर मित्रों ने जो कुछ कहा वो भी यहां जोड़ता हूं । डाक्टर दुर्गा प्रसाद अग्रवाल की टिप्पणी थी :
" मुझे तो आपका सिद्धांत पसन्द आया - सिफारिश तो अपन भारत के राष्ट्रपति के नाम भी निस्संकोच मांड देवें , मानना न मानना उनका काम ... यह हुआ सकारात्मक सोच. कल की बात आपने पूरी की और एक सिद्धहस्त कथाकार की मानिंद कथा में एक अप्रत्याशित ट्विस्ट भी दे दिया. बहुतों का अन्दाज़ था कि तहसीलदार साहब ज़रूर ही आपके शिष्य रहे होंगे, लेकिन आपने एक झटका दे ही दिया. यह होता है सिद्धहस्त कथाकार. "
और गोविंद जी ने तो यहां तक कह दिया :
" "AJAB" "GAZAB" nahi , usse bhi uper... Sab kuchh "GAZAB HI GAZAB..."
भाई यादवेंद्र ने एक और ही बात कही थी :
" अचरज यदि सकारात्मक हो तो उम्र अपने आप बढ़ जाती है भाई साहब ।"
और चुन्ना भाई ( नवीन भट्ट ) ने ये कथा सुनकर कहा था :
" हर कोई इतना भाग्यशाली नहीं होता कि ऐसे स्थान पर पूर्व परचित या जानपहचान का लकी-ड्रॉ निकल आए ।"
चक्रपाणि ने तो पहले एपिसोड के के बाद जैसा कहा था वैसा ही किया । उसने कहा था :
" पूरी दास्तान पढ़ने के बाद कल भरपूर लाइक करेंगे वैसे पहला एपीसोड भी काफ़ी रोचक है । "
--------------
इस प्रकार पूरी हुई ये ऊर्जा संकट प्रकरण की दूसरी कड़ी और इस पोस्ट बाबत आयी कुछ चुनिंदा टिप्पणियाँ ।
अब किए देता हूं इसे ब्लॉग पर प्रकाशित ।
जयपुर
शुक्रवार २ जून २०१७ ।
--------------------------------------------