Tuesday, 27 March 2018

स्थानापन्न अनुदेश शिविर में : बनस्थली डायरी 

स्थानापन्न : अनुदेश शिविर में 



ये भी बनस्थली में मेरे सेवाकाल का ही एक प्रसंग है जो आज सुबह याद आने लगा और मैंने सोचा आज इसी पर पोस्ट बनाऊं .

स्थान : अनुदेश शिविर , बनस्थली विद्यापीठ , सत्रांत का समय और और एन एस एस शिविर का समापन .

शिविर का समापन समारोह जब समाप्त होने लगा तो सभी आगंतुक जाने लगे . जीजी ( सुशीला व्यास ) भी चली गयीं , जिनके हाथों कतिपय पुरस्कारों का वितरण करवाया गया था . मैं भी शिविर से जाने को उद्यत हुआ कि अचानक समाज शास्त्र की अलका जी मेरे कान में ही बोलीं:

 " सर, आप थोड़ी देर और ठहर जाइए , अभी शिविर में और कार्यक्रम बाकी है , आपकी जरूरत पड़ेगी ."

मैंने सहमति तो दे दी पर एक बार 44 रवीन्द्र निवास तक जाकर आने की अनुमति मांगी. कारण यह था कि परिवार जन किसी और कार्यक्रम में जाने वाले थे और मैं चाहता था कि घर की डुप्लीकेट चाबी मेरे पास भी रहे तो असुविधा न हो . खैर मैं घर तक गया और चाबी लेकर वापस अनुदेश शिविर में लौट आया , तब जाकर समापन समारोह का उत्तरार्ध कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ . मैं स्थानापन्न / स्टेपनी मुख्य अतिथि बना दिया गया . घर जाने और लौट कर आने में मेरे पास संसाधनों में एक चाबी के गुच्छे का ही इजाफा हुआ था और ये समय पर बड़ा काम आया जो मैं बताने जा रहा हूं . बहर हाल घर की चाबी से रात के भोजन का भी प्रश्न जुड़ा हुआ था लेकिन शिविर के आयोजकों ने मुझे भरोसा दिलाया था कि मेरा रात का भोजन भी शिविरार्थियो के साथ हो जाएगा सो चिंता नहीं थी .

ढेर पुरस्कार और प्रमाणपत्र , प्रतीक चिन्ह बांटने बाकी थे जो मैंने बांट दिए और इसके बाद मेरे बोलने की बारी आई . बारी आने पर जो कुछ मैंने उस दिन कहा उसमे से चुनिंदा बाते कहता हूं :

एक तो सबसे आसान काम जो मैं कर सकता था वह था अपनी पीढ़ी की ओर से नई पीढी से क्षमा मांगना और वही मैंने किया भी . यह वह समय था जब मेरी सी उमर के लोग राजनीति में सभी ओर दुर्दशा के लिए उत्तरदायी दिखाई दे रहे थे .

दूसरी बात थी ' देशाभिनंदन ' की और इस विचार को मैंने पहली बार स्थापित किया . मैंने कहा : 

" परंपरा से जब किसी का नागरिक अभिनन्दन किया जाता है तो उसे प्रतीक रूप में नगर की चाबी सौंपी जाती है , मैं नई पीढी का नागरिक अभिनन्दन करने को नहीं खड़ा हुआ हूं मैं " देशाभिनंदन " के लिए खड़ा हुआ हूँ . मैं देश की चाबी तुम्हें सौंपता हूं . "

हंसी खुशी के वातावरण में शिविर का समापन हुआ , सांस्कृतिक कार्यक्रम भी हुआ और भोजन भी .

ऐसे हुआ शिविर समाप्त .

बनस्थली की मधुर स्मृतिओं के साथ सभा स्थगित .



Wednesday, 21 March 2018

काली टी शर्ट : जयपुर डायरी



  चाय पर सायंकालीन सभा : टी डन @ गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर . 👍

मंगल वार 22 मार्च 2016 .

सभा में मैंने ऐसी बताई बात :

दो तीन दिन पहले मैं  शाम के बखत शिवाड़ एरिया में  घूमने निकला तो क्या  देखता हूं के  झाड़ लड़का लड़की काले काले या तो टी शर्ट न तो कमीज पहन के डोलते दीखैं  , मुझे अपने पर बड़ी शरम आई मुझे लगा मैं ही इस इलाके में किसी और ग्रह का प्राणी आ गया हूं .

मेरा ये  सिद्धांत कि  व्हाइल इन रोम डू एज  रोमॅन्स डू .

मैं  घर आया मैंने भी अपना काला वाला टी शर्ट ढूंढा पहना और हो गया नए जमाने की संगत में शामिल  , वो ही टी शर्ट में तस्वीर आपको भेज रहा था सेल्फ़ी के जरिए तो मेरी हिमायत में बोली जीवन संगिनी कि ठीक से अपनी उतार न पाओगे और अनुज से कहकर उतरवाई ये तस्वीर  जो जोड़ूंगा अभी इस पोस्ट के साथ .

Good evening Friends .

गए बरस जस तस आज के दिन सायंकालीन सभा में बण पाई थी ये पोस्ट , आज इसे भोर में जगार के साथ जारी करता हूं । अभी का स्टेटस वही है :

Good morning 🌄 & private coffee ☕ done -

अब या तो नेहरू गार्डन जाना है न तो फिर मोती पार्क .

@ गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर ।


Monday, 19 March 2018

डाक बाक़ी बात बाक़ी :  भिवाड़ी डायरी 

डाक बाकी -बात बाकी ।


ये 16 मार्च 2018 की ही तो बात है आंगन के स्टोर में पहुंचते ही अवि ने कहा था : " हैप्पी बर्थ डे आंटी !" और चॉकलेट खिलाई थी ।

कल जीवन संगिनी ने कहा कि ये फोटो तो सोशल मीडिया पर होनी चाहिए , उसी की तामील कर दी है आज ।



Saturday, 17 March 2018

गैस एजेंसी में : आप क्या थे सर ?

गैस एजेंसी में : " आप क्या थे ? " 


ये भिवाड़ी आने से कई दिन पहले की बात है , अचानक याद आई कि बता दूं , ये वाकया भी जिसमेँ हुआ संवाद ही मेरे अस्तित्व को चुनौती देता लगा था मुझे .

गैस बुक कराता हूं , हो गई बुक , अब ये भी टंटा है मोबाइल फोन से ही होती है गैस बुक . माने फोन न हो तो आप गैस उपभोक्ता ही नहीं हो सकते .

हो गई गैस बुक ऑन लाइन और माना कि आ जाएगी सप्प्लाई मगर सन्देश तो कई आए , बिल नंबर भी आ गया , रवानगी भी बता दी सिलेंडर की और डिलीवरी भी इधर तो सप्लाई आई ही नहीं . ये सब सन्देश तो कंपनी से आते रहे गैस एजेंसी को भेजनी थी गैस सो उसने नहीं भेजी . रोटी तो आजकल गैस पर सिकती है संदेशों से नहीं भरता ये पापी पेट . मुझे लगा अब एजेंसी से ही बात करनी चाहिए सो की बात . लंबे प्रयास से नंबर मिला बताया गया कि मेरा खाता बंद कर दिया गया क्योंकि लंबे अरसे से गैस जो बुक नहीं हुई थी . मूल कागजात , अपनी पहचान बैंक पासबुक आदि लेकर स्वयं एजेंसी में हाजिरी देवूं तो ही यह खाता खुल सकता है . अब खाता तो खुलवाना ही था सो सब कुछ जुटाकर गया गैस एजेंसी और बंद खाते का ताला खुलवाया . 

इस बीच किसी और का फोन नंबर मेरे गैस खाते से जुड़ा दर्ज पाया गया , किसी और का ही उपभोक्ता नंबर था जिसके गैस डिलिवरी सन्देश थे आ तो मुझे रहे थे गैस कहीं और वितरित हो रही थी , इन सब की सफाई करवाई और तार्किक समाधान भी करवाया . जब तक सब गड़बड़झाला दूर नहीं हो गया मैं रहा वहां मौजूद . सिवाय " आधार " के सब कुछ तो था मेरे पास तमाम तरह के अपने आई डी , गैस उपभोक्ता होने के कागजात , बैंक खाते की पासबुक और मैं खुद एक पुराना उपभोक्ता जिसने यह कहा था कि अब तक सेवाओं से संतुष्ट रहा और अब कुछ शिकायत लेकर आया हूं . ये तो मैं खुद था मौजूद तो हो पाया समाधान . अगरचे मैं न होता मौजूद तो कैसे होता ये समाधान ये ही सोचता रहा .


ये सब तो दुरुस्त पर जो बातचीत वहां हुई वह भी तो बताऊं . एजेंसी के अधिकारी ने पूछा :


" आप किस डिपार्टमेंट में हैं? "


मैं बोला: " मैं किसी डिपार्टमेंट में नहीं हूं , क्या आपके लिए इतना जानना काफी नहीं होगा कि मैं सीनियर सिटीजन हूं . "


अधिकारी फिर भी बोला :

  " आप क्या थे ? "

मैं फिर बोला :

" अरे मैं ' था ' नहीं , मैं ' हूं ' . मैं अब भी हूं और आप क्या थे ऐसा पूछ रहे हैं ? ऐसे तो किसी और से पूछिएगा जब मैं न होवूं ."


खैर वो जो जानना चाहते थे वो मैं भी समझता था और अच्छे से समझा भी दिया मैंने पर ये सोचने को बाध्य जरूर हुआ कि सीधी साधी उपभोक्ता आवश्यकताओं से भी ये प्रश्न क्यों जुड़ जाते हैं . सीधे से उपभोक्ता को मान्यता क्यों नहीं मिल जाती .

आखिर हो गया समाधान और साक्षात प्रधानमंत्री की आवाज में मेरे पास इस बाबत टेलीफोन भी आ गया , अवश्य ही आप सब के पास तो पहले ही आ चुका होगा , मेरा ही खाता बंद पड़ा था सो कुछ देर हुई .


फिर एक बार दोहराऊंगा मैं था नहीं , मैं हूं ना . गैस उपभोक्ता हूं और रहूंगा अभी तो . मुझे राइट ऑफ करके कोई मुझसे बात न करे अभी हाल .


Saturday, 3 March 2018

म्हां कै तो दोन्यू ही मीठा : जयपुर डायरी 

म्हां कै तो दोन्यूं ही मीठा : जयपुर डायरी .

आज सुबह या शायद कल जीवन संगिनी ने मेरी गतिविधि देखकर कहा :


“ म्हां कै तो दोन्यूं ही मीठा .”


ये एक वार्ता खेल का समापन वाक्य है . पहले वो खेल संवाद और फिर उसकी यहां प्रासंगिकता बताऊंग़ा .


खेल क्या है ?


“ बाबाजी बाबाजी आम दो .”

“ आम हैं सरकार के “

“ हम भी हैं दरबार के .”

“ एक उठा लो बच्चा ..”

उठाकर स्वाद चखता है बच्चा और कहता है :

“ ये तो खट्टा है …”

“ दूसरा उठा लो बच्चा ..”

बच्चा दूसरा आम और उठा लेता है और उसका भी स्वाद चखता है .

अब उसकी बाँछें खिल जाती हैं और वो कहता है :


“ म्हां कै तो दोन्यूं ही मीठा , दोन्यूं ही मीठा …”


क्या है यहां प्रासंगिकता और क्यों आई ये बात ? 

वही बताता हूं :

असल में थोड़े ही समय पहले जब मैं सोशल मीडिया पर आया तो मेरी स्थिति उस निरक्षर व्यक्ति जैसी थी जो किसी साक्षर व्यक्ति को बताता जाता है कि ऐसे लिख दो और वैसे लिख दो बशर्ते कि कोई फुरसत वाला व्यक्ति इस काम के लिए सेवा देने को उपलब्ध होवे और इस प्रकार वो अपनी चिठ्ठी पत्री लिखवाए . ऐसा चलता रहा एक आध बरस तक पर होनहार की बात कि बच्चों ने एक उपकरण अपनी समझ से मंगवाकर मुझे दे दिया और थोडा बहुत सिखा भी दिया कि लिखना कैसे है . इस उपकरण के सहारे कोई हजार से ज्यादा पोस्ट मैंने फेसबुक पर लिख डाली . नव साक्षर को कुछ लिखने का हरख होता भी ज्यादा ही है वही मेरे साथ भी रहा .

और एक दिन सुमन ने ब्लॉग भी बनाकर दे दिया पर अपनी समझ जितनी थी ब्लॉग तक पहुंचने में ही कठिनाई , तब मैंने वो पोस्ट लिखी थी ,” अपने ही घर का पता पूछते हैं .” खैर उसका भी हुआ समाधान , आज दिन तक धीरे धीरे एक सौ पोस्ट ब्लॉग पर दर्ज कर चुका हूं और जैसा ब्लॉग मैनेजर की सूचना है अब तक कोई साढ़े सात हजार विजिटर मेरे ब्लॉग को देखने आ चुके हैं , इस पर मुझे संतोष है .

लोग मिलते हैं तो मेरे लिखे का हवाला देते हैं , थोड़ी बहुत सराहना करते हैं और लिखते रहने की प्रेरणा भी देते हैं .


पर कठिनाई कहां आई ?

ये पहला उपकरण गूगल का नेक्सस -7 धीमा होने लगा , शायद ये उपकरण थकने लगा था , एक तो अपण खुद धीमे और अगर उपकरण और धीमा हो तो तो हो लिया कोई काम . इस स्थिति को देखकर जीवन संगिनी ने बच्चों को कहना शुरु किया कि पापा को कोई नया उपकरण दिलाओ और बरतना सिखाओ . इसी क्रम में एक दिन दीपावली के आस पास जब गुलमोहर कैम्प में शिखर सम्मेलन हुआ तो एक नए उपकरण पर सर्वानुमति बनी और इस प्रकार आ गया एपल का आई पैड मिनी , आपको तो बताया ही था , गूगल और एपल ये न्यारे न्यारे स्कूल रहे तो नए स्कूल में जाकर मैं उसके तौर तरीके सीखने लगा .

अब सवाल ये कि पहले वाले उपकरण का क्या करें ? क्या इसे कबाड़ में डाल दें ? कबाड़ी को बेच दें ? ओ एल एक्स पर बेच दें . 

मुझे इनमें से एक भी विकल्प स्वीकार न हुआ , मैंने दोनों ही उपकरणों पर अंगूठा अंगुली चलाना जारी रखा , बारी बारी से दोनों को बरतना जारी रखा … और इसी पर कहा जीवन संगिनी ने :


“ म्हां कै तो दोन्यूं ही मीठा ।”

अब एक बार में जाने लायक पोस्ट , हो गई पोस्ट तैयार ,  पोस्ट को प्रकाशित किए देता हूं .

नमस्कार 🙏