Sunday, 3 June 2018

गए नहीं आप ?  : भिवाड़ी डायरी .

" गए नहीं आप ?"


है न अजीब सवाल , पर इसमें भी प्यार छुपा है ये बात ज़रा देर से समझ आई मुझे जब एक हम उम्र दोस्त ने पिछली बार मुझसे ये सवाल मिलते ही पूछ लिया था । डबका तो ये ये हुआ कि ये मुझे यहां से रवाना कर देने को बेताब है । पर असलियत ये थी कि उनको मुझसे लगाव था और उनको बात चलाना ऐसे ही आता था । फिर मैं कैफ़ियत देने लगा कि आपको निराश नहीं करूंग़ा , कल यहां एक कार्यक्रम में भाग लूंग़ और परसों जरूर चला जावूँगा । 

आजकल देश में माहौल भी कुछ ऐसा है कि छोरे छापरे ही मुझे कहीं और जाकर देख लेने की सलाह दे देते है . सब उनकी समझ का फेर मैं उनसे आगे अटकता नहीं केवल भविष्य के लिए एक कहावत याद आ जाती है :

" समझा तो समझा पर तूम्बी फोड़कर समझा ।"

अब आया हूं यहां आगे जाने के लिए , अभी हाल यहां से राम रामी 🙏



2 comments:

  1. आज फिर साझा करूंग़ा ये पोस्ट ।

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  2. लोक व्यवहार की बात है । आज इसे मध्याह्न सभा में चर्चा के लिए फिर से उठाया है ।

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