Tuesday, 5 June 2018

बनस्थली डायरी : बिन बात की बात .

" गुस्सा आता है प्यार आता है ,
            गैर के घर से यार आता है . "
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    गए बरस की पोस्ट है  , मजबूरी में दोहराता हूं ,
     -- सुमन्त पंड्या .
      @ गुलमोहर
       6 जून 2016 .
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फिर बनस्थली की याद : बिना बात की बात .
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आज अचानक बहुत दिनों पहले की बात याद हो आई .
उस दिन मैं 44 रवीन्द्र निवास और 45 रवीन्द्र निवास के बीच के  चौक जैसे स्थान में परिवार और साथियों के साथ बैठा हुआ था और बातों में लगा  था रात घिर आई थी और बातें जारी थीं .
इतना सा वहां का स्थानीय राजनीतिक सन्दर्भ  जोड़ना यहां उचित होगा कि उन दिनों मैंने कर्मचारियों की  कोऑपरेटिव सोसाइटी ओढ़ रखी थी , मैं उसका अध्यक्ष बना हुआ था .
अचानक लेखानुभाग वाले गुप्ता जी एक और साथी के साथ  दक्षिण दिशा से आए और पास आने पर ही पहचान में आए क्योंकि अंधेरा था उस बखत . आते पहले बरसने लगे और जितनी देर वहां रहे बरसते ही रहे . मामला कोई सोसाइटी का ही था जिसकी तफ़सील  मुझे याद भी नहीं और तब भी उसके कोई मायने नहीं थे . उन्हें बरसना था और वो बरसे मैं लगातार केवल सुनता रहा और इस बात का अवसर देता रहा कि वो अपनी बात खुलकर कह लें . जब वो कह चुके तो मैं बोला," ठीक ". और वो चले गए .
गुप्ता साब के जाने के बाद साथ बैठे साथियों ने पूछा :

" सुमन्त जी आपको गुस्सा नहीं आता ?"

मैंने ऐसी ही कुछ बात कही उस समय :

" ..बचपन में बहुत आता था , अब नहीं आता , और ये भी है कि ऐसे पंचायती काम ओढ़ने पर इस तरह की स्थितियां आती ही हैं इनको झेलें यही जरूरी है ."
और वो घड़ी टल गई , कोई झगड़ा टंटा नहीं हुआ , जिस दिशा से आए थे उसी दिशा में लौट गए गुप्ता साब . मेरे लिए बात आई गई हो गई .
आगे जीवन की गाड़ी उसी प्रकार चलती रही जिसमें घर परिवार , पढ़ाने का काम और सोसाइटी की जिम्मेवारी साथ साथ चले .

एक दिन की बात : गुप्ता जी का बुलावा आया :
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उन्ही गुप्ता जी का बेटा मेरे लिए सन्देश लेकर आया कि जयपुर से कोई सज्जन आए हैं , गुप्ता जी के घर बैठे हैं और मुझ से मिलना चाहते हैं .
जाने पर उनसे साक्षात्कार हुआ और वो निकले राजस्थान विश्वविद्यालय हिंदी विभाग के डाक्टर हुकुमचंद  गुप्ता जो एक ही बिरादरी के होने के नाते कोई रिश्तेदारी की बात चलाने वहां आए थे और लेखानुभाग वाले गुप्ता जी उन्हें अपने घर लिवा ले गए थे .  उनके घर जाते हुए मेरे घर के बाहर नाम पढ़कर डाक्टर गुप्ता साब ने  पूर्व परिचय के आधार पर मुझसे मिलने की इच्छा प्रकट की तो भी बनस्थली वाले  उन्हें यह कहते हुए लिवा ले गए कि इनको भी अपने यहां ही बुला लेंगे  , उस समय प्राथमिकता और काम की थी . यही करके बेटा बुलाने आया था और मैं वहां गया था .
मेरे ऊपर आगंतुक डाक्टर गुप्ता साब का अपार स्नेह था और अपना विद्यार्थी वहां पाकर वो बहुत खुश थे पर उनके सामने जो कुछ बनस्थली वाले गुप्ता जी बोले वो था आश्चर्यजनक तो .
वो बोले :
" साब इनको पढ़ाना आता है .  .... एक दिन इनसे लड़कियों ने कहा सर आज हम नहीं पढ़ेंगे .....तो इन्होंने भी कह दिया मैं भी आज नहीं पढ़ाऊंगा , अपन तो आज केवल बात करेंगे और ये उन्हें क्लास में ले गए , लड़कियों को तो साब पता भी नहीं चला कि कब बातों बातों में उनकी पढ़ाई शुरु हो गई और ये उन्हें पढ़ाकर ही आए ."
डाक्टर गुप्ता के लिए तो यह सब सुनना सुखद था ही मेरे लिए आश्चर्यजनक भी था और सुखद भी क्योंकि बात कहां से कहां पहुंच गई थी .
मैं सोच रहा था , क्या ये वही व्यक्ति हैं जो उस रात कैसे बरसे थे , बोलो ये तो मुझे कितना चाहते और सराहते  हैं .
बनस्थली के अच्छे दिनों को याद करते हुए
प्रातःकालीन सभा स्थगित .
समीक्षा :    Manju Pandyadya
#sumantpandya
सुप्रभात.
सुमन्त
गुलमोहर ,  शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .
6 जून 2015 .

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