Monday, 25 June 2018

नानगा द ग्रेट : स्मृतियों के चलचित्र ३.

नानगा द ग्रेट : तीसरी कड़ी .

नानगा बाबत दो पोस्ट लिख चुका हूं , उसी कड़ी में ये तीसरी पोस्ट है पर शीर्षक थोड़ा सा बदला हुआ है . नानगा कोई मामूली आदमी नहीं था वो विलक्षण था और उसके अपने जीवन मूल्य थे जिनसे उसने कभी समझोता  नहीं किया . समय के साथ उसके जीवन में बदलाव आया और बच्चों के लिए वो ऐसी विरासत छोड़ गया जिसका उसकी बचपन की कहानी से तालमेल दूसरों के लिए तो समझना भी मुश्किल होगा .

शंकर :
-------     उस दिन शंकर आया , मैं उसे छोड़ने को बाहर गया तो बड़ा स्वाभाविक प्रश्न कर बैठा :
" मोटर कोडै छै थारी?"
मतलब तेरी मोटर कहां है .
और शंकर फाटक बंद कर पैदल जाने लगा मुझे बताया कि वो पैदल ही आया है और घर जाने के लिए सिटी बस पकड़ेगा . हाथ में एक ऐसा ही थैला था उसके पास जैसा मुठ्ठी में लटकने वाला थैला लेकर ग्रामीण और कस्बाई लोग चला करते हैं . आ गई मेरे  समझ में बात कि आखिर तो नानगा का बेटा है , डाउन टू अर्थ . वरना तो महाराज , जो अकूत सम्पदा का मालिक हो वो जमीन पे पांव ना धरे . कैसे बन गई ये सम्पदा इसी की कहानी जुड़ेगी नानगा के जीवन की अगली बातों से . अभी तो फिर वही नानगा के बचपन की बात .

नानगा काकाजी अम्मा के पास :
----------------------------------   नानगा , एक अनाथ लड़का काकाजी अम्मा के पास रहने तो आ गया पर उसके लिए किसी बेहतर रोजगार की तलाश तो थी ही . उसे किसी ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम मिल गया और ये तय हो गया कि वो माल लाने ले जाने वाले ट्रक के साथ जाएगा जहां उसे लगा बंधा वेतन भी मिलेगा .
जब अगले दिन उसे काम पर जाना था पहले दिन सुबह से नानगा दीवार में मुंह छुपाकर बार बार रोने लगा . काकाजी ने उससे इस रोने की वजह पूछी तो बोला :

" मैं म्हारा मा बाप नै छोड़ अर कौने  जा सकूं ."
मैं अपने मा बाप को छोड़कर नहीं जा सकता .
वहीँ नौकरी में जाने का विचार तत्काल रद्द हो गया . काकाजी बोले :

"तनै कुण खै छै जाबा बेई ?"
अर्थात ,  तुझे जाने को कौन कहता है ?

और काकाजी ने उसे आश्वस्त किया कि वो उसे कुछ और रुपये प्रतिमाह दे दिया करेंगे उसे अपना घर छोड़कर कहीं जाने की जरूरत नहीं है . उसने जयपुर में ही रहकर काम भी किया . राज्य सरकार की नौकरी में रहकर काकाजी का अलबत्ता तबादला हुआ पर नानगा ही रहा हमारे घर का केयर टेकर  उस दौरान भी .

घर से बाहर पहला काम : नानगा से नानगराम .
________________________________नानगा
का भाग्य से विवाह भी हो गया और वो अपने लिए यहीं कोई रोजगार चाहता था . उन दिनों चन्द्रमहल (सिटी पैलेस) में लगातार तामीर और मरम्मत का काम चलता रहता था , नानगा को वहां ' चमाळया' ( बेलदार) का काम मिल गया .
नियुक्ति के समय काकाजी ने ही उसे ' नानग राम ' नाम दिया जो दर्ज किया गया . काकाजी का नाम ' मुकुंद राम ' था .
काकाजी और नानगा के नाम में एक लय थी , वैसी ही लय उनके सोच में भी थी , जो बात आगे आएगी ही .....
आज के लिए इतना ही ....
प्रातःकालीन सभा स्थगित .

सुप्रभात .
सह अभिवादन : Manju Pandya

सुमन्त पंड्या .
गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर जयपुर
27 जून 2015 .
नोट : मेरे साथ फोटो नानगा  की नहीं शंकर की है .


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