शंकर को देख कर आज भी मुझे नानगा की याद आ जाती है . मुझे बचपन से नानगा की जो छवि याद आती है उसमे सिर पर साफा , कानों में सोने की मुरकी , कमीज और धोती पहने हुए , पावों में देशी जूती याने पगरखी पहने हुए नानगा दर्ज है .
नानगा कभी क्लीन शेव्ड कभी दाढ़ी थोड़ी बढ़ी हुई , फिर एक आध दिन में संवार बनाकर तैयार नानगा .
शिव भक्त नानगा :
नानगा के कमीज की बगल की जेब में घी में सनी हुई फूल बत्तियं एक डिबिया में रखी रहती थीं . इतनी भक्ति जाने वह कैसे सीख गया था कि घर के सामने चौराहे पर जो जंगजीत महादेव का मंदिर है सीढियां चढ़कर वो नियमित रूप से वहां जाता और एक दीया जलाकर आता .
उसी का मैं पुण्य प्रताप मानता हूं कि साक्षात शंकर ने उसके घर जन्म लिया . वरना तो उसके समुदाय में लड़कियों की तब कमी ही होती थी और जैसी पारिवारिक पृष्टभूमि थी उसका विवाह भी कैसे होता .
मुनीम साब :
नानगा के साले थे मुनीम साब जिनका नाम तो वैसे नारायण था पर हम लोग उन्हें मुनीम साब ही कहते थे . वो छोटी चौपड़ के पास एक सर्राफा व्यापारी की दूकान पर मुनीम का काम करते थे . मुनीम साब कुछ मामलों में नानगा के वित्तीय सलाहकार भी थे और वैसे भी शेठाणी के भाई होने के नाते आत्मीय तो थे ही . पर यहां मैं एक और कारण से उनका उल्लेख कर रहा हूं जो आगे स्पष्ट होगा .
नानगा के सन्दर्भ में इस प्रसंग की प्रासंगिकता :
मुनीम साब के बड़े भाई अवधि पार जा रहे थे और उनका विवाह नहीं हो पा रहा था . जिस जगह विवाह की बात चली वहां बेटी के बाप ने एक बात रख दी कि बड़ी बहन का विवाह बड़े भाई से होवे तो छोटी बहन का विवाह छोटे भाई से भी होवे ही तभी यह रिश्ता मंजूर होगा . नतीजा ये कि मुनीम साब का विवाह गूंगी बहरी से हुआ था . खैर पर मुनीमाणी के साथ उनकी गृहस्थी भी सफल रही . इस लिए मैंने एक आध बार कहा कि भाग्य से नानगा का विवाह हो गया था . समुदाय में लड़कियों की तो शार्टेज ही थी .....
नानगा आया किस गांव से था ये तो मुझे अब पता नहीं पर इतना पता है कि सांगानेर के पास सुक्या गांव में उसका ससुराल था . कालान्तर में ये ही गांव सुखपुरिया कहलाया . नानगा ने शहर में कोई मकान जमीन जैसी चीज नहीं खरीदी . वो गांव का था उसने अपने ससुराल के गांव सुखपुरिया में जाकर अपनी खुरपी गाड़ दी और आप विशवास कीजिए नानगा के कारण शहर बस गया वहां . पर अभी ये लंबी कहानी है .
इसे समझने के लिए आपको नानगा का अर्थशास्त्र समझना पडेगा
बहुत सी बाते बताने की हैं बहुत सी न बताने की भी .
ये क्रम जारी रहेगा.....
इस प्रसंग में आई सुभाष गुप्ता सांब की टिप्पणी भी यहां जोड़ता हूं , जो इस प्रकार है :
" भाई साहब, यदि परिवार के वे सब जन जो श्री नानगा जी के साथ बड़े हुए, यदि थोड़ा सहयोग करें तो एक उपन्यास की सामग्री हो जाएगी। बहुत ही रोचक और प्रेरणादायक उपन्यास होगा। "
इस आत्मीय टिप्पणी के लिए विशेष आभार Subhash Gupta साब .
आज फिर से नानगा के दोनों बेटों - शंकर और कैलाश को मेरे आशीर्वाद .
प्रातःकालीन सभा स्थगित .
सुप्रभात :
सहयोग और सह अभिवादन : Manju Pandya
प्रेरणा :
Narendra Pandya
Himanshu Pandya
Mahima Pandya
सुमन्त
गुलमोहर , शिवाड़ एरिया, बापू नगर , जयपुर .
30 जून 2015 .
संलग्न फ़ोटो नानगा के बड़े बेटे शंकर का .
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