Monday, 25 June 2018

नानगा द ग्रेट  : स्मृतियों के चलचित्र  २.

मेरा नानगा याने नानग राम : भाग दो .


नानगा का जयपुर आना 

 नानगा अपनी मौसी के साथ जयपुर आया था किसी आश्रय की तलाश में . नानगा की मौसी हमारे घर में माई के नाम से जानी जाती थी , मैंने भी उस माई को देखा था जो नानगा को जयपुर लेकर आई थी . माई का दूसरा नाम ' भोमा की माँ ' था , भोमा भी पहले से जयपुर में रहता था और काम करता था . ये उस जमाने की बात है जब हमारे वृहत्तर संयुक्त परिवार में पांच पीढियां लगभग साथ साथ रहा करती थी . हमारे कुटुंब के शहर में दो मकान थे एक नाहर गढ़ की सड़क पर लाल हाथियों के मंदिर के सामने और दूसरा जंगजीत महादेव के मंदिर के सामने . शहर याने परकोटे के बाहर बस्ती बसने का दौर भी अभी शुरू होने जा रहा था .


जयपुर क्यों आ गया नानगा ?

- बचपन में ही इसके पिता की मृत्यु हो गई थी और मां नातै चली गई थी ( उसका दूसरा विवाह हो गया था.) मां के दूसरे परिवार में इस बच्चे के लिए कोई स्थान नहीं हो सकता था और इसी लिए ये मौसी के साथ जयपुर आ गया था .

अपनी मां के इस नए परिवार से भी नानगा के संपर्क तो रहे होंगे , मैंने नानगा की मां तो कभी नहीं देखी पर इसका एक छोटा भाई राम चंदर यदा कदा जयपुर आता तो इसके पास ही ठहरता था , ये तो बहुत बाद की बात है जब नानगा राय जी के घर में नीचे की मंजिल के एक कमरे में रहने लगा था . अभी तो नानगा के हमारे घर में आकर रहने की बात है जो मैं बताने चला हूं .

दयावान मौसी जब नानगा को जयपुर ले आई तो उसके लिए किसी ऐसे परिवार की तलाश थी जो इस अनाथ बच्चे को आश्रय देवे और ये श्रेय मिला काकाजी और अम्मा ( हमारे माता पिता ) को. उन्होंने इसे अपने घर में रखा . भोजन और आवास के अतिरिक्त कुछ छोटी सी राशि वे इसे देने लगे . घर को झाड़ना बुहारना शाम को बिस्तर बिछाना और सुबह बिस्तर उठाना ये नानगा का नियमित काम होता था . मैंने तो जब होश संभाला तब से नानगा को ये काम करते देखा था . वो जब हमारे घर में आया था तब तो हम भाइयों में से किसी का जन्म भी नहीं हुआ था . काकाजी अम्मा और एक बेटी ( हमारी जीजी) जो अब अस्सी पार हैं और कल रात उन्होंने नानगा को बहुत याद किया और मुझे फोन पर बहुत बातें बताईं , ये ही छोटा सा परिवार था .

नानगा को रहने को घर मिल गया था और मानों काकाजी अम्मा को बेटा मिल गया था .

मुझे बचपन की शहर की गर्मियां बहुत याद आती हैं जब नानगा शाम पड़े छत पर बिस्तर बिछा दिया करता था और मैं तो शायद परिवार का सबसे पहला सदस्य होता था जो वहां जाकर सो जाता था .

बेहतर रोज़गार के लिए नानगा को घर से जाने की नौबत आई तो क्या हुआ यह भी बड़ी मार्मिक कहानी है जो आगे आएगी ही.

नानगा के नानगराम बनने की बात भी बताऊंगा पर अभी इतना ही ...

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सायंकालीन सभा अधूरे एजेंडा पर स्थगित .

सह अभिवादन :

Manju Pandya


सुमन्त पंड्या .

गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .

25 जून 2015 .


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