Thursday, 28 June 2018

ऋषिकांत की बात : फ़ूफ़ाजी ढोक !

ऋषिकांत की बात : " फूफाजी ढोक ." 
       

चलते रस्ते बन गया किस्सा है  आज अगर समय ने अनुमति दी तो वही बताए देता हूं .

अब ये तो आए दिन का रंबाद है कि सुबह सुबह कोई किस्सा मांड न पावूं तो मैं अपनी कोई नई या पुरानी जैसी भी सूझे फोटो लगा देवूं और अभिवादन का क्रम शुरु हो जावे .
ऐसे ही गए दिनों एक फोटो मैंने प्रोफाइल पर टांग दी . इस पर आई टिप्पणियों में एक टिप्पणी ऋषिकांत की भी थी जिसे बचपन से ढब्बू कहते आए हैं   ढब्बू ने अपनी समझ से लिखा :

   " फूफा जी ढोक ."   

  फूफाजी ने आशीर्वाद भी दे दिया पर असल में  ढब्बू के लिखे में कुछ टाइप की गड़बड़ से या गफलत में हो गया था :

"  फूफाजी ठोक ! "

  बात   छूट भी जाती पर   टीप पर टीप देते हुए संदीप ने लिखा :

"   ठोक  नहीं  ' ढोक '  ."

  अब मेरा भी  ध्यान गया कि चाहे गफलत में ही सही ठोकने की बात आ गई है तो मैंने आगे सवाल दाग दिया :?

" किसको ठोकना है ऋषिकांत  बता ? फूफाजी तो ठोक देंगे . "
 
अब ऋषिकांत का तो ध्यान जाता सा जावे , इस बीच क्या हुआ बताता हूं . बात पर बात याद आई पिछली शताब्दी की  .

   कमला मेरी देखरेख में अपना एम् फिल डेसर्टेशन लिख रही थी .  उसके प्रबंध में ढाका का नाम बड़ा महत्वपूर्ण था  विषय के शीर्षक में भी और इबारत में भी पर वो जब भी कुछ लिखकर लाती ' ढाका '  को  ' ठाका '  ही लिखा होता और सुधारना पड़ता , आखिर में मैंने तो यह तय किया कि ये बात टाइपिस्ट को ही बता देवेंगे कि   " ठाका " नहीं  " ढाका " लिखा जाना है .
और इस प्रकार निभ गई बात  , हो गया कमला का शोध प्रबंध पूरा .
ये  पिछले जमाने की बनस्थली की बातें हैं जो बरबस याद आ जाती हैं .

 और एक बात कहने की 
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जाने ऐसा क्यों है कि अंग्रेजी की ए बी सी डी जिसको देखो याद होती है , छोटे छोटे बच्चों से ये वर्णमाला बुलवाकर मां बाप बड़े राजी होते हैं पर हिंदी की वर्णमाला में बड़े बच्चे भी चूक जाते हैं .
क्या तो करो आप अब जो वस्तुस्थिति है सो है . मुझे तो " जोशी बाबा " ने हिंदी / देवनागरी की वर्णमाला और बारहखड़ी पहले पहल सिखाई थी , रोमन अक्षर तो बहुत बाद में पहचानने लगा था . मैं उन जोशी बाबा को नमन करता हूँ  जिनका  सिखाया अक्षर ज्ञान आज दिन तक काम आ रहा है . यही अक्षर ज्ञान मैंने कमला का शोध प्रबन्ध  जांचते हुए दोहराया था .

कभी जोशी बाबा बाबत भी लिखूंगा , देखिएगा  जरूर .

😊 फिर ढब्बू की बात  
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   जब दो बार मैंने ये सवाल दाग दिया :

"  किसको ठोकना है ??? . "

    तो ऋषिकांत माने मेरा प्यारा ढब्बू हरकत में आया और उसने जो लिखा उसे मैं अल्टीमेट  कहूंगा   . उसने लिखा :

"  फूफाजी ! अपने आशीर्वाद रूपी डंडे से मुझे ठोक दो .! " 

   😊 अब अपनी बात 
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  जाने क्यों  गए दिनों से ऐसे किसी को ठोक देने जैसे विचार मेरे मन में आ जाते हैं , ऐसा तो मैं नहीं हुआ करता था , पर अब ऋषि के इस " आशीर्वाद के डंडे " के विचार ने मुझे एक नई सूझ दी है  , अब किसी छोटे मोटे को ठोको तो आशीर्वाद के डंडे से ठोको . यही तो है अब अपने पास .

अब ये पोस्ट तो जाने लायक बन गई पर अभी ढब्बू की भूआ की इस पर स्वीकृति बाकी है .
तदर्थ पोस्ट जारी ..........
आशीर्वाद ऋषिकांत .

सुमन्त पंड्या .
Sumantpandya.
@ गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .
    बुधवार 29 जून 2016

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