Tuesday, 26 June 2018

नानगा द ग्रेट  : स्मृतियों के चलचित्र  ४.

नानगा द ग्रेट : चौथी कड़ी .       


   नानगा काकाजी अम्मा के पास आ गया था और हमारे घर में ही रहने लगा था . उसके लिए रोजगार की तलाश थी . वो ट्रांसपोर्ट कंपनी की नौकरी में जाने को कतई तैयार नहीं था . उसे चंद्र महलों में बेलदार का काम मिला था और अब वह नानगा से नानगराम बन गया था . भाग्य से उसका विवाह भी हो गया था . पड़ोस में राय जी परिवार के घर में नानगा और उसकी बहू गलकू के लिए अलग रहने को एक कमरा किराए पर भी ले लिया गया था . इस नए जोड़े की तब अपनी कोई गृहस्थी नहीं थी . दिन में नानगा अपना काम करने चला जाता और उसकी बहू गलकू , जो हमारे घर में शेठाणी ( सेठाणी का गुजरातीं में उच्चारण ) कहलाई , हम बच्चों की गवर्नेस बन जाती . तब मुझे स्कूल भेजने को शेठाणी ही तैयार किया करती थी ये मुझे अच्छी तरह याद है .

अम्मा की गोद में तो तब छोटा भाई विनोद हुआ करता था , अब उसे देखकर कौन कहेगा कि वो मुझसे चार साल छोटा है . विनोद की स्कूलिंग थोड़ी देर से ही शुरु हुई , वो जब पैदल चलने लगा तो शेठाणी उसे हमारे ही परले घर तक डोलाने ले जाती ये भी मुझे याद है .

मैं इसे बहुत नॉस्टेलजिया से याद करता हूं कि मेरा हेयर स्टाइल उस समय शेठाणी ने ही सैट किया जो आज दिन तक कायम है . मेरे पास प्राइमरी स्कूल के समय की अपनी एक फोटो है , अगर वो ढूंढें से मिल गई तो प्रमाण स्वरूप यहां साझा करूंगा .

नानगा तामीर के काम में बेलदार के रूप में हाथ बंटाता था पर उसका सूक्ष्म निरीक्षण बड़ा जबरदस्त था , वो चीजों को जितना बारीकी से समझता था वो समझ किसी सिविल इंजीनीयर से कम न थी . 


नानगा शाम को अपना काम करके आता और तब शामको वो दोनों राय जी के घर में रहने चले जाते वो समय भी , मेरा बचपन का समय , मुझे याद है .

इस मजदूरी के काम में नानगा को बहुत मेहनत करनी पड़ती थी पर वो मेहनत से जी चुराने वाला नहीं था . वो सभी कुटुम्बी जनों में अपनी सेवा परायणता के लिए जाना जाता था . बाबा याने पंडित श्याम सुन्दर जी के बंगले पर सर्दी आने पर एक प्रकार के बिस्तर दुछत्ती से उतारने और सर्दी जाने पर वहीँ बिस्तर बांधकर ऊपर रखने के लिए नानगा ही बुलाया जाता और उसके लिए तब यह कहा जाता कि वो किसी जिंद की तरह काम में लग पड़ता है और काम निबटाकर ही दम लेता है .

यहां एक टिप्पणी तब के जीवन और सभ्यता के बारे में करता चलूं , तब शाम को बिस्तर बिछाए जाते थे और अनिवार्य रूप से सुबह बिस्तर समेटे जाते थे .आज की सभ्यता में तो बैड रूम का कांसेप्ट आ गया जहां बिस्तर बिछे ही रहना सभ्यता का अनिवार्य अंग है .

बिस्तर समेटने का भी नानगा का ख़ास स्टाइल था जिसको जीवन संगिनी मेरे पोस्ट बनाते हुए याद कर रही है . शायद वे इस बाबत कोई टिप्पणी करें इस लिए इस प्रसंग को यहां स्थगित करता हूं .

बेलदारी के काम में नानगा को मेहनत बहुत थी . काकाजी और अम्मा दोनों चाहते थे कि उसे कोई बेहतर रोजगार मिले और वो उसे मिला जब एक चपसरासी की पोस्ट जयपुर महाराजा के हिज हाइनेस हाउसहोल्ड में खाली हुई . नानगा वहां साइकिल सवार बना और इस नाते उसे कुछ अलाउंस भी मिला वेतन के अतिरिक्त .

हमारे घर से नानगा और शेठाणी वैसे ही जुड़े रहे .

क्रम आगे जारी रहेगा .........

प्रातःकालीन सभा स्थगित .


सुप्रभात .

सह अभिवादन और सहयोग :

Manju Pandya

विशेष सहयोग : Himanshu Pandya

नागगा बाबत एक टिप्पणी भाई साब  ने लिखी थी वो भी यहां जोड़ता हूं :

" सुमन्त नानगा शादी के बाद रायजी के मकान से पहले किशन पोल बाज़ार के आकडों के रास्ते में आकड़ एंड कंपनी नामक दूकान के मालिक के मकान में रहने लगा था वे सेठ यानी व्यापारी बनिए थे इसीलिये सभी ने नानगा को भी सेठ और उसकी पत्नी को सेठानी का संबोधन शुरू कियाथा ,कभी कभी मैं जब सोकर उठने में आनाकानी करता तो वह मुझे भी भी बिस्तर के बीच मे फोल्ड करने का नाटक करता और मजाक करता और फिर कहता दादा थे सो रह्या छा काई मने तो दीख्या ही कोने,मकर संक्रांति केदिन नानगा सवेरे सवेरे अँधेरे में ही आजाता और नीचे से जोर से चिल्लाता "वोआयो' और हमलोग सोये से उठकर पतंग पकड़ने दौड़ पड़ते तब काकाजी और अम्मा कहते अभी तो अँधेरा है अभी कहाँ पतंग है ?ये तो नानगा की मजाक है।नानगा के अनेक प्रसंग हैं पर अब तो केवल मीठी और साथ ही दर्द भरी यादे और कसक है।"

सुमन्त पंड्या .

गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .

29 जून 2015 .


ये फ़ोटो है नानगा के बड़े बेटे शंकर की ।

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