गए दिनों प्रियंकर जी ने बहुत अच्छी राजस्थानी कहावतें फेसबुक पर उद्धृत कीं और जरूरत पड़ने पर उनकी व्याख्या भी की तो बड़ा अच्छा लगा . एक छोटा सा प्रयास इसी सन्दर्भ में ये भी है . मुझे केवल इस बात का डर है कि इन कहावतों को कहीं सेंसर बोर्ड ( मेरा अपना सेंसर बोर्ड ) रद्द न कर देवे . उस स्थिति में मैं तत्काल प्रभाव से इस पोस्ट को हटा लेवूंगा . अभी हाल के लिए दो कहावतें विचारार्थ रखता हूं .
1.
--- इशो तिशो .....
विवाह की आयु निकल रही थी और विवाह नहीं हो रहा था.
" किसका ?"
उसे रहने दीजिए , उससे क्या काम है . कोई भी इस बात का बुरा न माने इसलिए मैं कुछ नहीं कहूंगा .
मैंने तो स्थिति के स्पष्टीकरण के लिए एक कहावत कही थी वही दोहराता हूं :
" इशो तिश्यो मन भावै न , अर मोत्यां वाळो आवै न ."
पहली कहावत का अर्थ है ( इशो तिश्यो ...) कि ऐसा वैसा तो मन को भाता नहीं और मन भावन , मोतियों वाला आता नहीं .
कहावत हर उस परिस्थिति पर चरितार्थ है जब सामने उपलब्ध स्वीकार न हो और मनचाहा विकल्प मिलता न हो .
2.
-- बाई सा का ....
लेकिन विवाह तो हो गया , मेरी कही कहावत उस दिन रद्द हो गई .
मुझसे पूछा गया ,' अब क्या कहते हो? '
मैंने उस दिन दूसरी कहावत दोहराई थी :
" बाई साब का कंवार गिरह उतरगा अर कंवर साब की रिबरिबी मिटगी ."
दूसरी कहावत का अर्थ है परिस्थिति से ऐसा समझोता जिसमें कन्या की कुमारी अवस्था भी पार हो जाय और वर की रीरी पी पी ( किसी बात के लिए मचलना ) भी मिट जाए .
ये केवल कहावतें हैं , जीवन अनुभव पर आधारित , किसी को भी आहत करने के लिए नहीं हैं .
कुछ कहावतें मेरी अपनी गढ़ी हुई हैं , समय आने पर उन्हें भी साझा करूंगा . कुछ एक तो पहले साझा की भी हैं .
प्रातःकालीन सभा स्थगित .
समीक्षा : Manju Pandya.
प्रियंकर जी की ये टिप्पणी विशेष रूप से उद्धृत :
" अभिव्यंजक ! दीर्घकालीन सामाजिक अनुभव का सार विन्यस्त है इनमें . "
ब्लॉग पर प्रकाशित ; ११ अगस्त २०१८.
आपका क़िस्सागो पार्क में .
सराहना की केवल एक टिप्पणी पोस्ट के साथ जोड़ी है .आप लोगों की अनेक टिप्पणियों के लिए आप सब का आभार व्यक्त करता हूं .
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