Wednesday, 8 August 2018

बाज़ार से निकला हूं ख़रीदार नहीं हूं : जूता पुराण 

बाजार से निकला हूं खरीदार नहीं हूं .....


     ये तो कभी सुनी हुई ग़ज़ल का मतला है जो वैसे ही याद आ गया सो शीर्षक के रूप में मैंने डाल दिया क्योंकि बात बाजार की करने जा रहा हूं . जाने सही भी बैठेगा कि नहीं , अब आगे देखी जाएगी .

हमारे कंवर साब भारत भूषण जी ने एक बड़ी मार्के की बात बताई थी वो आज जन हित में प्रकाशित किए देता हूं :


" ..... जब आप आज के जमाने की किसी दूकान में कदम रखते हैं तो दूकानदार पहले पहल आपके जूतों पर नजर डालता है कि आपने जूते कितने मंहगे पहने हैं . अगर आपने मंहगा जूता पहना है तो यह तय हो जाता है कि आप लायक खरीदार हैं. "


गरज ये है कि जूते और बाजार का बड़ा नजदीकी रिश्ता है .

अपना आलम ये है कि मंहगा जूता पैर में काटता है . जूता बेचारा तो अपनी जगह है जूता नहीं पैसा काटता है , ये कहना ज्यादा सही होगा .


अंगरखी और पगरखी .

       - आज भी मुझे ये अंगरखी और पगरखी का पहनावा बहुत आकर्षित करता है और मैं अपने बाबा मदन जी महाराज का चित्र देखकर अभिभूत हो जाता हूं कि क्यों अपन अपना पहनावा भूल गए ,इस पश्चिमी वस्त्र विन्यास के पिछलग्गू हो गए . क्यों इस बाजार में आ गए जिसने एक से एक बढ़िया उपाय किए हुए हैं जेब खाली करने के .

इस जूतों से सजे बाजार में बच्चे नए जूते दिलाने को आमादा रहते हैं और मैं कह पड़ता हूं :

" अब मुझे जूते और दिलाओगे क्या ?"


जूतों का व्यापार :

- भिवाड़ी में मुझे एक सज्जन जूतों का व्यापार करते मिले , उनकी बिरादरी का नाम कुछ ऐसा था जो जूतों के व्यवसाय से मेल नहीं खा रहा था और इसी बेमेल बात की मुझे वो कैफियत दे रहे थे , उन बेचारों को मैं क्या समझाता कि मैं तो हाथ के कारीगर की इज्जत करता हूं चाहे वो बनस्थली का पोखर हो या जयपुर में मेरे पड़ोस का मनसा राम .

पोखर से तो अब जाने कब मिलना होगा पर जयपुर पहुंच कर मनसा राम का साक्षात्कार प्रकाशित करूंगा.

पर चलो ये बदलाव तो आया नए जमाने में कि जो बिरादरी के नाम पर अपने को बड़े मानते थे वे भी जूता व्यवसाई बन गए .

बात थोड़ी अटपटी और अस्पष्ट तो रही पर आज का एकालाप इतना ही 

प्रातःकालीन सभा स्थगित .

समीक्षा : Manju Pandya

आशियाना आंगन , भिवाड़ी .

9 अगस्त 2015 .

Photo credit . Pragnya Joshi

ब्लॉग पर प्रकाशन  ९ अगस्त २०१८.

सप्लीमैण्ट :

पोस्ट तो २०१५ में लिखी थी भिवाड़ी में , फिर २०१६ में जोड़ी थी एक भूमिका , आज फिर से साझा और साथ में ब्लॉग लिंक :


आशियाना से सुप्रभात ☀️

Good morning .


अभी फेसबुक खाता खोलने पर मेरा यंत्र बीते समय की ये पोस्ट दिखा रहा है जिससे कई एक पुरानी पुरानी बातें याद आने लग गईं . आज उन में से कुछ एक बातें यहां साझा किए देता हूं .


  पैरों में ये देशी जूता जोड़ी मेरे लिए बनस्थली में रहवास की यादगार है , ख़ास तौर से उस दौर की जब रवीन्द्र निवास में मेरे घर के आस पास बबूल का जंगल हुआ करता था और इस बात का खतरा बना रहता था कि नाजुक जूता या चप्पल पहन कर अगर घर के बाहर कदम रखा तो पैर में गहरा शूल चुभ जाएगा .. । ऐसी जूता जोड़ी ने मेरे पैरों की हमेशा रक्षा की .


2

हालांकि ऐसी जूता जोड़ी पहनने वाला नव सभ्य समाज में गंवार समझा जाएगा पर मुझे हमेशा से ही गंवार समझा जाना पसंद है बनिस्पत हाई सोसाइटी का समझे जाने के .

आज जब आयातित जूतों से बाजार अटा पड़ा है इंसान की हैसियत जूतों से ही तय होती है . कभी कभी तो मुझे लगता है जूता और पैसा पर्यायवाची हैं .


3

एक हल्की फुल्की : 😊

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भाभी जी को चप्पल में घूमने जाते देख श्रद्धा ने कहा था :


" मैं ... आप को जूते दिलाऊंगी 😊"


मेरी जैसी आदत मैंने तो इस पर यही टीका की


".... के अब ये ही कसर बाकी रही है 😊......."


4 .


अब मुझे अधिक कहने की आवश्यकता नहीं कि मुझे मंसाराम से क्यों इत्ता लगाव है .

अगर देश की राजनीति का ये ही आलम रहा तो आगे से ऐसी देशी जोड़ी तो आपको देखने को न मिलेगी कहे देता हूं .

मेरे थोड़े कहे को अधिक समझना .


5.


उमड़ घुमड़ कर कई बातें याद आ रही हैं पर प्रातःकालीन सभा के लिए उपलब्ध समय बीता जा रहा है . आगे जारी रहेगी #बनस्थलीडायरी और #स्मृतियोंकेचलचित्र . अभी भी पोस्ट लिखकर जी हल्का नहीं हुआ और चलाऊंगा बात आगे .

नौ अगस्त के ऐतिहासिक महत्त्व और शहीद दिवस को याद करते हुए ...

शहीदों को नमन.........

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--सुमन्त पंड्या .

@ आशियाना आँगन , भिवाड़ी .

मंगलवार 9 अगस्त 2016 .

@जयपुर ९ अगस्त २०१८.


3 comments:

  1. फ़ेसबुक पर ये चर्चा ख़ूब चली , अब इसे ब्लॉग पर भी छाप दिया है .

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