Tuesday, 7 August 2018

धापीबाई मार्ग की कहानी : स्मृतियों के चलचित्र 

गए दिनों बनीपार्क बार बार जाना हुआ ।एक मार्ग पर पत्थर पर लिखा देखकर मैं थोड़ी देर के लिए ठहर गया , लिखा था ' धापी बाई मार्ग ' । मुझे एक पुराना प्रसंग याद आ गया । मुझे हरि भाई ने बताया था कि शर्मा जी बनस्थली फ्लाइंग क्लब से रिटायर होकर जयपुर में बसने जा रहे थे । बनी पार्क में अपने प्लाट पर उन्होंने मकान बनाया । बस्ती धीरे धीरे बढ़ रही थी । गली की संख्या और प्लाट नंबर से घर की पहचान थी ।इस बीच उनकी मा गुज़र गयी । अपनी मा की याद को जीवित रखने के लिए वे एक तख्ती बनवा कर लाये जिस पर लिखा था - धापी बाई मार्ग * । शर्मा जी ने तख्ती को अपनी गली के मोड़ पर गाड़ दिया और इसे * धापी बाई मार्ग* के रूप में प्रशस्त कर दिया ।

अब वे अपने डाक के पते में भी धापी बाई मार्ग लिखने लगे । वहां आकर बसने वाले अन्य लोग भी अपने पते के रूप में ' धापी बाई मार्ग , बनी पार्क , जयपुर ' लिखने लगे । पोस्टमैन भी इस मार्ग को धापी बाई मार्ग के रूप में जानने लगा और बढ़िया ये रहा कि नगरपालिका में भी यह धापी बाई मार्ग के रूप में दर्ज हो गया ।

यही है ' धापी बाई मार्ग ' के नामकरण की कथा । इस मार्ग के आरम्भ में पत्थर पर शर्मा जी की माँ का नाम उकेरा गया है ।

फ़ेसबुक पोस्ट रूप में जब ये चर्चा चली सन २०१४ में तो प्रियंकर पालीवाल जी की दो टिप्पणियाँ  आईं जो यहां उद्धृत करता हूं :

१.

कई बार सदिच्छाएं ऐसे ही सरल-सहज ढंग से फलीभूत हो जाती हैं . आखिर सबसे पुराने बाशिंदे का कुछ तो विशेषधिकार बनता ही है . मुझे मार्खेज के हंड्रेड इयर्स ऑफ सॉलीट्यूड का गांव-कस्बा मकोंडो याद आया जिसमें गांव को बसाने वाले सीनियर बुएंदिया इस बात पर नाराज होते हैं कि हमारा घर किस रंग से पोता जाए, नगरपालिका यह तय करने वाली कौन होती है . गांव के बहाने बदलने-बढने-सधने-बिगड़ने की अजब-गजब दास्तान है यह .

२.

आपके संस्मरण इतने सहज-स्वाभाविक ढंग से आ रहे हैं कि सीधे मन में उतर जाते हैं. आपको लगातार लिखना चाहिए . एक के बाद एक कड़ी जुड़ती रहे . कई जगहें तो ऐसी हैं जहाँ मेरा भी जाना-रहना हुआ है तो रिकनेक्ट कर बहुत अच्छा लगता है . जैसे बापूनगर और जनता स्टोर का जिक्र . अब गुड वाला किस्सा आ जाए तो उत्सुकता कुछ शांत हो .

इन टिप्पणियों ने मेरा उत्साह बहुत बढ़ाया .

K

ब्लॉग पर प्रकाशित ८ अगस्त २०१८.

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