Tuesday, 28 August 2018

गोकुल यात्रा : बनस्थली डायरी 

गोकुल यात्रा : बनस्थली डायरी 


लगभग वैसी ही परिस्थितियाँ हैं और भाद्रपद मास चल रहा है जिन दिनों ये संस्मरण लिखा था मैंने . आज इसे ब्लॉग पर दर्ज करना अच्छा लग रहा है .

कभी कभी जीवन में ऐसा भी होता है कि व्यक्ति को निराशा घेर लेती है और ये निराशा यदि लंबी अवधि तक बनी रहे तो घातक भी हो सकती है . लेकिन … लेकिन ये योगायोग की बात है कि कुछ अलौकिक घटनाएं ऐसी होती हैं कि निराशा अचानक छूमंतर हो जाती है और जीवनी शक्ति लौट आती है . ऐसे अनुभव सब के जीवन के होते हैं , घटनाओं के प्रभाव हर व्यक्ति के लिए उसके स्वभाव और प्रकृति के अनुसार अलग अलग होते हैं / हो सकते हैं .

 मैं तो अपनी बात बताता हूं जो श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन से याद आ रही है , कई दिन से बताने का मन था पर एक तो उपकरण और संचार तंत्र ने कुछ साथ नहीं दिया और दूसरे दिल्ली में दो पारिवारिक शिखर सम्मेलनों में व्यस्त रहा जिसके चलते ये पोस्ट नहीं बन पा रही थी . देखते हैं अगर आज ये बात कुछ हद तक पूरी हो जाती है तो फेसबुक पर अपलोड कर देवूंगा . फिर आएगा शिखर सम्मेलनों की गतिविधियों का विवरण जो अलग पोस्ट का कलेवर बनेगा , देखिएगा जरूर .


दो महत्वपूर्ण व्रत : 

मेरे घर में दो व्रत शायद पीढ़ियों से चले आ रहे हैं और महत्त्वपूर्ण हैं - श्रीकृष्ण जन्माष्टमी और शिवरात्रि जिनमें छोटे छोटे बच्चे भी यथा शक्ति सम्मिलित होते रहे , बिना किसी दबाव के , स्वेच्छा से .

कोई कठोर व्रत नहीं होते थे व्रत के बहुत उदार नियम होते थे इन की सीख मैं जैसे घर में बच्चों को देता वैसे ही अपनी विद्यार्थियों को भी देता और इसका बनस्थली परिसर में भी सर्वत्र निर्वाह होता . जहां तक मेरे घर की विरासत का सवाल है मेरे घर में वैष्णव भक्ति की परम्परा और मेरे ननिहाल में शिव भक्ति की चली आयी परंपरा से इसका सम्बन्ध रहा हो , उसकी तफसील में मुझे अभी नहीं जाना .

अब ये और और बातें बंद कर मैं मुद्दे की बात पर आवूं जो कहने का आज विचार बनाया है …


वर्ष 2003 ईस्वी .

    अचानक ये पता लगा कि मेरा शरीर डायबिटीज की गिरफ्त में है और अब आगे से चिकित्सक की निगरानी में पथ्य और परहेज से रहना होगा . क्या खाया जाय क्या न खाया जाय ये भी डाक्टर और डाइटीशियन तय करने लगे . ये सब तो स्वाभाविक था पर इससे अधिक जो बताने लायक है वो ये कि मुझे दुःस्वप्न सताने लगे . मुझे अपने वो सब निकट रिश्तेदार याद आने लगे जो जीवन के अंत समय में या तो आंख की रौशनी गंवा बैठे थे या डाइबिटिक फुट के रोग के चलते एक एक पैर कटा बैठे थे .

ये केवल इस बात को बताने के लिए दोहरा रहा हूं कि जीवन में कैसी निराशा ने मुझे घेर लिया था और इसके कारण अपने कमिटमेंट भी पूरे करने में मैं आनाकानी करता था . भोजन में मिठास लुप्त हो गया था और यों भोजन में रुचि भी कम हो गई थी . ऐसे समय में उसी वर्ष गोकुल यात्रा ने मेरी सोच किस प्रकार बदल दी वही बताता हूं .


गोकुल यात्रा : निमित्त और अनुभूति 

 - इसे मैं एक सुखद संयोग ही कहूंगा कि हमारे साथी सुरेन्द्रपाल मिश्रा के बेटे प्रदीप का विवाह नियत हुआ था और बरात गोकुल जानी थी . मेरा विवाह में जाना पहले से तय था पर अब अपने बारे में नए रहस्योद्घाटन के बाद मैं साथ जाने में आनाकानी कर रहा था . मिश्रा जी मानने को कत्तई तैयार नहीं थे और आखिरकार साथ ले जाकर ही माने और इस प्रकार संभव हुई गोकुल यात्रा .

वैसे बृज प्रदेश की यात्रा मैंने पहले भी की थी अपने दोनों भाइयों के साथ पर इस बार साक्षात गोकुल पहुंचा था जो कृष्ण का गांव था और एक मांगलिक अवसर जिसमें अपने साथियों का साथ मिला था .

उस रात की बात याद करता हूं जब भोजन में अरुचि के चलते मैं जनवासे में अनमना सा लेटा था और सुरेन्द्र मिश्रा मेरी खोज खबर लेने आए थे , आखिर वो अपनी जिम्मेदारी पर मुझे साथ लिवा ले गए थे . वो वर के पिता थे , नेगचार के बीच भी समय निकाल कर आये थे मैंने कुछ नहीं खाया जानकर मुझे भवन के ऊपरी तल पर लिवा ले गए . वहां कढ़ाव में दूध ओट रहा था जो कुल्हड़ भर कर मुझे पीने को दिया गया . बगैर चीनी के भी गोकुल की गायों का दूध कितना स्वादिष्ट हो सकता था ये मैं उस रात ही जाना .

गोकुल की सडकों गलियों में मैं बारात के साथ भी घूमा और अगले दिन रवानगी के पहले भी . भवन , भित्तिचित्र , लोक व्यवहार और परस्पर अभिवादब में भी मैंने भगवान् श्रीकृष्ण को वहां लगातार उपस्थित पाया .

अधिक विस्तार में न जाकर मैं तो यही कहूंगा कि प्रदीप का विवाह और मिश्रा जी का साथ चलने का आग्रह निमित्त बन गए थे वास्तव में मेरा मन बदलने को मेरी सोच सकारात्मक बनाने को भगवान श्रीकृष्ण ने ही मुझे गोकुल बुलाया था उस बार .


मैं नहीं जानता कृष्ण इतिहास का विषय हैं या कवियों का घड़ा हुआ मिथक हैं पर गोकुल जाकर मैंने तो कृष्ण के रूप में एक वास्तविकता को अनुभव किया था .

बनस्थली के समय और साथियों को याद करते हुए ….

गोकुल यात्रा को याद करते हुए ..

सायंकालीन सभा स्थगित .।

सोमवार 29 अगस्त 2016 .

ब्लॉग पर प्रकाशन और पुनः लोकार्पण  - जयपुर   २९ अगस्त २०१८.


1 comment:

  1. फ़ेसबुक ने ये संस्मरण याद दिलाया था , आज मैंने इसे ब्लॉग पर प्रकाशित करना मुनासिब समझा .

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