फिर बनस्थली की याद : मोहन सिंह जी माट साब - २
कल उपलब्ध समय कम था , मैं इतना ही बता पाया था कि सरोज के जरिए बुलाए जाने पर बनस्थली में मोहन सिंह जी माट साब के घर पहुंचा और वो बड़ी आत्मीयता से मिले , बैठाया , खिलाया पिलाया और आगे कुछ बातें बताने लगे .
माट साब ब्यावर के रहने वाले थे और ब्यावर से ही उन्हें अपने एक मित्र कल्याण मल का पत्र मिला था जिसमें मेरा भी उल्लेख था . उल्लेख कुछ इस प्रकार था कि मेरा नाम बताते हुए ये मित्र कह रहे थे कि मेरे बॉस के बेटे गए दिनों बनस्थली में नियुक्ति पाकर वहां पहुंचे हैं , आप उनसे संपर्क स्थापित करें और उनका घर के व्यक्ति की तरह ही ध्यान रखें . यही पत्र वो आधार था जिसने माट साब को मुझे बुला भेजने को अधिकृत किया था .
खैर, माट साब की बेटी तो मेरे पास पढ़ती ही थी उस समय , दशक बीता और अगले दौर में पोती भी पढ़ने आई , माट साब आजीवन विद्यापीठ परिसर में रहे और इस प्रकार जो संपर्क स्थापित हुआ वो आज भी कायम है . इसे मैं चार पीढ़ियों का संपर्क कहूंगा .
एक अच्छी बात ये भी थी कि मोहन सिंह जी माट साब सोशल स्टडीज पढ़ाते थे और विषय मेरे ही अध्ययन अध्यापन से जुड़ा हुआ था . वे उस जमाने के थे जब अध्यापकों का हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं का ज्ञान हमेशा बढ़िया होता था चाहे वो किसी भाषा के अध्यापक न हों . मुझे याद आता है अलका से उसके साथ पढ़ने वाली लडकियां रश्क किया करती थीं कि उसके तो दादा जी अंग्रेजी में छपे सन्दर्भ ग्रंथों के अंश अनुवाद करा देते हैं . और सब के तो दादा जी वहां नहीं होते थे .
तब मेरे विषय का बहुत सा साहित्य अंग्रेजी में ही उपलब्ध हुआ करता था .
अब तो अलका भी किसी कालेज में प्रिंसिपल बन गई होगी , न तो नियुक्त होने वाली होगी . ये तो पुरानी बातें हैं जो मैं याद कर रहा हूं .
चिट्ठी पत्री का ज़माना :
लौटें उस बात पर जब मैं पहली बार माट साब के घर गया था .
मैंने जुलाई के चौथे सप्ताह में तो काम सम्हाला ही था और ये बात है अगस्त की जब तक कितना पत्र व्यवहार हो चुका था वही बताने की बात है .
काकाजी ने कुल तीन महीने अजमेर में काम किया था . वहां कल्याण मल जी उनकी ट्रेजरी में अकाउंटेंट थे . काकाजी के लिए अजमेर तो तबादले के बाद छूट गया पर कल्याण मल जी( कल्याण मल शर्मा ) से आत्मीयता बरकरार रही . उनसे नियमित चिठ्ठी पत्री चलती रहती थी . ऐसी ही चिठ्ठी में मेरी नई नियुक्ति का उल्लेख था . कल्याण मल जी ब्यावर के रहने वाले थे , वो प्रमोट होकर जयपुर भी आए और आखिर में रिटायर होकर अपने गृह नगर ब्यावर जा बसे थे . कल्याण मल जी मोहन सिंह जी माट साब के सहपाठी और दोस्त थे और इन दोस्तों में भी चिठ्ठी पत्री चलती रहती थी .
ऐसे ही एक नियमित पत्र में मेरा उल्लेख आया था और ऐसे करके माट साब ने मुझे बुलाया था उस दिन अगस्त के महीने में अपने घर .
पहली बार में हमें जोड़ने वाली कड़ी थे कल्याण मल जी अंकल .
अभी तो वो बात बतानी है जब एक आध वर्ष बाद सरोज का विवाह हुआ और कल्याण मल जी अंकल सपरिवार बनस्थली पहुंचे . वो एक उदाहरण है पुराने लोगों की आत्मीयता का , वह भी बताऊंगा .
अभी हाल प्रातःकालीन सभा स्थगित..
( कथा क्रम आगे जारी...)
सह अभिवादन : Manju Pandya
समीक्षा: Akshaya Chauhan
अशियाना आंगन , भिवाड़ी .
5 अगस्त 2015.
ब्लॉग पर प्रकाशन ५ अगस्त २०१८.
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