फिर बनस्थली की याद आई .: मोहन सिंह जी माट साब .
ये उसी साल की बात है जब मैंने बनस्थली में पढ़ाना शुरु किया था . बी ए थर्ड ईयर की क्लास को पढ़ाकर बाहर निकला तो एक छात्रा ने मुझे कुछ बात कहने को रोका . इस छात्रा का नाम सरोज चौहान था . वो मुझे कहने लगी :
" आपको पिता जी ने घर बुलाया है ."
देखो समझ का फेर , वो अपने पिताजी की बात कह रही थी और मैं समझ रहा था कि बीते सप्ताहान्त मैं जयपुर नहीं पहुंचा इस लिए मेरे घर से ये सन्देश आया है . खैर बात समझा और पता समझा और फिर मैं पहुंचा सरोज के घर . वहां पहुंचने पर संपर्क और आत्मीयता के कितने सूत्र आपस में जुड़े वो ही मैं बताने का प्रयास करूंगा. बात काकाजी * से शुरु होकर मोहन सिंह जी माट साब तक पहुंची थी और इसी आधार पर माट साब ने मुझे बुलवाया था . ये संपर्क तो फिर माट साब के रहते भी रहा और पीढ़ी दर पीढ़ी चला जो शायद मैं एक आध कड़ी में कह पावूंगा .
इस बहाने शायद मैं ये भी कह पावूं कि उस जमाने में सिर्फ चिठ्ठी पत्री से भी कितना संचार होता था और आत्मीयता का दायरा कैसे बढ़ता था .
आज स्मार्टफोन का ज़माना आ गया पर इन संबंधो की प्रकृति शायद वैसी न रही जो महज चिठ्ठी पत्री के जमाने में हुआ करती थी .
तो उस दिन की बात :
---------------------- जब बनस्थली में पोस्ट आफिस के बराबर वाली गली में माट साब के घर मैं पहुंचा तो वो बहुत अपनत्व से मिले बैठाया और एक पत्र मेरे सामने रख दिया जिसके आधार पर वे मुझे बुला भेजने को अधिकृत थे . क्या था पत्र में ऐसा , किसने लिखा था पत्र ये सब भी बताऊंगा पर आज सिर्फ इतना कि इसके बाद पीढ़ियों का रिश्ता बन गया
सारी कड़ियां जोड़ कर पूरी बात कहूंगा . उसी सन्दर्भ में जुड़े मुझसे बब्बू भैया याने अक्षय चौहान **.
( अगली कड़ी में जारी )
प्रातःकालीन सभा अनायास स्थगित .
सुप्रभात .
सह अभिवादन : Manju Pandya.
* काकाजी हमारे पिताजी जिन्हें हम इसी नाम से संबोधित करते थे .
** Akshaya Chauhan.
आशियाना आँगन , भिवाड़ी .
4 अगस्त 2015 .
ब्लॉग पर प्रकाशन ४ अगस्त २०१८.
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