फिर बनस्थली की याद : मोहन सिंह जी माट साब - भाग तीन .
कल मैंने बताया था कि माट साब के अभिन्न मित्र कल्याण मल जी ब्यावर से चलकर बनस्थली आए . अवसर था सरोज का विवाह . वह उनकी इस पैमाने पर एक मात्र बनस्थली यात्रा थी जिसमें वो लोग तीन दिन वहां रुके और इस बाबत अक्षय ने भी कल उस परिवार को याद किया . इस शिष्ट मंडल में चाची जी , इनकी बेटी और उसके साथ एक बच्चा सम्मिलित थे .
समारोह में वो लगातार सम्मिलित रहे पर उनका विश्राम स्थल रहा 44 रवीन्द्र निवास , उन दिनों मैं घर में अकेला ही था और इस बहाने मुझे भी संरक्षण मिल गया .
इसी बहाने मेरी एक बात :
अब छोटा बच्चा तो रात को सोवे तब ही सोवे . कल्याण मल जी परिवार रात को बाहर वाले कमरे में सोए . दोनों कमरों के बीच का दरवाजा ढाल दिया और मुझे बोले,' लाला तू तो सो जा , तुझे तो सुबह उठकर पढ़ना है , पढ़ाने जाना है .'
ऐसे ही पुरानी बात याद आ गई , कितना अपनत्व होता था उन लोगों में .
जैसे उनका बेटा मुकुट उनके लिए लाला था मैं भी उनके लिए लाला ही था .
चौहान परिवार के बारे में :
----प्रायःदेखा जाता है कि माता पिता अपने बच्चों पर केरियर थोपने का प्रयास करते हैं . स्वयं अध्यापक होकर भी बच्चों के लिए इतर व्यवसाय चाहते हैं . ऐसे में मोहन सिंह जी माट साब मिसाल हैं इस बात की कि उनकी देखा देखी उनके बच्चों ने उनका ही कार्यक्षेत्र चुना . विजय सिंह जी और निर्भय सिंह जी तो विद्यापीठ में ही कार्यरत रहे, मेरा भी निकट संपर्क रहा दोनों से . बच्चों के कारण मैं आशा जी को भी जाना , उनके सौम्य स्वभाव की मैं हमेशा सराहना करता हूं .
भूगोल के शिक्षक के नाते विजय सिंह जी का तो आज भी लड़कियां नाम लेती हैं .
अक्षय भैया तो हैं ही बनस्थली की यादों को ताजा करने वाले .
बात फिर उस जमाने की :
सोमवार को मैं तो जयपुर चला आया . 44 रवीन्द्र निवास में ठहरे हुए थे मेहमान जो घर के समान ही थे . मंगलवार को बनस्थली से विदा होकर जब वो लोग जयपुर आए तो घर की चाबी देने आए और ऐसे बताया कि लाला (याने मैं ) के कारण ठाठ रहे उनके . घर में दो उपकरणों की उन्होंने विशेष सराहना की - एक तो गैस कनेक्शन और दूसरा था प्रैशर कुकर .
हालांकि उस वक्त की और बहुत सी बातें याद आ रही हैं पर आज इस चर्चा को विराम देता हूं .
उन स्वर्णिम दिनों को याद करते हुए ..
प्रातःकालीन सभा स्थगित.
सह अभिवादन और समीक्षा :Manju Pandya
अतिरिक्त समीक्षार्थ : Akshaya Chauhan
आशियाना आँगन , भिवाड़ी .
6 अगस्त 2015 .
ब्लॉग पर प्रकाशन सोमवार ६ अगस्त २०१८.
आदि बनस्थली .
आदि बनस्थली के इस मनोरम दृश्य के लिए अक्षय चौहान का आभार , इस चित्र को उनकी मदद से ही ब्लॉग पर जोड़ा गया है .
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