ऋषिकांत की बात : " फूफाजी ढोक ."
चलते रस्ते बन गया किस्सा है आज अगर समय ने अनुमति दी तो वही बताए देता हूं .
अब ये तो आए दिन का रंबाद है कि सुबह सुबह कोई किस्सा मांड न पावूं तो मैं अपनी कोई नई या पुरानी जैसी भी सूझे फोटो लगा देवूं और अभिवादन का क्रम शुरु हो जावे .
ऐसे ही गए दिनों एक फोटो मैंने प्रोफाइल पर टांग दी . इस पर आई टिप्पणियों में एक टिप्पणी ऋषिकांत की भी थी जिसे बचपन से ढब्बू कहते आए हैं ढब्बू ने अपनी समझ से लिखा :
" फूफा जी ढोक ."
फूफाजी ने आशीर्वाद भी दे दिया पर असल में ढब्बू के लिखे में कुछ टाइप की गड़बड़ से या गफलत में हो गया था :
" फूफाजी ठोक ! "
बात छूट भी जाती पर टीप पर टीप देते हुए संदीप ने लिखा :
" ठोक नहीं ' ढोक ' ."
अब मेरा भी ध्यान गया कि चाहे गफलत में ही सही ठोकने की बात आ गई है तो मैंने आगे सवाल दाग दिया :?
" किसको ठोकना है ऋषिकांत बता ? फूफाजी तो ठोक देंगे . "
अब ऋषिकांत का तो ध्यान जाता सा जावे , इस बीच क्या हुआ बताता हूं . बात पर बात याद आई पिछली शताब्दी की .
कमला मेरी देखरेख में अपना एम् फिल डेसर्टेशन लिख रही थी . उसके प्रबंध में ढाका का नाम बड़ा महत्वपूर्ण था विषय के शीर्षक में भी और इबारत में भी पर वो जब भी कुछ लिखकर लाती ' ढाका ' को ' ठाका ' ही लिखा होता और सुधारना पड़ता , आखिर में मैंने तो यह तय किया कि ये बात टाइपिस्ट को ही बता देवेंगे कि " ठाका " नहीं " ढाका " लिखा जाना है .
और इस प्रकार निभ गई बात , हो गया कमला का शोध प्रबंध पूरा .
ये पिछले जमाने की बनस्थली की बातें हैं जो बरबस याद आ जाती हैं .
और एक बात कहने की
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जाने ऐसा क्यों है कि अंग्रेजी की ए बी सी डी जिसको देखो याद होती है , छोटे छोटे बच्चों से ये वर्णमाला बुलवाकर मां बाप बड़े राजी होते हैं पर हिंदी की वर्णमाला में बड़े बच्चे भी चूक जाते हैं .
क्या तो करो आप अब जो वस्तुस्थिति है सो है . मुझे तो " जोशी बाबा " ने हिंदी / देवनागरी की वर्णमाला और बारहखड़ी पहले पहल सिखाई थी , रोमन अक्षर तो बहुत बाद में पहचानने लगा था . मैं उन जोशी बाबा को नमन करता हूँ जिनका सिखाया अक्षर ज्ञान आज दिन तक काम आ रहा है . यही अक्षर ज्ञान मैंने कमला का शोध प्रबन्ध जांचते हुए दोहराया था .
कभी जोशी बाबा बाबत भी लिखूंगा , देखिएगा जरूर .
😊 फिर ढब्बू की बात
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जब दो बार मैंने ये सवाल दाग दिया :
" किसको ठोकना है ??? . "
तो ऋषिकांत माने मेरा प्यारा ढब्बू हरकत में आया और उसने जो लिखा उसे मैं अल्टीमेट कहूंगा . उसने लिखा :
" फूफाजी ! अपने आशीर्वाद रूपी डंडे से मुझे ठोक दो .! "
😊 अब अपनी बात
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जाने क्यों गए दिनों से ऐसे किसी को ठोक देने जैसे विचार मेरे मन में आ जाते हैं , ऐसा तो मैं नहीं हुआ करता था , पर अब ऋषि के इस " आशीर्वाद के डंडे " के विचार ने मुझे एक नई सूझ दी है , अब किसी छोटे मोटे को ठोको तो आशीर्वाद के डंडे से ठोको . यही तो है अब अपने पास .
अब ये पोस्ट तो जाने लायक बन गई पर अभी ढब्बू की भूआ की इस पर स्वीकृति बाकी है .
तदर्थ पोस्ट जारी ..........
आशीर्वाद ऋषिकांत .
सुमन्त पंड्या .
Sumantpandya.
@ गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .
बुधवार 29 जून 2016