Monday, 25 April 2016

😊😊हीरा - मोती : भाग तीन 😊😊💐💐

    

        😊😊 हीरा - मोती की कहानी : तीसरा भाग - 💐💐

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   विगत दो कड़ियों में मैंने बताने का प्रयास किया कि हीरा मोती की  जोड़ी ने रिश्तों  का एक ऐतिहासिक , प्रामाणिक आधार खोज लिया था और मेरे बनस्थली के सेवाकाल का  आखिरी दशक आते आते मेरे आत्मीय स्वजन के रूप में इन्हें मान्यता मिल चुकी थी . होली पर मेरी दुर्गत कर जाते वो कोई बात नहीं सेवा में समर्पित ऐसे रहते कि मेरे यार दोस्त भी मेरा नाम लेकर इन्हें जोत लेते तो ये  काम को तत्पर रहते .

बताने की ख़ास बात : 😊😊

*******************    जिस बात से आगे के लिए सीख मिली वो बात कल बताने से रह गई थी वही आज बताने का प्रयास होगा .

कल मैंने बताने की शुरुआत तो की थी कि 13 दिसंबर 1995 का दिन नजदीक आ रहा था और मैंने शर्मा जी की मार्फ़त दोनों सालों  पर दबाव बनाया था कि जीजा श्री को वो सिल्वर जुबली के मौके पर सम्मानित करते हुए सूट का कपड़ा तो देवें ही देवें  .

“ अकेले नहीं दे सकते तो दोनों मिलकर देवो .”

शर्मा जी ने थोड़ा बचत का रास्ता भी निकाल दिया था .

पर अब सोचता हूं ये लोभ मेरे मन में आया ही क्यूँ  ? ऐसा मंगत्या तो मैं था नहीं , पहनने ओढ़ने के कपड़ों का कोई घाटा भी नहीं था

बनस्थली से बचे खुचे सामानों के जो अवशेष यहां  गुलमोहर तक आए हैं  उनमें से वारड्रोब की एक झलक आप को दिखाऊं तो आप भी कह बैठेंगे कि क्यों नीयत बिगाड़ी पर जो कुछ हुआ वो होनहार की बात .

आखिर बात कैसे बिगड़ी ?

***********************        13 दिसंबर से कुछ दिनों पहले ही मुझे बुखार चढ़ने लगा और बुखार तो उत्तरोत्तर बढ़ता ही गया . ये तो भली जाणो कि इला यादव के पति डॉक्टर अशोक यादव उन दिनों  परिसर के ही गार्गी निवास में रह रहे थे और चिकित्सकीय देखभाल के लिए उपलब्ध थे उन्होंने स्थिति को सम्हाला .अंदेशा था कि कहीं ये  सेरेब्रल मलेरिया बुखार न हो और इसके लिए डाक्टर साब ने उस समय खून की जांच के लिए निवाई के अस्पताल में बुलाया जब बुखार चरम पर हो .

नतीजतन एक सौ पांच डिग्री बुखार की हालत में मुझे व्यास जी निवाई लेकर गए ताकि खून की जांच हो सके और ये नौबत आई  थी ठीक सिल्वर जुबली के दिन  याने 13 दिसंबर 1995 को . अच्छी मनी जुबली . मैं किसी समारोह में सम्मिलित नहीं हो पाया और जान के लाले पड़े सो अलग .

इस वाकए ने मुझे ये सीख दी कि उपहार सूंत लेने के मेरे कपटी विचार ने ही ये नौबत ला दी . अच्छी  मनी जुबली . मैं तो यहां तक कहने लग गया था कि सारे खोटे काम इसी तारीख को होते हैं . उस दिन मैंने ये भी सौगन खाई कि आगे किसी जुबली पर सालों से किसी उपहार की मांग करके मंगत्या नहीं बनूंगा .

ये भी स्पष्टीकरण आवश्यक है कि हीरा - मोती भी किसी दबाव के आगे झुके नहीं , अडिग रहे दोनों , मुझे दोनों से ऐसी ही उम्मीद थी , जुबली के मौके पर  इन्होंने कुछ नहीं  परखाया . और तो और , शायद उन्हें स्थिति की गंभीरता का पता भी नहीं चला , मेरी तबियत पूछने भी नहीं आए .

पर जो भी हुआ ये रहेंगे तो मेरे हीरा - मोती ही . इनकी बाबत फुटकर संस्मरण और आगे जोड़ूंगा .

😊😊*********************************************😊😊

सुप्रभात .

सुमन्त पंड्या .

 @ गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .

 मंगलवार 26 अप्रेल 2016 .

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😊😊 हीरा - मोती की कहानी : भाग दो 💐💐

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 😊😊 हीरा - मोती की कहानी : भाग दो : बनस्थली डायरी .💐💐

#बनस्थलीडायरी       #sumantpandya

 इस विषय में पहले भाग में मैंने बताया था कि सुरेन्द्र शर्मा जी ने किस प्रकार मेरे लिए अपने आपको हीरा घोषित कर दिया था और लपेटे  में लेते हुए ओम प्रकाश शर्मा को मोती बना दिया था .आखिर दोनों से मेरे मजबूत रिश्ते जो थे . ये रिश्ते कई एक तरह से काम आए जिनकी झलक दिखलाने का प्रयास करूंगा देखिए कितना संभव हो पाता है .

एक दिन की बात : 😊

****************      सामने वाले शर्मा जी , जो उन दिनों 45 रवीन्द्र निवास में रहा करते थे , मुझसे आकर बोले :

“ अरे सर ! आप कहो तो आपके साले को कुछ काम से जोत लेवूं क्या ? जैसे आप कहो . “

o

और मैंने भी गर्व से कह दिया :

“ इसमें कौनसी सोचने वाली बात है , जोतो सालों को आखिर ये और कब काम आएँगे . “

और मेरी स्वीकृति पाकर शर्मा जी ओ पी शर्मा को अपने साथ टोंक लिवा ले गए ,  उन्हें अपने लिए मोटर ड्राइविंग का लाइसेंस बनवाना था . ओ पी उन दिनों खुद एक मोटर ले आए थे और मोटर दौड़ाने लगे थे सो शर्मा जी को उसमें बैठाकर ले गए और ज़िला परिवहन दफ्तर में साथ रहे . लौटकर मुझसे बोले ओ पी :

 “ 😊 आपका नाम ले देते हैं तो जो कहा वो तो करना ही पड़ता है  .”😊

 तो इस तरह बहुविध उपयोगी सिद्ध हो रहे थे हीरा - मोती . मेरा नाम लेकर मेरे यार दोस्त भी इन्हें जोत लेवें तो कोई हरज नहीं .

बहर हाल मेरे लिए तो उन दिनों तक इनकी सेवाएं निजी तौर पर इतनी ही थीं कि होली के मौके पर आकर  “ जीजा राजा “ और  “ जीजा श्री  “कहते हुए मेरी दुर्गत कर जाते . आगे जो कुछ हुआ  वो थोड़ा सीख देने वाला है वो कहानी भी कहूंगा और आप बीती बताऊंगा .

बात   1995 की :

****************  13 दिसंबर 1995  का दिन नजदीक आ  रहा था . अब ये तो पहले से ही तय बात थी कि हमारे विवाह को पच्चीस वर्ष पूरे होने जा रहे थे , ये आ रहा था सिल्वर जुबली का मौका . उसी दिन संजय ( डीपू )  का विवाह जयपुर में होने जा रहा था , सविता पारीक अपने बेटे के विवाह का निमंत्रण देनें आई थीं  और मैं ये मानकर चल रहा था कि ऐसे ही किसी समारोह में लग्गम में लग्गम अपनी भी जुबली मन जाएगी पर हुआ कुछ और ही और वो दूसरा पहलू ही मैं बताने जा रहा हूं जिससे क्या शिक्षा मिली वही बताना मेरा ध्येय है .

मेरे मन में कपट आ गया कि इस अवसर का लाभ उठाकर हीरा - मोती का शोषण किया जाए और दोनों को मजबूर किया जाए कि जुबली के मौके पर ये लोग नए सूट  के लिए कपड़ा लाकर देवें .

“ अगर अकेले नहीं दे सकते तो  दोनों मिलकर देवो . “ शर्मा जी ने दोनों पर दबाव बना दिया .

भारत में साले होते ही हैं  ठगाने के लिए  इसी लिए तो इस महा देश में उन्हें ब्रदर इन लॉ लूजर कहा जाता है .  अब ये भी देखिए नीयत की बात है , कपड़ों का कभी कोई घाटा नहीं रहा पर हीरा - मोती का शोषण करना  था जो ये दबाव बना बैठा . इसका क्या नतीजा निकला और कैसी मनी उस बार जुबली यही  बताना शेष रहा  उसे बारीकी से अगली कड़ी में ही बता  पावूंगा ……

बनस्थली डायरी के अंतर्गत ये होगी “ हीरा -मोती की कहानी “ की एक और कड़ी , इसकी पूरक कड़ियां भी आएंगी .

इसे ब्लॉग पर भी प्रकाशित करूंगा और फेसबुक स्टेटस के रूप में भी जारी करूंगा .

सैकिण्ड टी ब्रैक ...

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सुप्रभात .

सुमन्त पंड्या .

@ गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू  नगर , जयपुर .

 सोमवार , 25 अप्रेल 2016 .

इस स्टेटस की समीक्षा का भार दो लोगों पर डालूंगा , बात घर में भी चले और बनस्थली परिसर तक भी पहुंचे . अब आगे के रहस्य पर से पर्दा तो अगली कड़ी में ही उठ पाएगा , जो इत्ती सी बात बताई है उसका नतीजा देखते हैं अभी हाल तो .

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अब होगा इस कथा को ब्लॉग पर प्रकाशित करने का प्रयास , अब तक फेसबुक पर थोड़ी बहुत सराहना मिल चुकी है .

*******😊

Thursday, 21 April 2016

😊गोटा खरीदा . ❤️

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     गोटे की खरीददारी -  
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  अस्सी के दशक की बात है मैं फैलोशिप के दौरान जयपुर में था । मेरे ननिहाल से भाई साब और भाभीजी बेटी की शादी के लिए सामान खरीदने जयपुर आये । बाजार जाने लगे तो भाई साब बोले ,' सुमन्त तू भी चल , तेरी बहू को भी ले ले ।'
भाई साब भाभी जी और हम दोनों बाजार गए । जौहरी बाजार त्रिपोलिया होकर लौट आये तो छोटी चौपड़ के पास भाई साब बोले - अरे गुड्डी की सास के बेस के लिए गोटा लाना तो भूल ही गए !   मैं बोला , अब मिसर राजाजी के रास्ते में चलते हैं वहां गोटे के कारखाने हैं वहां से गोटा ले लेंगे ।'
एक कारखाने  में पहुंचे   ' गोटा लेना है ।'
कई  सौ रुपये के गोटे देखकर भाई साब बोले ,' चलो यहाँ से ।" और दूसरे कारखाने में पहुंचे । वहां भी बात नहीं बनी । दो चार जगह देखकर हम लोग वापस लौट रहे थे कि एक दूकानदार ने हमें बुलाया । बह कुछ ग्रामीणों से घिरा हुवा था । उन्हें और सामान को एक और हटाकर हमें सफ़ेद चादर पर बैठाया ।

गोटा लेना है ।

लीजिये कहकर उसने कई तरह के गोटे दिखाए । पर कोई गोटा पसंद नहीं आया ।
मेरी  जीवन संगिनी  ने इस बीच कई एक बार्डर भी देख डाले पर तब लेना नहीं था । बहुत समय हो गया पर गोटे का चुनाव  नहीं हो  सका । तभी भाई साब का ध्यान उस सामान पर गया जो हमारे आने पर हटाया गया था । उसमे एक रील या पयिपिन जैसी कोई चीज थी जो भाई साब भाभीजी दोनों को खूब पसंद आई ।
यही ठीक है । बमुश्किल कोई पांच रुपये की चीज थी ।

और कुछ ?

यही पैक कर दीजिये ।

अब  जब हम ये खरीदारी कर उठने लगे तो गोटे वाला बोला :

" साब गोटा लेना एक चार चार जने आये ,इतनी क्यों तकलीफ की ,मुझे कहलवा दिया होता तो मैं आपके घर ही भिजवा देता ।"

हम तो उसकी बात ठीक से समझ रहे थे कि वो ऐसा क्यों कह रहा है पर भोले
भाई साब को तो लगा कि ये सुमन्त के साथ की वजह से है ,बोलो घर ही भिजवाने की कह रहा था।
हम समझ रहे थे  बात हो गयी और आई गयी हो गयी पर नहीं एक दिन वही गोटे वाला हारि भाई के अस्पताल में मिल गया और मिलते ही तपाक से बोला ,"बाबूजी नमस्ते ! "

हारि भाई ने पूछा " आप लोग एक दूसरे को जानते हो क्या ?" गोटे वाला उनका मरीज था ।
बाबूजी हमारे यहाँ गोटा खरीदने आते हैं , उसने बड़े गर्व से कहा । मानो हम गोटे के नियमित खरीदार हों ।
आगे चलकर हम लोग सचमुच उसके ग्राहक बने और शहर में रहने के दौरान उससे संपर्क बना रहा । पहली मुलाकात का यह कथन हमेशा याद रहा

" बाबूजी गोटा लेना एक और चार चार  जने आये , इतनी क्यों तकलीफ़ की ? मुझे कहलवा दिया होता मैं आपके घर ही भिजवा देता ।"

और फिर मेरा यह कहकर परिचय देना कि "बाबूजी हमारे यहां गोटा खरीदने आते हैं ।"
👍👍👌👌

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Tuesday, 19 April 2016

😊😊😊विशिष्ट व्यक्ति का आगमन : बनस्थली डायरी .💐💐💐💐

    😊😊  44 रवीन्द्र निवास : मेरा घर : विशिष्ट व्यक्ति का आगमन भाग एक 💐💐💐💐💐
     

       44 रवीन्द्र निवास : बनस्थली में मेरा घर : विशिष्ट अतिथि का आगमन .

-------------------------------------------   -----------------------------    बनस्थली में एक साल काम करने के बाद मुझे ये घर मिला था . जब तक परिसर में रहा वहीँ रहा . कितनी छोटी छोटी बातें हैं उस जमाने की जो यदा कदा आज भी याद आ जाती हैं . कितने अतिथि साधिकार वहां आए और रहे वो स्मृतियों की चित्रशाला में आज भी बसे हैं . उसी चित्रशाला का एक दृश्य आज प्रस्तुत करता हूं .

पूरा मकान :

-----------    ये उस जमाने की बात है जब पक्के मकान थोड़े थे परिसर में . मांग ज्यादा थी मकानों की , मकान उस अनुपात में कम थे . मुझे तो पूरा मकान अलाट हो गया था सिर्फ इस लिए कि  बीते सत्र में मेरा विवाह हो गया था और मुझे गृहस्थ मान लिया गया था , उस बाबत भी फिर कभी बताऊंगा , उसी दौर में अकेले अकेले लोगों को दो दो तीन तीन को एक साझा मकान मिलता था .

गौतम की बात :

---------------  जिस सत्र में मैं अलग मकान में रहने लगा उसी साल कृपा कृष्ण गौतम अंग्रेजी विभाग में नियुक्त होकर आए , उनसे जुडी हुई कुछ एक यादें हैं जो मैं साझा किया करता हूं . गौतम राजस्थान कालेज और  विश्वविद्यालय में मेरे सीनियर रहे थे और इधर  अच्छी भली इनकम टैक्स इन्स्पेक्टर की नौकरी छोड़कर पहले नवलगढ़ में कालेज में पढ़ाने लगे थे , वहां से बनस्थली आ गए थे . गौतम अरविन्द निवास की तीसरी लाइन के एक मकान में आधे हिस्से में रह रहे थे और फर्नीचर के नाम पर उनके पास मेहमान घर से किराए पर ली गई एक खाट मात्र थी , परिवार साथ लाए नहीं थे , मेहमान घर में खाना खाते थे और कालेज में पढ़ा आते थे .

     जेटली परिवार में बसन्त के मित्र होने के नाते उनका भी आना जाना था.

इसी नाते , किस निमित्त जो कि मुझे पता नहीं , माता पिता को बनस्थली आने का न्योता दे आए . हुआ ये कि गौतम के बुलावे पर राजस्थान विश्वविद्यालय संस्कृत विभाग के प्रोफ़ेसर रमा शंकर जेटली और श्रीमती जेटली रात की बस से  बनस्थली पहुंचे और गौतम उन्हें बस से उतार कर मेहमान घर में ठहराने पहुंचे तब जो कुछ हुआ और तब के कैसे हाल थे वही बताता हूं . शांताकुंज के पास पुराने मेहमान घर में कच्ची दीवार और कच्ची जमीन वाले छोटे छोटे कमरे थे जिनमें एक बाण की खाट बिछी होती . उस समय तो बिजली के पास कीट पतंगे भी उस छोटे से छप्पर वाले कमरे में बहुत थे  . श्रीमती जेटली (े इन्कार ही  हो  गईं और गौतम से अपने घर ले चलने को कहा . गौतम के पास अपने घर में ठहराने के लिए न तो जगह थी , न  ओढ़ने बिछाने को अतिरिक्त बिस्तर थे और न रसोई का कोई इंतजाम था . पर गौतम के पास एक वैकल्पिक व्यवस्था थी जो उन्होंने बताई . गौतम बोले :

"मेरा एक दोस्त है  सुमन्त , आपको उसके घर ले  चलता हूं उसकी वाइफ तो आजकल बाहर गई हुई है , वहां पूरा मकान  है आप लोग वहां ठहर जाइएगा ."

ऐसा सुनकर मम्मी तुरन्त बोली :

" पहले क्यों नहीं बताया सुमन्त यहां है ? हम तो उसके यहां ही चलेंगे .

तू क्या ठहराएगा ? हमें तो बता दे उसका घर कहां है , वहीँ रुकेंगे आज रात ."

और इस प्रकार गौतम के बताए से तीनों लोग आए 44 रवीन्द्र निवास . अचानक उनका आना मेरे लिए आश्चर्य और ख़ुशी का कारण बना उस दिन .  माता पिता के अतिरिक्त गौतम भी उस रात वहीँ रुके .

अभी तो उस रात की और अगले दिन की भी बात बतानी है पर समयाभाव के कारण प्रातःकालीन सभा स्थगित .

(आगे जारी.)

सुप्रभात .

सह अभिवादन .

सुमन्त पंड्या .

गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .

14 अगस्त 2015 .
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Monday, 18 April 2016

😊😊😊😊 प्रभु जी से निवेदन : सीधी बात 💐💐💐💐💐

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       😊😊  प्रभु जी से निवेदन : सीधी बात .💐💐💐💐💐

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हे प्रभु ! हे ठाकुर जी ! कई दिनों से सोच रहा था ये बात आपसे ही सीधे कहने की  पर कोई न कोई अड़ंगा आ जाता था और ये बात बच रहती थी आज भी जाने बात पूरी हो पाएगी के नहीं पर कोशिश करने में हरज नहीं है , करते हैं कोशिश , लैट अस सी कितनी सफलता  मिलती है .

आखिर बात क्या है ?

***************** आप तो प्रभु चावला समझ बैठे , वो किया करता था सीधी बात ये पहले ही साफ़ हो जाए के ये बात उस प्रभु की है ही नहीं , अगर आज परसाई जी होते तो जरूर से उनके मार्फ़त कहलवाता ये बात पर अब तो मुझे ही कहनी पड़ेगी , हालात की मजबूरी जो आन पड़ी .

पर आखिर बात है क्या ?😊😊😊😊😊

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प्रभु जी ! ठाकुर जी !

बात स्पेस की है , बात मोबाइल की है और है मेरे  दारिद्र्य की .

ये मेरा मोबाइल है आप का मंदिर नहीं , इत्ता तो समझो  प्रभु आप के तो इत्ते मंदिर हैं  , टूटते हैं उनसे ज्यादा और नए और बनते हैं उस बाबत मैं अदना सा आपका भक्त क्या कहूं  , मेरी कोई राय नहीं है इस बाबत  पर इतना सा  समझो प्रभु   के ये मोबाइल का स्पेस  थोड़ा सा छोड़ दो मेरे लिए . सुबह सुबह आप आ बैठते हो और ये मरा मोबाइल हैंग हो जाता है .

प्रभु , मुझे कोई वहम नहीं है समय आने पर आऊंगा ही आपके पास  तब रूबरू भी हो जाएगी बात अभी कुछ दिनों तो मेरे दोस्तों और असंख्य मानस  पुत्रियों से बोल बतळा लेने देओ !

जो इतना ही मुझपर कृपालु   हुए हो तो जल्दी आऊं आपके पास , जैसा आप कहो  , बताओ .

गूगल से उपाय पूछा था :

********************* पूछने को तो पूछा था पर वो भी अपने को कम जचता है . वो तो स्पेस क्रिएट करने को आपके लिए कूड़ेदान दिखाता है . ऐसे में आप आओ ही क्यों  ये सवाल है .

प्रभु अपन लुका छिपी में बात नहीं करते अतः खुल्लम खुल्ला कही है ये बात आप से .

ओह माई गॉड ! क्या कह दी और किससे कह दी सुमन्त ?

अब कह दी तो कह दी !

जो होगा देखा जाएगा . जीवन संगिनी ने अभी टाइम आउट लिया हुआ है  उससे थोड़ी बचत है न तो उनकी भी शिकायत झेलनी पड़ती .

समीक्षा :

😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊💐💐💐💐💐💐

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सुप्रभात

सुमन्त पंड्या

@ गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .

मंगलवार 19 अप्रेल 2016 .

Sunday, 17 April 2016

कहां कहां मिल जाते हैं लोग ! : बात बनस्थली की . .😊😊😊

💐💐कहां कहां मिल जाते हैं लोग : 😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊

बनस्थली डायरी  : कहां कहां मिल जाते हैं लोग ! 😊😊💐💐💐💐💐
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#sumantpandya

#बनस्थलीडायरी         #मुखर्जीनगर

आज की चर्चा में संगीत नहीं है , पिछले तीन दिन की तरह ,  पर संगीतज्ञ जरूर है , इसलिए ही ये शीर्षक है .
छोटे वाले ने दिल्ली में मकान बदला , विजय नगर से छोड़कर मुखर्जी नगर के एक मकान में आ गया . मकान दिलवाते  वक्त  ब्रोकर सब बात पूछते हैं - आपका नाम , बाप का नाम , गांव का नाम , क्या करते हो ? वगैरा . इसी प्रसंग में बनस्थली का ज़िक्र आया तो सरदार जी ब्रोकर ने उसे कहा कि कुछ साल पहले उसने बनस्थली के ही एक सज्जन को भी पड़ोस में मकान दिलवाया है . मकान नंबर भी बताया , खैर उस समय तो वो बात हुई और रह गई .
जब पिछले साल एक बार  हम लोग भी वहां पहुंचे तो फिर यही जिक्र आया और  छोटा वाला निकल पड़ा उसी सूत्र को खोजने . जाने कहां गए मिहिर और सुमन हमें भी बताकर नहीं गए , उनका इरादा उस बनस्थली वाले को साथ लेकर आने का और माता पिता को सरप्राइज देने का था .
मैंने फोन किया तो ये बोला ," अभी आते हैं."

उधर जब लक्षित मकान पर  दोनों पहुंचे तो एक बुजुर्ग  ने दरवाजा खोला और   मेरा नाम सुनकर वो बोले :
" तुम तो छुटकू हो  ? "

आ गई बात समझ में कि इसके बचपन के ही जानकार  और कोई अपने हैं ,वरना यहां दिल्ली में कौन ऐसे बोलेगा भला .

लौटकर आया  छुटकू और बोला :

"  पापा  मम्मी आपको ही उधर चलना पड़ेगा , वो बनस्थली वाले आप से बड़े हैं. "

खैर हम दोनों वहां गए और बहुत देर वहां बैठे  . वो निकले संगीत विभाग के आर डी वर्मा  और उनकी तीनों पीढ़ियों से वहां मिलना हुआ . बेटा राजीव अब दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाता है और सितार वादन की उसी विधा में   आगे बढ़ा है , जिसके लिए  बड़े वर्मा जाने जाते रहे .
उस शाम हम थे तो दिल्ली में पर हमारी  संयुक्त  मनोयात्रा बनस्थली की ही रही . नई पुरानी  बहुत बातें हुईं .
पुराने लोग ऐसे ही अनायास मिल जाया करें तो कितना अच्छा रहे , इसी मनोकामना के साथ -

प्रातःकालीन सभा स्थगित .
इति.
सहयाManju Pandya Pandya
सुप्रभात .
Good morning.

सुमन्त
आशियाना आंगन , भिवाड़ी .
शनिवार 18 अप्रेल 2015 .
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😊😊😊😊😊😊😊
अपडेट :
पिछले बरस आज के दिन दिल्ली से लौटकर भिवाड़ी में लिखी थी ये पोस्ट . मुझे लगा कि इसे सहेजने की जरूरत है अतः इसे फिर से प्रचारित करने और ब्लॉग पर दर्ज करने जा रहा हूं .
मुझे भरोसा है कि आज जैसे तैसे , कैसे न कैसे नियमित पोस्ट भी बन पाएगी और तब फिर फेसबुक मंच पर आऊंगा .
राहुल की डेयरी पर जाने का मुहूर्त्त निकाला जा रहा है अतः प्रातःकालीन सभा तत्काल प्रभाव से स्थगित करते हुए आप सब का अभिवादन करता हूं .
सुप्रभात .
सुमन्त पंड्या .
@ गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .
सोमवार 18 अप्रेल 2016 .

Saturday, 16 April 2016

😊😊😊 संगीत से मेरा वास्ता : भाग तीन . 💐💐💐💐💐

संगीत : भाग तीन 💐💐💐

बनस्थली डायरी : संगीत से मेरा वास्ता -  भाग तीन . 😊😊😊
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#बनस्थलीडायरी       #संगीतसेमेरावास्ता - भाग तीन .

अगले दिन चर्चा चली और उसमे कहा जा रहा था कि संगीत की महफ़िल बड़ी  आनंददायक रही . ये भी उल्लेख आया कि काफी के बाद कोई  गायन जमता नहीं है , बहरहाल पटवर्धन साब को बीच में विश्राम देने को अमीर खां साब ने भी बीच में एक आध बंदिश सुनाई थी और बाकी वे लगातार तबले पर संगत करते रहे थे .

बातों के बीच मैं बापू से कह बैठा :

" पर मैंने तो कॉफी आपके कहने पर ही सर्व की थी , आप कहते तो और ठहर जाता ."

मेरी बात सुनकर वो हंसने लगे  और
तब मुझे अपनी नासमझी का पता लगा. मैं अपनी कॉफी की बात समझ रहा था और वो राग 'काफी' की बात कर रहे थे , जिसमे गाई गई बंदिश के बोल थे :

"..करत ठिठोरी संग की सहेलियां...."

संगीत के लोगों  से मेरा  जो वास्ता पटवर्धन साब के जमाने से शुरु हुआ वो  आर डी वर्मा  और  आर सी एस नाडकर्णी के जमाने तक भी रहा . खैर यहां मैं तब की बात कर रहा हूं जब इन लोगों की अपेक्षाकृत युवा प्राध्यापकों  में गिनती होती थी  और संगीत विभाग में राजा भाऊ देव और मोहन राम नागर सरीखे संगीतविद् भी हुआ करते थे ..

पटवर्धन साब के बनस्थली आने की भी एक कहानी  है . पंडित हीरा लाल शास्त्री ने  पंडित विनायक राव पटवर्धन से मिलकर उन्हें बनस्थली चलने का आग्रह किया . ये पंडित जी जाने माने संगीतविद् थे और पूना में रहते थे . वो बोले  :
" अब इस उमर में मैं घर  छोड़कर नहीं जा सकता , आप ऐसा करो कि मेरे बेटे नारायण को अपने यहां बुला लो , वो आकाशवाणी में काम करता है और  इन दिनों दिल्ली में है . "

एन वी पटवर्धन पहले दर्शन शास्त्र के प्राध्यापक थे , बाद में आकाशवाणी में गए और वहां से  शास्त्री जी के आह्वान पर बनस्थली आगए . उस जमाने में राजस्थान विश्वविद्यालय में कहीं और संगीत में पोस्ट ग्रेजुएट नहीं था बनस्थली के अतिरिक्त .
एक बार विनायक राव पटवर्धन बनस्थली आए , उनका गायन रखा गया और पटवर्धन पिता पुत्र की  अनोखी जुगलबंदी भी लोगों को सुनने को मिली .
वे दिन और वे लोग ... याद करते ही बनता है .

बनस्थली के सुनहरे दिनों को याद करते हुए .
प्रातःकालीन सभा स्थगित.
इति.
सहयोगManju Pandyadya

सुप्रभात .
Good morning.

सुमन्त .
आशियाना आँगन , भिवाड़ी .
17  अप्रेल 2015 .
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अपडेट :  😊😊
गए बरस भिवाड़ी में थे तब आज के दिन लिखी थी ये पोस्ट , चली आ रही चर्चा की तीसरी कड़ी , आज फेसबुक अपने तरीके से याद दिला रहा है . अब मौका देखकर दो काम किए देता हूं :
1. 😊
इसमें हीरा मोती लगाकर ब्लॉग के अंतर्गत प्रकाशित करना .
2. 😊😊
इस पोस्ट पर फिर एक बार चर्चा चलाना और जीवन संगिनी को प्रेरित करना कि वे फेसबुक पर अपना मौन भंग करें . आखिर इत्ती चुप्पी मैं कब तक सहन करूंगा ?
P- S-
****  हीरा मोती कौन और क्या ? मेरे हीरा मोती बाबत बात शुरु की तो थी 💐💐
ब्लॉग पर भी और फेसबुक प्रोफाइल पर भी वो बात भी आगे  बढाऊंगा .
सुप्रभात .
सुमन्त पंड्या
@ गुलमोहर , शिवाड़ एरिया , बापू नगर , जयपुर .
रविवार 17 अप्रेल 2016 .
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